श्री गौरीशंकर - श्री नर्मदानंद - श्री काशीनन्द
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
श्री गौरीशंकर - श्री नर्मदानंद - श्री काशीनन्द
श्री गौरीशंकर - श्री नर्मदानंद - श्री काशीनन्द
श्री गौरीशंकर महाराज
नर्मदा रहस्य -
परिक्रमा वासियों में श्री गौरीशंकर महाराज का स्थान बहुत ऊंचा है। इन्होने गायत्री के कई अनुष्ठान किए है, और इन्होने अपना सारा जीवन माँ नर्मदा की परिक्रमा ही बिताया है। श्री गौरशंकर महाराज जी को एक समय माँ नर्मदा की परिक्रमा के दौरान शूलपाणि की झाड़ी में चिरंजीवी अश्वत्थामा के दर्शन हुए थे। श्री गौरीशंकर जी स्वभाव बहुत ही सरल था और वे बड़े ही परोपकारी थे । श्री नर्मदा जी की परिक्रमा का आनंद अधिक से अधिक व्यक्तियों को दिलाने के उद्देश्य से इन्होने परिक्रमा वासी साधुओं की एक बड़ी जमात कायम की। इस जमात मे सेकड़ों साधु, हाथी, ऊंट, घोड़े, गाड़ी, झंडे, निशान आदि शामिल हुए थे। और इस जमात का प्रधान और मुख्य श्री नर्मदा जी की परिक्रमा करना ही है।गौरशंकर महाराज के कई चमत्कारिक कार्यों से चकित होकर मंडला और होशंगाबाद जिलों के जिलाधीशों ने इनकी जमात को काफी परिमात्रा में भांग, गाँजा, तथा हथियार रखने का लिसेंन्स और सन्दे दी थी ।ये सन्दे इनकी जमात के महंत के पास अभी तक है।
संत शिरोमणि गौरीशंकर जी महाराज धूनीवाले बाबा के गुरु थे . अभी तक माँ नर्मदा के जितने भी भक्त हुए है . गौरीशंकर जी महाराज का नाम आदर से लिया जाता है . आप श्री कमल भारती के शिष्य थे जिन्होंने माँ नर्मदा की तीन बार परिक्रमा की थी . अपने गुरु के ब्रम्हलीन होने के पश्चात अपने गुरु के पदचिह्नों पर चलना अपना कर्तव्य समझकर एक बड़ी जमात इकठ्ठा कर माँ नर्मदा की परिक्रमा करने निकल पड़े . भण्डार बनाते समय यदि भंडारी यदि कह दे कि घी की कमी है तो आप तुंरत कह देते कि श्रीमान जी घी माँ नर्मदा से उधार मांग लो और एक बड़े पात्र में नर्मदा जल भरकर लाते और जैसे ही कडाही में डालते वह घी हो जाता था . जब कोई भक्त यदि घी अर्पण करने आता तो स्वामी जी आज्ञा से घी माँ नर्मदा की धार में डलवा दिया जाता था . स्वामी जी माँ नर्मदा पर अत्याधिक विश्वास करते थे और माँ नर्मदा के जल में प्रवेश नही करते थे और दूर से ही जल मंगवाकर स्नान कर लेते थे.
हमने कुछ विश्वास पात्र लोगों से सुना है की जिस समय इस जमात के लिए किसी वस्तु की कमी पड़ जाती थी, तो माँ नर्मदा जी का जल घी का कम कर देता था ।
कहा जाता है कि एक बार आपकी जमात होशंगाबाद में भजन कीर्तन कर रही थी तो इस जमात की गतिविधियो को एक अंग्रेज कमिश्नर देख रहा था और उसके मन में संदेह हो गया की आखिर स्वामी जी इतनी बड़ी जमात को चलाते कैसे है और एक समूह को खाना कैसे खिलाते है . वह तुंरत स्वामी जी के पास पहुँचा और पुछा की इतनी बड़ी जमात को चलाने के लिए खर्च कहाँ से लाते हो तो स्वामी जी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि सब माँ नर्मदा जी देती है और उनकी कृपा से हम सभी खाते पीते है . कमिश्नर ने कहा कि ठीक है मै सुबह आकर आपकी परीक्षा लूँगा और देखता हूँ ऐसा कहकर वह चला गया . सुबह वह अधिकारी स्वामी जी को बंधाधान ले गया और तट पर खड़ा होकर स्वामी जी से कहा कि आप अपनी माँ नर्मदा से ग्यारह सौ रुपयों की मांग करे हम देखना चाहते है कि तुम कहाँ तक सत्य कह रहे हो ।
स्वामी जी ने माँ नर्मदा को प्रणाम किया और हाथ जोड़कर बोले कि मैंने कभी आपके जल में प्रवेश नही किया है और इन सब के कहने पर आपके जल में प्रवेश कर रहा हूँ और छपाक से माँ नर्मदा के अथाह जल में छलांग लगा दी और जल में डुबकी लगाई और सैकडो लोगो की उपस्थिति में हाथ में ग्यारह सौ रुपयों की थैली लेकर बाहर आये तो उन्होंने साहब को वह थैली थमा दी और कहा गिन लीजिये . सभी की उपस्थिति में उन रुपयों को गिना गया और ग्यारह सौ रुपये पूरे पूरे निकले तो वह अधिकारी काफी शर्मिंदा हुआ और उसने क्षमा याचना की और उसने भविष्य में किसी नर्मदा भक्त को परेशान न करने की शपथ ली और उसने खुश होकर स्वामी जी को सम्मानित किया और अनेको प्रमाण पत्र भी दिए।
एक बार ब्रम्ह मूहर्त में स्वामी जी स्नान करने जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें कांटा लग गया वे दर्द से व्याकुल हो गए और वही बैठ गए . स्वामी जी आश्रम नही पहुंचे तो उनके शिष्य उन्हें खोजते खोजते नर्मदा तट की और गये . रास्ते में उन्हें स्वामी बैठे दिखे . शिष्यों ने स्वामी जी से कांटा निकालने को कहा पर स्वामी जी ने उन्हें मना कर दिया और कहा माँ नर्मदा ही यह कांटा निकालेंगी और उन्होंने अपने शिष्यों को आश्रम लौट जाने का आदेश दिया और वे रास्ते में उसी जगह बैठे रहे।
अपने भक्त का कष्ट माँ नर्मदा जी से देखा नही गया और मगर पर सवार होकर वहां पहुँची और अपने भक्त गौरीशंकर से कहा कि बेटा मै तुम्हारा कांटा निकालने आ गई हूँ और उन्होंने स्वामी जी के पैर में लगा कांटा निकाल दिया और उन्हें पहले की भांति स्वस्थ कर दिया . स्वामी जी ने माँ नर्मदा से जल समाधी लेने की अनुमति मांगी तो माँ नर्मदा ने उन्हें खोकसर ग्राम में समाधी लेने की आज्ञा प्रदान की और अंतरध्यान हो गई सुबह सुबह स्वामी जी ने इस सम्बन्ध में अपने भक्तो और शिष्यों को जानकारी दी और समाधी लेने की इच्छा व्यक्त की . एक गहरा गडडा खुदवाया गया और आठ दिनों तक भजन कीर्तन होते रहे और नौबे दिन माघ शुक्ल 8 संवत 1844 वी. को श्री नर्मदा जी के किनारे कोकसर ग्राम में सचेत अखंड समाधी ले ली। जहाँ स्वामी जी ने समाधी ली है वहां माँ नर्मदा का पवित्र मन्दिर बना है .।
श्री नर्मदानन्द जी महाराज
संवत 1844 में श्री गौरीशंकर जी महाराज के समाधि लेने पर श्री नर्मदानंद जी इस जमात के महंत बने । श्री नर्मदानंद जी बहुत ही अच्छे लिंगार्चनी थे । श्री गौरशंकर जी के बहुत से गुण नर्मदानंद जी मे विध्यमान थे । प्रतिदिन प्रदोष समय शिव पार्थिव का विधिवत पूजन करने के बाद ही ये भोजन करते थे ।
श्री काशीनन्द जी महाराज
श्री नर्मदानंद जी के बाद श्री काशीनंदजी को श्री गौरीशंकर जी महाराज के जमात के महत की पदवी मिली।नर्मदानंद जी बहुत विवेकी और ज्ञानवान थे । कार्तिक सुदी 10 संवत 1880 मे इन्होने अपने चेले श्री रतिनंद जी को जमात का भार सौंप दिया । और इनका निवास स्थान प्रायः कोकसर मे ही रहा ।