बाबा ब्रह्मचारी नर्मदा शंकर
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
बाबा ब्रह्मचारी नर्मदा शंकर
बाबा ब्रह्मचारी नर्मदा शंकर
मां नर्मदा की गुफा मे एक बिचित्र योगी। बाबा ब्रह्मचारी नर्मदा शंकर ने कहा कि कल दिल्ली आऊंगा तो क्या तुम मिलोगे। मैं तो जैसे इंतज़ार में ही था। अगले दिन मुलाकात हुयी जैसलमेर हाउस में। एक बड़े अधिकारी के कमरे में।लेकिन अधिकारी में मेरी रूचि नहीं थी, मैं तो बस एक ऐसे साधू से मिलने आया था जिसने लगभग अपने साधक जीवन के 12 साल गुफाओं या फिर घने जंगलों में बिताया था। और वो भी तब जब वो एक मैकेनिकल इंजीनियर थे। उस अधिकारी के कमरे में बहुत देर उन्हें निहारता सा रहा और ये जानने की मन ही मन कोशिश करता रहा कि ये व्यक्ति भारतीय है या विदेशी। खैर, नर्मदा बाबा ने कहा कि क्या आज मुझे भोजन और एक चारपाई मिल सकती है सोने के लिए। मेरे लिए तो ये सौभाग्य था सो मैंने उन्हें अपनी कार में बैठाया और अपने साथ लेकर चल दिया। मन में जैसे सवालों का समुन्दर सा था।
कमरे में पहुंचकर थोड़ा आराम किया। बाबा बोले क्या कुछ खाने को मिल सकता है। मैंने कहा आप आदेश करो – जो आप कहोगे सो हाज़िर करेंगे। हंसकर बोले कि एक अगर एक कप चाय और एक ब्रेड मिल जाये तो काफी होगा। मैंने कहा चाय तो बन ही रही है आप खाने के लिए आदेश तो करो – तो बहुत सोचकर बोले कि अगर तकलीफ न हो तो दो कप चाय पीऊंगा। मैंने वही किया। चाय पीकर अब दौर था जरा एक दूसरे को जानने का। तो पहला सवाल भी मैंने ही दागा “बाबा आप इंडियन हो या विदेशी ” – बाबा बोले कि बिलकुल इंडियन हूँ बस पैदा ऑस्ट्रियन माता पिता के घर हुआ।
पिता ऑस्ट्रिया में एक इंजीनियर थे तो उन्होंने भी मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की। बात ही बात में मैंने एक बचपना भी किया और मैंने उनसे पूछा कि क्या आप ओमकार क्रिया करके दिखा सकते हो। वो भी इतने सरल थे कि उन्होंने ओमकार क्रिया करके दिखाई। लेकिन जैसे ही उन्होंने ओमकार कर उच्चारण शुरू किया – हम कुछ लोग जो उनके साथ बैठे थे अचानक उनका बदला रूप देखकर ज़मीन पर बैठ गए। एक सिद्ध गुरु ने इतनी सरलता से इतने जटिल योग से परिचय करवाया।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई पूरी कर वो गाँधी के आश्रम साबरमती आये। वहां आश्रम में उन्होंने ओम्कारेश्वर का एक चित्र देखा और पूछा कि ये कौन सी जगह है। पता चला कि ओम्कारेश्वर है। वो तस्वीर ऐसी भायी कि वहां का टिकट कटा लिया। देर रात करीब 9 बजे ओम्कारेश्वर पहुंचे। 19 84 में ओम्कारेश्वर बेहद पिछड़ा सा इलाका था। रात को किसी तरह एक धर्मशाला मिल गयी। थकान बहुत थी सो नींद जल्दी ही लग गयी। सुबह होते ही जैसे ही बाहर का नज़ारा देखा कि ओम्कारेश्वर से प्यार हो गया। माँ नर्मदा सामने थीं – तट पर लोग कर्मकांड कर रहे थे – दूर पहाड़ थे। यूरोप से ये जगह एकदम अलग थी या यू कहें सच्चाई के एकदम निकट थी क्योंकि यहाँ लोगों के हृदय में प्रेम था और साथ ही ज्ञान किताबों में भी था वहीँ यूरोप के लोगों के पास सिर्फ किताबें थीं लेकिन मन में प्रेम और सच्चाई नहीं थी।
ओम्कारेश्वर घूमते घूमते उन्हें दूर पहाड़ पर एक गुफा दिखी। गुफा में उनकी मुलाकात उनके गुरु भाई किशन दास से हुयी। किशन से उन्होंने पूछा कि क्या वो भी उनके साथ आकर रह सकते हैं तो उन्हें जवाब मिला हाँ। तो अब एक यूरोपियन इंजीनियर भी गुफा में रहने लगा। बाबा नर्मदा शंकर को लगा कि किशन सुबह 4 उठकर कहीं जाते हैं तो एक दिन उन्होंने देखा कि ऊपर पहाड़ से उनके गुरु उतर कर आते हैं और ये सभी नर्मदा माँ में स्नान करने जाते हैं। सो शुरुआत हुयी गुरु से मिलने की। गुरु राघवनाथ महाराज यम नियम के बेहद कड़े गुरु थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में 12 करोड़ गायत्री मन्त्र और सवा लाख लखचंडी मंत्र पूरे किए।गुरु राघननाथ महाराज ने यूरोपियन इंजीनियर को शिष्य रूप में स्वीकार किया और उन्हें नाम दिया नर्मदाशंकर।
बाबा ने ब्रह्मचर्य का रास्ता चुना सो बन गए ब्रम्हचारी नर्मदाशंकर। अपने से गायत्री मन्त्र की दीक्षा ली और अष्टांग योग की बारीकियों पर साधना करने लगे। इस योग में यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधी के 8 चरण हैं। इनमें धारणा सबसे कठिन हैं जिसमे 64 प्रकार की ध्यान विधियां हैं जो मन को बुध्दि से अलग करतीं हैं और फिर बुद्धि को विचार शून्य करतीं हैं। बाबा ने उनामनि क्रिया को चुना जिसमें शरीर की सभी नाड़ियों को शुद्ध करने की विधि शामिल है, ध्यान है, कुण्डलिनी जागरण है और फिर शून्यता है। लेकिन परेशानी थी कि नर्मदा माँ के किनारे बनी गुफाएं गर्मी में बेहद गर्म हो जातीं थीं जिसके लिए उन्हें तप करने हिमालय जाना पड़ता था। दूसरी समस्या थी वीजा एक्सटेंशन। एक बार घर लौटना पड़ा और उसके बाद 5 साल का वीजा लेकर वो लौटे। उसके बाद उन्होंने खुले जंगल में तप करना शुरू किया। जंगली जानवरों, बेरहम मौसम और भूख से लगातार संघर्ष करना पड़ा।
नर्मदा माँ के किनारे रह रहे हों और नर्मदा परिक्रमा न करो तो योगी जीवन अधूरा है। लेकिन परेशानी ये थी कि वीजा ख़त्म हो रहा था और उन्हें वापस ऑस्ट्रिया लौटना था। वहां जाकर एक अदभुत घटना घटी। जब वो वीजा लेने भारतीय एम्बेसी गए और इंडियन काउंसल से मिले तो उन्होंने कमरे में घुसते ही कहा नर्मदे हर। काउंसल बहुत खुश हुआ क्योंकि वो भी जबलपुर का था। उन्होंने पूछा आप भारत कब तक रहना चाहते हो – बाबा ने जवाब दिया मरते दम तक। काउंसल ने उन्हें एक्स वीजा दे दिया जो अगले 17 साल तक उन्हें भारत में रखने के लिए काफी था और उसके बाद 2008 में उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली। इस दौरान उन्होने नर्मदा परिक्रमा पूरी की जिसे एक योगी 3 साल, 3 महीने और 11 दिन में पूरी करते हैं। नंगे पाँव उन्होंने 3300 किलोमीटर की ये लम्बी यात्रा पूरी की। इस यात्रा में आदिवासियों ने उनका सब कुछ ले लिया लेकिन खाना भी खुद ही खिलाया।
जंगल में रहते हुए उन्होंने गोरख सिद्धि भी की जिसमें 64 आसान और 24 मुद्राओं को एक आसान में सिद्ध करना होता है। अपनी साधनाओं के बाद उन्हें गुरु से आज्ञा मिली कि वो एक आश्रम बना सकते हैं और गऊ सेवा कर सकते हैं। गऊ सेवा में एक दिन गाय माता ने टक्कर दे मारी जिससे उनके कूल्हे की हड्डी टूट गयी। और उन्हें एक और ज्ञान मिला “take life as it is – nothing happens without reason “.
आज नर्मदा बाबा एक योगी के साथ एक किसान भी हैं और जब मिलते हैं तो मोटर इंजीनियरिंग पर भी बहुत बात होती हैं। नारायण बाबा उनके लिए कहते हैं कि नर्मदा के कंकर – हर कोई शिवशंकर ”
I had learn asecret from Maa Narmada; that there is no such thing as time?" Maa Narmada is everywhere at the same time, at the source and at the mouth, at the waterfall, at the current, in the ocean and in Sulphari jungle everywhere and that the present only exists for here.
Narmada is more than a river. She is the Holy Mother. She is Maa Narmada.
Those who gaze at Ganga at least once in its pure water are protected from thousands of dangers forever and get rid of sins of generations and are purified immediately.