कैवल्यधाम आश्रम - आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
कैवल्यधाम आश्रम - आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा
कैवल्यधाम आश्रम - आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा
नर्मदा मैय्या की कृपा से कल (दि १९/१/१९) कैवल्यधाम आश्रम से पु.गुरुजी पं.श्री अविनाश जी महाराज के सान्निध्य में "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" का श्रीगणेश हुआ। कोल्हापुर, मुंबई, ठाणे, पुणे, जालना, नागपुर, कोलकाता आदी स्थानों से पधारें नर्मदा भक्तों ने प्रातः काल ग्राम कटघडा के सुरम्य तट पर मैय्या में स्नान करके झारी भरी। ठीक ८ बजे संकल्प पूजन प्रारंभ हुआ। सभी परिक्रमावासी आयोजकों द्वारा दी गई पूजन सामग्री की पेटी में व्यवस्थित सामग्री देखकर प्रफुल्लित हो गए।
संकल्प एवं मैय्या के षोडशोपचार पूजन के पश्चात नर्मदा पुराणाचार्य पं. अनय रेवाशीष जी के मुखारविन्द से नर्मदा पुराण कथा प्रारंभ हुई। जिसमें मैय्या के प्राकाट्य का वर्णन हुआ, मैय्या को भूमी पर अवतरण के पूर्व अपने पिता भोलेनाथ से प्राप्त दिव्य वरदानों की व्याख्या सुनकर परिक्रमा वासी अभिभूत हो गए। परिक्रमा कलयुग का सर्वश्रेष्ट तप है, कथा में परिक्रमा महत्व पर प्रकाश डाला गया। दो घंटे तक परिक्रमावासी भक्त नर्मदा पुराण कथा का भक्ती भाव से श्रवण करते रहे। कथा पश्चात भोजन प्रसादी ग्रहण करने के बाद सभी ने परिक्रमा के दोनों स्लीपर कोच वाहनों में अपने लिये आवंटित शायिका (बर्थ) का निरीक्षण किया। जैन ट्रेवल्स (बडवाह) एवं विजयलक्ष्मी ट्रेवल्स (इन्दौर) के आरामदायक वाहनों को देखकर सभी प्रसन्न हुए। दोनों वाहनों का पूजन हुआ , ढोल ताशों की लय पर सभी के पैर थिरकने लगे ,आनंद उल्लास से भरे नृत्य के बाद सभी वाहनों में सवार हुए और दो बस तथा एक भोजन वाहन का काफिला मैय्या के परिक्रमा पथ पर आगे बढा। बडवाह, काटकूट होते दोनों वाहन अखिलेश्वर हनुमान मंदिर पर रुके, बाबा बजरंगी की दिव्य प्रतिमा का दर्शन किया, यहाँ पर भोजन वाहन पहले ही पहुंच चुका था, चाय प्रसादी तैय्यार थी, दर्शन और चाय प्रसादी ग्रहण करने के बाद वाहन आगे बढे उदयनगर , खातेगांव होते हुए सभी परिक्रमा वासी मैय्या के नाभी तीर्थ नेमावर पहुँचे, मैय्या के तट पर स्थित आदी गौड धर्मशाला में सभी ने विश्राम स्थल का निरीक्षण किया।
पं. आशीष जी ने डिजीटल डीजे साऊँड की तारों को जोडा, तीनों संगीत कलाकारों ने अपने वाद्ययंत्रों के सुर मिलाए और मधुर संगीत पर भोलेनाथ और मैय्या की आरती प्रारंभ हुई। आरती के बाद भोजन प्रसादी हुई। रात्री ९:३० के लगभग ठंड भी चमकने लगी और सभी अपने कमरों में बिस्तर पर दुबक गए। इस प्रकार मैय्या की कृपा से परिक्रमा यात्रा का प्रथम विश्राम हुआ।
*नर्मदे हर*
दि: २०/१/१९ कैवल्यधाम आश्रम द्वारा आयोजित *आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा यात्रा का द्वितीय दिवस।
नाभी तीर्थ नेमावर की नर्मदा तट पर स्थित आद्य गौड ब्राह्मण धर्मशाला में सभी परिक्रमावासी नित्यकर्म से निवृत्त होकर प्रातः ठीक ६:३० बजे नर्मदा स्नान के लिये निकल पडे। यक्षराज कुबेर की तपस्थली नेमावर के सुंदर घाट पर मैय्या का दिव्य रूप देखकर सभी प्रफुल्लित हो गए। ठंड का संकोच छोडकर सभी ने मैय्या के जल में जैसे ही प्रवेश किया ,मैय्या के कुनकुने जल ने सभी को आनंद से साराबोर कर दिया। मैय्या के विस्तृत पात्र में सूर्यनारायण की किरणों ने प्रवेश किया और मैय्या के जल में सिन्दूरी आभा देखकर सभी आत्मविभोर हो गए। स्नान पश्यात सभी ने अपनी झारी को आधा खाली करके पुनः भर लिया। मैय्या का *महाश्रृंगार पूजन* हुआ।सभी की नाभी कुंड के दर्शन की इच्छा तो हुई परंतू परिक्रमा में होने से नहीं जा पाए। सिद्धनाथ भगवान के पुरातन दिव्य शिवालय में भोलेनाथ के दर्शन करके सभी पुनः धर्मशाला पहुँचे, तब तक पं. अंकित और पं. आशीष डिजिटल डीजे साऊँड सिस्टम को व्यवस्थित कर दिया था। पं. अनय रेवाशीष जी ने सर्वप्रथम सभी के द्वारा मैय्या का षोडशोपचार पूजन करवाया। पृथ्वी भैय्या राठौर ने अपने सिंथेसाइजर के सुर मिलाए , कार्तिक राठौर ने अपनी ढोलक पर थाप मारी, अमित संदोनी ने ऑक्टापेड के साथ आसन जमाया और नर्मदापुराणाचार्य पं. अनय रेवाशीष जी ने मंगलाचरण प्रारंभ किया। मधुर संगीत की लहरियों के साथ नर्मदाष्टक में सभी डोलने लगे।
कथा प्रारंभ हुई , यक्षराज कुबेर की तपस्या , कुबेर के द्वारा वरदान में लंका की प्राप्ती और रावण द्वारा कुबेर से लंका छीनने के प्रसंग का वर्णन हुआ। इस प्रसंग के बाद पृथ्वी भाई ने मैय्या का भजन प्रस्तुत किया तो सभी परिक्रमा वासी अपना स्थान छोडकर नृत्य करने लगे।
नृत्य के आनंद के बाद कथा में नेमावर की सिद्ध भूमी में चारों सनत्कुमारों ने ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थि और सन्यासियों को दिये गये उपदेश की विस्तृत व्याख्या की गई। १०:३० बजे मैय्या की संगीतमय आरती हुई, सभी ने भोजन प्रसादी ग्रहण की और नेमावर से दोनों स्लीपर कोच वाहन अपने मार्ग पर चल पडे।
नेमावर से दस किमी दूर संदलपुर में एक दुःखद सूचना के कारण वाहनों को रोकना पडा। औरंगाबाद के परिक्रमावासी श्री पूनमचंद जी बमनावत की माता का निधन हो गया था , इसलिये उन्हें इस आनंद यात्रा से विदा लेना पडी। सभी ने दुखी मन से औरंगाबाद के लिये विदा किया और पुनः वाहन सडकों पर दौड पडे।
सलकन पुर में बिजासन मैय्या के दर्शन किये, बांद्राभान घाट पर मैय्या के सुंदर स्वरूप का दर्शन किया। बाडी , बरेली होते हुए दोनों वाहन मैय्या के तट पर स्थित ग्राम मांगरोल के सुंदर रेवा मंदिर धाम में रात्री विश्राम के लिये रूक गए। मैय्या की आरती के पश्चात सभी नींद आगोश में खो गए।
*नर्मदे हर*
दि २१/१/१९ (तृतीय दिवस):-
कैवल्यधाम आश्रम की "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" के दोनों वाहनों ने दि २०/१/१९ की रात्रीकाल माँ नर्मदा के तट पर ग्राम मांगरोल में पडाव डाला और वहाँ से दि २१/१/१९ को प्रात: प्रस्थान किया ,परंतू यात्रा के संचालन की व्यस्तता और थकान के कारण समय नहीं मिल पाया।आज दि २२/१/१९ की रात्री काल में अमरकंटक के सुरम्य वातावरण में लिखने के लिये समय मिल पाया।
दि २१/१/१९ (तृतीय दिवस):- मांगरोल के रेवामंदिर के प्रांगण में ही मैय्या के स्वच्छ घाट पर सभी परिक्रमावासियों ने प्रातः काल नर्मदा स्नान किया।आज थंड थोडी कम थी, इसलिये स्नान में आनंद अधिक आया।
ठीक ७:३० बजे पं अनय रेवाशीष जी ने सभी परिक्रमावासीयों से मैय्या का षोडशोपचार पूजन करवाया और उसके बाद संगीतमय नर्मदा पुराण कथा प्रारंभ हुई।
कथा में बताया की ग्राम मांगरोल मंगल की तपोभूमी है, यहीं पर तपस्या करके मंगल का ग्रहमंडल में समावेश हुआ। केतू और बुध ने भी मैय्या के तट पर तपस्या करके ही ग्रहमंडल में समाविष्ट होने का वरदान प्राप्त किया था।आज परिक्रमा में ब्रह्मा जी की तपस्थली बरमान घाट के दर्शन होने वाले थे इसलिये मांगरोल में ही ब्रह्मांड (बरमान) घाट के महत्व का वर्णन किया गया। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में वरिष्ठता के विषय में विवाद हुआ, बाद में ब्रह्मा जी को पश्चाताप हुआ और इस दोष का निवारण करने के लिये बरमान घाट पर मैय्या की धारा के मध्य में स्थित टापू पर तपस्या करके दोषमुक्त हो गए।
मांगरोल के घाट पर संगीत की धुन पर थिरकते हुए सभी मैय्या के प्रेम में आनंद मग्न हो गए। गीत, संगीत, नृत्य, आध्यात्मिक चर्चा, संत दर्शन, पैदल परिक्रमावासियों का सहवास सभी को आनंदित कर रहा था।
कथा के बाद भोजन प्रसादी की थाली में आलू बडा देखकर सभी की जठराग्नी प्रबल हो गई।आज के भोजन प्रसादी में बस के परिक्रमावासियों के साथ लगभग ३० पैदल परिक्रमावासी भी सम्मिलित हो गए।
वाहन का हॉर्न बजा और सभी बरमान घाट की ओर बढ चले। बरमान घाट पर चल रहे मेले के कारण भीड अधिक थी।सभी ने ब्रह्मा जी की नर्मदा जी के मध्य, टापू पर स्थित तपस्थली के दूर से दर्शन किये। बरमान घाट पर बस में परिक्रमा कर रहे श्री श्याम जी गुरव की भेंट पैदल परिक्रमा कर रही पुणे निवासी उनकी बडी बहन और जीजाजी से हो गई और श्याम जी के साथ सभी बस परिक्रमावासी , पैदल परिक्रमावासी के दर्शन से धन्य हो गए। बरमान घाट पर चाय प्रसादी ग्रहण करने के बाद दोनों वाहन जाबाली ऋषि की तपोभूमी जबलपुर की ओर चल पडे। रात्री ९ बजे ग्वारी घाट (जबलपुर) के समीप तपस्वी संत श्री कालिकानंद जी सरस्वती द्वारा स्थापित काली धाम आश्रम पहूँचे। भोजन वाहन पहले ही पहुँच चुका था, सभी शीघ्र ही भोजन प्रसादी गहण कर विश्राम करने चले गए।
दि २२/१/१९ (चतुर्थ दिवस):- प्रातः काल सभी काली घाट स्नान करने पहूँचे, इस परिक्रमा से पूर्व दि:-३०/११/१८ से प्रारंभ हुई यात्रा के परिक्रमावासी श्री संजय जी कोकीळ (ठाणे) को यहाँ दिव्य नर्मदेश्वर की प्राप्ती हुई थी, इस बार भी दो तीन परीक्रमावासीयों को सुंदर नर्मदेश्वर शिवलिंग की प्राप्ती हुई। स्नान के पश्चात सभी पुनः काली धाम के भव्य हॉल में पहूँचे, यहाँ राजेश जी धनगर व्यासपीठ को व्यवस्थित कर चुके थे, पं अंकित देशमुख ने केमेरे को संभाला और पुनः आनंद उत्सव प्रारंभ हो गया।
आज नर्मदा पुराण कथा में नर्मदा जल के सेवन ,स्नान, और दर्शन के महत्व का प्रतिपादन किया गया, नर्मदा जल की व्याख्या करते हुए दो घंटे कब बीत गए ,पता ही नहीं चला। वर्तमान कलयुग में भी नर्मदा जल ऑक्सीजन से परिपूर्ण है,इसीलिये मैय्या का जल एशिया खंड में सबसे शुद्ध है। इसीलिये कहा गया है:- *ग्राम्येवा यदिवारण्ये नर्मदा सर्वत्र पुण्यदा* ।
भोजन प्रसादी और सहृदय संत पु. श्री कालिकानंद जी सरस्वती का आशिर्वाद प्राप्त करके दोनों स्लीपर कोच वाहन जबलपुर महानगर से होते हुए विंध्याचल के बलखाते रास्तों पर आगे बढने लगे , मनमोहक विंध्याचल की घाटीयों से होते हुए जोगी टिगरिया पहूँचे। माँ नर्मदा का बाल स्वरूप देखकर सभी के मुख से अपने आप *नर्मदे हर* का जयकारा गूंज उठा। यहाँ पर मुंबई के श्री भीमराव जी निकम, कोल्हापुर के ८१ वर्षीय श्री पुंडलीक जी बेलेकर और कोल्हापुर के ही डॉ. श्री चंद्रकांत जी पाटिल ने अपनी भावनाओं को केमेरे में कैद करवाया। नाशिक के श्री शरद जी रहाणे ने कहा की उन्हे विश्वास नहीं था की उनकी धर्मपत्नी शारीरिक कठिनाईयों के चलते यह यात्रा कर पाएगी, परंतू नर्मदा मैय्या की कृपा और कैवल्यधाम आश्रम की आध्यात्मिक यात्रा के आनंदमय वातावरण से यात्रा व्यवस्थित रूप से हो रही है।
जोगी टिगरिया के बाल स्वरूप को निहारते हुए सभी तृप्त हो रहे थे। नागपुर के प्रो. श्री हरिहर घिमे जी तो मैय्या का जल पीते हुए मानो अगस्त्य मुनि का अवतार लग रहे थे। वाहन आगे बढे, सायंकाल दोनों बसों में ,प्रतिदिन की सामुहिक आरती का नियम तोडते हुए अलग अलग आरती हो रही थी ,परंतू मैय्या की इच्छा अपने सभी बालकों को साथ में आरती करवाने की थी, इसलिये मैय्या ने लीला रची और जैन बस का टायर पंचर हो गया। सभी ने मैय्या की आज्ञा का पालन किया, घने जंगल में *जय जगदानंदी* गूंज उठा। आरती होने तक स्टेपनी फिट हो चुकी थी। अमरकंटक से संजय श्रीवास जी के फोन आना चालू हो गए थे। गाडियां अमरकंटक के रास्ते को नापते हुए ठीक ९:३० बजे बर्फानी धाम पहुँचे। भोजन और रात्री विश्राम हुआ।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
*कैवल्यधाम आश्रम* दि:- १९/१/१९ से दि:-५/२/१९ तक द्वितीय "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" का आयोजन किया। दि १९ से २२ तक दैनंदिन लेखन प्रस्तुत हो चुका है, परंतू यात्रा की व्यवस्था की व्यस्तता एवं थकान के कारण आगे का विवरण प्रस्तुत नहीं हो पाया। दि ५/२/१९ को परिक्रमा के सुखद समापन के बाद समय मिल पाया तो अब विस्तार से विवरण प्रस्तुत कर रहे है।
दि २३/१/१९ :- रात्री काल अमरकंटक के सुंदर बर्फानी धाम आश्रम सभी परिक्रमावासी निद्राधीन हो गए। दि २३/१/१९ :- आज नर्मदा पूजन और कथा आधा घंटा देरी से प्रारंभ हुई, आज का रात्री विश्राम भी यहीं अमरकंटक में होने वाला धा, इसलीये सभी हलचल आराम से हो रही थी।
पं. अनय जी की नर्मदा वाणी प्रारंभ हुई, नर्मदाष्टक की धुन पर मंत्रमुग्ध होकर सभी माँ नर्मदा के तट की आध्यात्मिक गहराइयों का वर्णन सुनने के लिये तत्पर हो गये।
कपिल धारा में कपिल मुनि की तपस्या, ऋषी दुर्वासा जी द्वारा माँ नर्मदा के प्रवाह को रोकने की चेष्टा के कारण बनी सुंदर दूधधारा, दुर्वासा ऋषि की तपस्या, ज्वालेश्वर तीर्थ में शिव जी द्वारा बाणासुर के उडते पुर को ज्वाला स्वरूप में गिराना, जोहिला द्वारा नर्मदा मैय्या को धोखा देना, माँ नर्मदा का विरुद्ध दिशा में गमन, सोनभद्र का उद्गम, आदी प्रसंगों का मनोहारी संगीतमय वर्णन हुआ। भोजन प्रसादी ग्रहण करने के बाद सभी चार पहिया वाहन से अमरकंटक पर्वत क्षेत्र के दर्शन करने के लिये सज्ज हो गए। कपिल धारा, दूधधारा के मनोहारी दर्शन किये, ५१ टन वजनी भव्य अमरेश्वर लिंग के दर्शन से सभी आश्चर्यचकित हो गए, ज्वालेश्वर तीर्थ और जोहिला उद्गम के दर्शन किये , सायं काल सभी रेवाकुंड में पहुँचे, सुंदर कोटी तीर्थ रेवाकुंड क्षेत्र में पं .अनय जी एवं स्थानीय गाईड श्री पाठक जी ने सुनिश्चित किया कि कोई परिक्रमा वासी भूल से मैय्या की गुप्त धारा उल्लंघन न कर ले। माँ पार्वती के दक्षिण नितंब पतन से बने शक्तीपीठ के दर्शन किये, दूर से ही बंसेश्वर के दर्शन किये, निकट जाने पर परिक्रमा खंडित होने का भय रहता है।ऐसी मान्यता है कि माँ नर्मदा मंदिर के बाहर स्थापित हाथी की प्रतिमा के पैरों के नीचे से निकलने पर व्यक्ती पाप मुक्त हो जाता है, सभी परिक्रमा वासी प्रयास में लग गए, हंसी ठिठोली का वातावरण बन गया।सूर्यनारायण अस्ताचल गामी हो गए।
संपूर्ण भ्रमण के पश्चात सभी पुनः बर्फानी धाम पहुँचे। चाय प्रसादी के बाद पु. गुरुजी पं श्री अविनाश जी महाराज के मुखारविन्द से श्रीमद्भगवत् गीता की ज्ञान गंगा प्रवाहित हुई। सायंकाल परिकमा दल की महिला शक्ती द्वारा स्वादिष्ट पूरण पोळी बनाई गई, अमरकंटक की झुरझुराती ठंड में गरमा गरम पुरण पोळी आनंद का पर्याय बन गई। सभी दिन भर की मधुर स्मृतियों को हृदय में स्थान देकर अपने अपने कमरों में विश्राम के लिये चले गए।
क्रमशः
*नर्मदे हर*
दि २४/१/१९:- आज का दिन "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" के लिये महादुःखद दिन रहा। प्रातः काल संगीतमय नर्मदा पुराण प्रारंभ हुआ , माई की बगिया, सोनमूढा सोनभद्र के उद्गम का वर्णन हुआ, भक्ती संगीत प्रारंभ हुआ, सभी अपने स्थान पर आरती पूजन के लिये विराजमान हुए, आज की आरती वाहन चालक श्री राजू दरबार और दौलत ठाकुर करने वाले थे, आरती के मंत्र जैसे ही प्रारंभ हुए, नाशिक निवासी श्री शरद जी रहाणे पास ही बैठी अपनी धर्मपत्नी की गोद में गिर गए, सभी परिक्रमावासी उन्हे संभालने के लिये उठे । कोल्हापुर के डॉ.श्री चंद्रकांत पाटिल ने तुरंत अस्पताल ले जाने की सलाह दी। उन्हे तुरन्त बर्फानी धाम के पास में ही स्थित शासकीय चिकित्सालय में ले जाया गया, जहाँ प्रभारी चिकित्सक डॉ. श्री सिंह ने श्री रहाणे के श्रीधाम गमन की दुःखद घोषणा करी। हृदय गती रुक जाने के कारण श्री रहाणे जी शिवलोक वासी हो गए।
शास्त्रों द्वारा कहा गया है कि अंत काल में प्रभू का नाम मुख पर आ जाए तो परमगती प्राप्त होती है,ऐसा ही श्री रहाणे जी के साथ हुआ। अमरकंटक मोक्ष दायिनी नगरी है, और नर्मदा तट मुक्ती दाता हेै।जगज्जननी माँ नर्मदा श्री रहाणे जी को अपने चरणों में स्थान प्रदान करें, यही माँ रेवा से प्रार्थना है।
श्री रहाणे जी के पार्थिव शरीर को विशेष वाहन एवं आश्रम के दो सेवकों के साथ उनके निवास स्थान भेजा गया।सभी परिक्रमावासियों के नेत्र द्रवित हो गए। वाहन नाशिक की ओर जाने के बाद सभी बुझे हुए दुखित मन से बर्फानी धाम से चार पहिया वाहन में बैठे और माई की बगिया पहुँचे, तट परिवर्तन एवं श्रृंगार पूजन हुआ। इस दुःखद घटना के बाद कोई भी भ्रमण की स्थिती में नहीं था। सभी रेवाकुंड गौमुख पहुँचे, और वहाँ पर वर्षा प्रारंभ हो गई, मानो प्रकृती भी श्री रहाणे जी को अश्रुपूर्ण विदाई दे रही हो। भरी बारिश में सभी बसों में सवार हुए, और नर्मदा तट पर विश्राम स्थल महाराजपुर पहुँचकर निद्राधीन हो गए।
*नर्मदे हर*
दि:-२५/१/१९ आज *"आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा"* की प्रातः
महाराजपुर के घाट पर हुई। रात को हुई वर्षा के कारण ठिठूरन बढ गई थी। माँ नर्मदा भी कोहरे की चादर में दुबकी प्रतीत हो रही थी। जिस स्थान पर विद्या की देवी माँ सरस्वती ने अपने कुब्ज स्वरूप से मुक्ती पाने के लिये तपस्या करी, उसी "सरस्वती प्रस्त्रवण तीर्थ" के सरस्वती,बंजर, नर्मदा सुंदर त्रिवेणी संगम घाट पर सभी परिक्रमावासियों ने पुण्य स्नान किया।यहीं पास में ही हेमटेकडी से घृत नाला का भी संगम हो रहा है। पूर्व काल में देवताओं के द्वारा यज्ञ में दी गई आहूती का घी माँ नर्मदा की धारा में इसी घृतनाले के द्वारा आकर मिला था। इस तीर्थ में स्नान करके सभी अभिभूत हुए।
कल की दुखद घटना के कारण आज पु.गुरुजी और पं.अनय जी समेत सभी परिक्रमा वासियों ने संगीतमय कथा के कार्यक्रम को स्थगित किया, मात्र माँ नर्मदा का षोडशोपचार पूजन कर,सभी ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया और वाहनों में सवार हुए। दोपहर में दोनों वाहन झोतेश्वर के दिव्य ६४ योगिनी मंदिर प्रांगण में रूके।शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा स्थापित दिव्य स्थान को देखकर सभी प्रफुल्लित हुए। यहाँ के बंदर बहुत शालीन और सभ्य है। मानवों द्वारा दिये गए खाद्य पदार्थ को बडे प्रेम और अनुशासन से ग्रहण करते हेै। पहले सभी डरे, परंतू बाद में मित्रवत व्यवहार हो गया, बदलापुर के श्रीकांत कुलकर्णी जी तो मानो बच्चे ही बन गए।
चाय प्रसादी और ग्रुप फोटो के बाद वाहनों ने गती पकडी , सायंकाल गाडरवाडा के महाराणा प्रताप महाविद्यालय के प्रांगण में दोनों स्लीपर कोच रूके। सायंकालीन आरती के पश्चात ,परिक्रमावासियों को सिखाए गए माँ नर्मदा के सिद्ध श्लोकों की परीक्षा प्रारंभ हुई, कुछ पास हुए कुछ कच्चे निकले। भोजन प्रसादी के बाद वाहन होशंगाबाद की ओर बढ गए, पिछली परिक्रमा की तुलना में वाहन होशंगाबाद जल्दी पहुंच गए। ठंड ने असर दिखाना प्रारंभ कर दिया था। सभी कंबल की आड में दिन भर की मधुर स्मृती को हृदय में दबाकर सो गए।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि:- २६/१/१९, "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" का आठवाँ दिवस
नर्मदापुरम (होशंगाबाद) में पारा लुडककर 3℃ पर आ गया, सभी ठिठुरने लगे, गर्मागरम चाय की मांग बढती ही जा रही थी। सूरज चढने पर भी ठंड से राहत नहीं मिल रही थी। तभी सभी परिक्रमावासीयों में उत्साह का संचार करने के लिये जैन धर्मशाला में लगभग ५० नन्हे मुन्नों का आगमन हुआ। आज गणतंत्र दिवस मनाने सभी बालगोपाल एकत्रित हुए। हम बडे भी इन्हें देखकर अपने बचपन की स्मृतियों में खो गए। आठ दस छोटी बालिकाऐं सज धज कर सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुती देने आई थी। सजी धजी बालिकाऐं,पुराण ग्रंथ में माँ नर्मदा के वर्णित स्वरूप *सुद्विजा सुमुखी बाला सर्वाभरण भूषिता* का साक्षात मूर्तिमंत कन्या स्वरूप प्रतीत हो रही थी। परिक्रमावासियों की कन्या पूजन की इच्छा पूरी हुई, पु.माताजी कविता देवी जी ने तुरंत सभी बच्चों के लिये चॉकलेट, बिस्किट बुलवाए।कन्या देवीयों को सभी परिक्रमावासियों की ओर से ढेर सारी भेंट वस्तुऐं प्राप्त हुई, तो उनके चेहरे खिल उठे। जन गण मण के लिये सभी सावधान की मुद्रा में खडे हो गए, और सभी ने नन्हे मुन्नों के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद उठाया।
धर्मशाला के विस्तृत हॉल में सभी मैय्या के पूजन और कथा के लिये एकत्रित हो गए। पं. अनय जी ने आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर कथा को देशभक्ती से जोडा। माँ नर्मदा का तट हमें पापमुक्त ही नहीं करता ,अपितु देशभक्ती भी सिखाता है। मैय्या के तट पर ग्राम हतनावर (जि:धार म.प्र.) में दारूक नामक ब्राह्मण ने अनेक वर्ष तक सौत्रामणि यज्ञ किया। जनमानस में देशभक्ती का संचार, मातृभूमी की रक्षा के लिये प्राणों की आहुती देने की भावना ही सौत्रामणी यज्ञ हेै।
आज कथा में देशभक्ती छाई रही।पं.अनय जी ने "ए मेरे वतन के लोगों" गीत गाया तो सभी की आंखे गीली हो गई। साथ में परिक्रमा कर रहे भूतपूर्व जलसेना अधिकारी मुंबई के श्री विजयशंकर जी पंवार का सम्मान किया गया।संपूर्ण परिक्रमावासी दल देशभक्ती मय हो गया।
भोजन प्रसादी के बाद सभी ई.स. 1885 में 1800₹ की लागत से निर्मित भव्य सेठानी घाट पर भ्रमण के लिये चले गए। अंग्रेज अफसर एन.पी. रेक्टेन की प्रेरणा से नगर सेठानी जानकी देवी द्वारा निर्मित यह घाट ,नर्मदा तट पर सबसे विशाल घाट है। होशंगाबाद नगर के मध्य में होने के कारण यहाँ हमेशा चहल पहल रहती है। घाट पर भ्रमण के बाद सभी होशंगाबाद नगर में भ्रमण करने चले गए।सायंकाल सभी एकत्रित हुए तो अपनी अपनी खरीददारी एकदूसरे को बताने लगे।होशंगाबाद में मिलने वाली सभी वस्तुओं के कम दाम पर सभी आश्चर्यचकित थे।
सायंकाल पु. गुरुजी पं श्री अविनाश जी महाराज के सारगर्भित प्रवचन हुए। श्रीमद्भगवतगीता में वर्णित तत्व वर्तमान में भी व्यवहारिक हेै,इन तत्वों का पालन करने से मनुष्य अपना जीवन सफल कर सकता है।
प्रवचन के पश्चात भोजन प्रसादी हुई। ठंड अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी।अब ठंड तकलीफ दायक हो गई थी। गर्म कपडे और कंबल कम पडने लग गए। सभी ठिठुरते हुए, ठंड को कोसते हुए, आरामदायक निद्रा की कामना करने लगे।
*नर्मदे हर*
दि:- २७/१/१९ - "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" का नवम दिवस,
नर्मदापुरम (होशंगाबाद) की कडकडाती ठंड ने सभी को बेहाल कर रखा था।चुभने वाली सर्द हवा असहनीय हो रही थी,फिर भी परिक्रमावासी समय पर पूजन और कथा के लिये समय पर तैय्यार थे।धन्य है ऐसे मैय्या के भक्त, उन्हे हृदय से नमन है।
कथा प्रारंभ हुई, आज नाभिपट्टन (हंडिया) होते हुए ओंकारेश्वर पहूँचना था ,इसलिये कथा में इन्ही तीर्थों के महत्व पर प्रकाश डाला गया। नाभिपट्टन (हंडिया) के रिद्धनाथ भगवान की स्थापन यक्षराज कुबेर के द्वारा की गई, यहीं पर की गई तपस्या के फलस्वरूप धनपती कुबेर को नवनिधी, रत्नालंकार से युक्त "अलकापुरी" की प्राप्ती हुई।नाभिपट्टन (हंडिया) को "मातृगया तीर्थ" की भी संज्ञा प्राप्त है।यहाँ पर श्राद्धपक्ष में तर्पण करने पर अपने मातृ पक्ष के समस्त अतृप्त पितरों को सद्गती प्राप्त होती है।
इसके बाद कथा में माँ नर्मदा के प्रवाह में एकमात्र ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर के महत्व का वर्णन हुआ। पर्वतराज विंध्याचल ,शिव जी को प्रसन्न करने के लिये ओंकार पर्वत पर निराकार साधना करते थे और नर्मदा के दक्षिण तट पर साकार स्वरूप में पार्थिव शिवलिंग पूजन करते थे। तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ की ज्योती के दो दिव्य स्वरूप हुए, जिसे वर्तमान में *ओंकारेश्वर* और *ममलेश्वर* के नाम से जाना जाता है।
संगीतमय आरती और नर्मदाष्टक परिक्रमावासियों का मन मोह रहे थे।कुछ तो अपने मोबाईल पर पूरी कथा रिकॉर्ड कर रहे थे। कुछ वीडियो बना रहे थे। इसी आनंदमय वातावरण में भोजन प्रसाद के बाद सभी बसों में विराजमान हुए और काफिला आगे बढ़ा। दोपहर में सभी मैय्या की नाभी के दक्षिण तट पर इन्दौर नागपुर हाईवे पर स्थित रिद्धनाथ तीर्थ हंडिया पहुँचे। यहाँ पर मैय्या का महाश्रृंगार पूजन हुए, पूजन के वस्त्र और श्रृंगार सामग्री घाट पर उपस्थित जरूरतमंदों को वितरित की गई। सभी ने अपनी झारी को आधा खाली करके पुनः भर लिये। पुरातन शैली में बने नक्काशीदार परंतु उपेक्षित मंदिर में विराजित भगवान रिद्धनाथ के दर्शन किये, चाय प्रसादी के बाद दोनों स्लीपर कोच बसें पुनः सडकों पर दौड पडी।
सायंकाल परिक्रमावासी दल दादाजी धूनी वाले की नगरी खंडवा पहुँचे। धूनी वाले दादाजी की *अखंड धूनी* को सभी ने नमन किया, धूनी की ऊष्मा से सभी में नवीन ऊर्जा का संचार हुअा। पास में ही स्थित *तुळजा भवानी* के दिव्य स्वरूप को निहारकर सभी कृतकृत्य हो गए।इन्दौर रोड पर सभी ने बस में बैठे बैठे ही प्रसिद्ध पार्श्वगायक *किशोर कुमार* की समाधी के दर्शन किये।वाहनों ने पुनः गति पकडी और रात्री ९:३० बजे सिद्ध श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर महातीर्थ के ब्रह्मपुरी घाट पर बने पार्किंग स्थल पर इंजिनों को विश्राम दिया गया।
क्रमशः,,,,,
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि :-२८/१/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का दसवाँ दिन)
श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर की सुहानी प्रातः काल । हालांकी ठंड होशंगाबाद की तुलना में कम थी, परंतु असहनीय थी ।प्रातः काल सभी ने ब्रह्मपुरी घाट पर नर्मदा स्नान किया, ममलेश्वर भगवान के दर्शन किये, ओंकारेश्वर बाबा के मंदिर के शिखर को नमन किया। संगीतमय कथा का मंच सज चुका था, तीनों संगीतकारों ने अपना स्थान ग्रहण किया। डिजिटल साऊंड सिस्टम के परीक्षण के बाद नर्मदा मैय्या की महिमा का बखान प्रारंभ हुआ।
आज कथा में ओंकारेश्वर नरेश महाराज मांधाता के जन्म का वर्णन हुआ। सूर्यवंशी महाराज युवनाश्व ने पुत्र प्राप्ती के लिये यज्ञ का आयोजन किया, रात्री काल में प्यास लगने पर महाराज ने अज्ञानतावश यज्ञशाला में रखे अभिमंत्रित जल को पी लीया। प्रातः काल यह ज्ञात होने पर यज्ञकर्ता विद्वान ऋषि मुनि चिंतित हो गए, क्योंकी विधी लेख के अनुसार अब महाराज युवनाश्व के उदर से ही बालक का जन्म होना सुनिश्चित था, और वैसा ही हुआ। जन्म के बाद प्रमुख चिंता यही, की बालक का धाता (दूध पिलाने वाला) कौन होगा। ऐसे समय इन्द्र ने अपनी ऊँगली बालक के मुख में दी और कहा "माम् धाता" अर्थात मै दूध पिलाऊँगा। तब से उस नवजात बालक का नाम मांधाता हुआ, और आगे चलकर वही बालक चक्रवर्ती सम्राट त्रसदस्यु महाराज मांधाता बने। वर्तमान मेंओंकारेश्वर मंदिर के समीप महाराज मांधाता की गादी भी पूजनीय है।
कुछ वर्ष पूर्व तक पुरुष द्वारा संतानोत्पत्ती ,पुराणों की कपोल कल्पना लगती थी, और अन्य धर्म के ही नहीं अपितु अपने ही धर्म के तथाकथित प्रगतीशील बुद्धी वादीयों द्वारा उपहास उडाया जाता था। परंतू अमेरिका के R.Y.T Hospital (Dwane medical centre) में Mr. Lee Mingwei के प्रथम पुरुष पिता बनने के बाद पुराण की उपरोक्त कथा की पुष्टी विज्ञान द्वारा की गई। सनातन धर्म की प्रत्येक मान्यता और प्रतीकों के पीछे गहन विज्ञान है, परंतू हमारे ही धर्मानुयायी हमारे ही धर्म की अनर्गल बुराई करने में व्यस्त है, जो चिंता का विषय है। पं. अनय जी द्वारा कथा में सनातन धर्म की अनेक मान्यता और कर्मकाण्ड का वैज्ञानिक विश्लेषण किया, तो सभी परिक्रमावासी श्रोता अभिभूत हो गए।
भोजन प्रसादी के बाद माँ नर्मदा की पवित्र धारा और ममलेश्वर भगवान के दर्शन करके परिक्रमावासियों ने आगे की यात्रा प्रारंभ करी। दोपहर में दोनों वाहन ग्राम तेली भट्टयान के शासकीय विद्यालय के प्रांगण में रुके। सभी हर्षित थे की अब उन्हे नर्मदा खंड के वयोवृद्ध तपोनिष्ठ संत पुज्यपाद सियाराम बाबा के दर्शन होने वाले है। करीब १ k.m पैदल चलकर नर्मदा तट की कुटिया में संत दर्शन होने के बाद सभी ने अपने जीवन को सार्थक पाया। कोई भी दिव्य संत के चरणों से अलग नहीं होना चाहता था। आश्रम के सेवकों ने सभी को संत के हाथों से बनी चाय और सदाव्रत दिया। वाहन पुनः मार्गस्थ हुए।
ग्राम मगरखेडी के ग्रामीणों ने सभी परिक्रमावासियों का चाय प्रसादी से स्वागत किया। ठीकरी से आगे बढने पर कैवल्यधाम आश्रम के सदस्य श्री वीरेन्द्रसिंह जी सोलंकी अपने पेट्रोल पंप पर सहयोगियों के साथ परिक्रमावासियों के स्वागत के लिये सज्ज थे। पेट्रोल पंप पर ही मैय्या की संध्याकालीन आरती हुई , पेट्रोल पंप के कर्मचारी भी उत्साह से आरती में सम्मिलित हुए। बालभोग और चाय प्रसादी के बाद वाहन निर्माणाधीन राजमार्ग के ऊबड खाबड रस्ते पर हिचकोले खाते हुए रात्री विश्राम स्थल बडवानी की ओर बढने लगे। रात्री के लगभग ९ बजे बडवानी पहुँच कर सभी परिक्रमा वासी हलकी भोजन प्रसादी ग्रहण करने के बाद निद्राधीन हो गए।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*पुलवामा के शहीदों को नमन*
*नर्मदे हर*
दि २९/१/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का ग्यारहवाँ दिवस) -
बडवानी भीषण गर्मी के लिये प्रसिद्ध है, ग्रीष्म ऋतु में ताप मान 47-48℃ तक जाना सामान्य बात हेै। यहाँ पर इतनी ठंड की आपेक्षा नहीं थी। प्रातः काल सभी बडवानी से ६ k.m दूर रोहिणी तीर्थ (ग्राम ,कुकरा, राजघाट) नर्मदा स्नान के लिये गए। सरदार सरोवर के कारण निर्मित विशाल जलराशी को देखकर सभी के कंठ से एक स्वर में "नर्मदे हर" का जयघोष गूंज उठा। नर्मदा स्नान के पश्चात घाट पर ही मैय्या की विशाल जलराशी के समीप पूजन प्रारंभ हुआ। मैय्या के जल के इतने निकट पूजन करके सभी को मैय्या की कृपा की स्पष्ट अनुभूती हो रही थी।
यही वो तट है जहाँ चंद्रमा की पत्नी और दक्ष प्रजापती की कन्या रोहीणी ने अपने पति चन्द्रमा की राजक्ष्यमा रोग से मुक्ती के लिये तपस्या करी थी, और माँ नर्मदा तथा शिवशंकर के आशिर्वाद से चंद्रमा रोगमुक्त हुए।
स्नान, पूजन के बाद सभी पुनः बडवानी आए ,बाल भोग प्रसादी के बाद प्रवास प्रारंभ हुआ। मध्यप्रदेश की सीमा को छोडकर वाहनों ने महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश किया, "जय महाराष्ट्र" का उद्घोष हुआ और दोपहर में वाहन तापी तट पर पुष्पदंत की नगरी प्रकाशा में रुके। प्रकाशा को दक्षिण काशी की संज्ञा प्राप्त है। यहीं पर पुष्पदंत ने भोलेनाथ की दिव्य स्तुती करी ,जिसे सभी भक्त "शिव महिम्न स्त्रोत्र" के नाम से जानते है। सभी ने पुष्पदंतेश्वर महादेव के दर्शन किये।
भोजन प्रसादी बन रही थी , और दोनों वाहनों के बीच सभी परिक्रमावासी आसन लगा कर बैठ गए। पं. अनय जी ने बिना संगीत के ही सत्संग प्रारंभ कर दिया। यहाँ सत्संग चर्चा का विषय "शूलपाणी की झाडी" पर केंद्रित रहा।बडवानी के बाद शूलपाणेश्वर की झाडी प्रारंभ होती है। बस से यात्रा करने पर भी उस भीषण झाडी की थोडी बहुत कल्पना हो जाती है, जिसके लुटेरों का भय आज भी पैदल परिक्रमावासियों को रहता हेै। हालांकी वर्तमान में लूट आदी की घटनाओं पर विराम लग चुका है। नर्मदा का तट प्रेम का तट है, उस निर्मल तट पर परिक्रमावासियों से लूटपाट जैसी घटना के दो प्रमुख कारण समझ में आते है।
१:- शूलपाणी के वनवासी बंधूओं को शिव प्रेरित रूद्रगण माना जाता है, जिन्हे स्वयं भोलेनाथ ने परिक्रमावासियों की परीक्षा के लिये नियुक्त किया है।
२:- शूलपाणी की झाडी रावण, मेघनाद, हिरण्याक्ष जैसे महादानवों की साधना स्थली रही है, अतः इनकी राक्षसी प्रवृत्ती की नकारात्मक ऊर्जा, यहाँ के वनवासियों की बुद्धी को भ्रमित करती है, जो उनसे प्रेमी परिक्रमावासियों को लूटने जैसा अपराधिक कृत्य करवाती है।
इस प्रकार की सत्संग चर्चा पूर्ण होने तक भोजन प्रसादी बन चुकी थी। भोजन प्रसादी के बाद प्रवासी भक्त वाहनों में विराजमान हुए। कुछ स्लीपर कोच का लाभ उठाते हुए गाडी में ही सो गए।वाहन अपनी गती से चलते रहे। महाराष्ट्र की सीमा को छोडकर परिक्रमा का गुजरात में प्रवेश हुआ। सायंकाल गुजरात की सीमा में छोटे गांव के मंदिर में मैय्या की सायंकालीन आरती हुई। वाहन पुनः आगे बढे, देर रात गोरागांव के नवीन शूलपाणेश्वर मंदिर प्रांगण में रूके। कुछ परिक्रमावासि कमरों में सोने चले गए, कुछ गाडी में ही गाढी नींद के आगोश में खो गए।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि:- ३०/१/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का बारहवाँ दिवस)
मानव के विकास की दौड में प्रकृति के साथ खिलवाड से बडा दुःख होता है। आज इसकी स्पष्ट अनुभूति हो रही है। शूलपाणेश्वर के नूतन मंदिर के सुहाने परिसर में पु.गुरुजी पं.श्री अविनाश जी टहल रहे थे। नर्मदा स्नान के लिये गए भक्त शीघ्र ही बिना स्नान किये ही वापस आने लगे। पूछने पर पता चला की भीमकाय सरदार सरोवर बांध (जो की शूलपाणेश्वर के ठीक पास में ही बना है) में पानी रोकने के कारण मैय्या में जलप्रवाह अवरुद्ध हो गया है, छोटे छोटे गड्डों में मैय्या का पावन जल सडांध मार रहा हेै। यह सुनकर पु. गुरुजी सहित सभी के हृदय व्यथित हो गए।इतने दिन से सभी को मैय्या के निर्मल जल में स्नान करने का सुव्यसन हो गया था। सभी मैय्या की इस दुरावस्था से खिन्न थे। "कालाय तस्मै नमः" कहकर भरे हृदय से सभी ने शूलपाणेश्वर मंदिर प्रांगण में बने स्नानागार में नल के जल से स्नान किया।
पुरातन सिद्ध शूलपाणेश्वर मन्दिर तो जलमग्न हो चुका है, नवीन शूलपाणेश्वर मंदिर के मनोहारी प्रांगण में प्रतिदिन का पूजन ,कथा का क्रम प्रारंभ हुआ। ब्रह्माजी के मानस पुत्र कश्यप ऋषी के पुत्र अंधकासुर ने ४००० वर्ष तक घनघोर तपस्या करके शिव जी से अमर होने का वरदान प्राप्त किया ,परंतू कालांतर में अंधकासुर ने मदांध होकर शिव जी को ही युद्ध के लिये ललकारा। भोलेनाथ ने अंधकासुर की छाती को अपने त्रिशूल से वेध कर उसे बेहाल कर दिया। अंधकासुर द्वारा क्षमा याचना करने पर उसे अपना गण बना लिया। अंधकासुर का रक्त शिव जी के त्रिशूल पर लग गया। अंधकासुर ब्रह्माजी का वंशज होने से त्रिशूल का रक्त साफ नहीं हो सका। शिव जी ने अनेक तीर्थों में त्रिशूल प्रक्षालन किया , परंतू कुछ परिणाम नहीं निकला। अंत में शिव जी नर्मदा तट पर आए और वहाँ त्रिशूल को जोर से गाड दिया। त्रिशूल के पाताल भेदी प्रहार से निर्मित कुंड से नर्मदा,गंगा,सरस्वती प्रकट हुई और त्रिशूल निर्मल हो गया। जहाँ शिव जी के पाणी (हथेली) का शूल (त्रिशूल) निर्मल हुआ उसे शूलपाणेश्वर कहते है।
कथा के बाद संगीत प्रारंभ हुआ, गुजराती गरबों पर सभी ने जमकर डांडिया नृत्य किया।संपूर्ण वातावरण आनंदमय हो गया।
कथा, संगीत नृत्य के बाद सभी शूलपाणेश्वर महादेव के दर्शन के लिये गए। शूलपाणेश्वर सिद्ध क्षेत्र हेै। यहाँ के शिवलिंग पर स्थापित नाग देवता चमत्कारी है, जो हिलते तो आसानी से है, परंतू कोई उन्हे उठा नहीं सकता। इस चमत्कार का साक्षात्कार सभी परिक्रमावासियों ने मंदिर के महंत पं. रविशंकर जी त्रिवेदी के सान्निध्य में किया। पनवेल के श्री गिरीष जी चौहान और कोल्हापुर के डॉ. श्री चंद्रकांत जी पाटिल ने नाग देवता को उठाने का प्रयास किया परंतू विफल रहे। बाकी सभी ने हृदय से इस चमत्कार को नमस्कार किया।
परिक्रमावासियों को मंदिर के महंत जी ने कहा की उनका परिवार ११ पीढी से यहाँ सेवारत है, प्रतिदिन अनेक परिक्रमावासि दल आते है, परंतू विधी विधान से पूजन ,कथा, और नियमों का पालन मात्र कैवल्यधाम आश्रम द्वारा आयोजित "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" में ही देखने को मिलता है।
इस प्रशंसात्मक टिप्पणी को नर्मदा की कृपा समझकर सभी ने स्वादिष्ट कचोरी युक्त भोजन प्रसादी ग्रहण करी। आज की भोजन प्रसादी में आश्रम के सदस्य पुणे निवासी श्री श्रीपाद जी संत की धर्मपत्नी सौ.अनघा संत भी सम्मिलित हुई, जो अकेले ही मोटरसायकल पर नर्मदा परिक्रमा कर रही है। सभी ऐसी साहसी महिला को अपने बीच पाकर आनंदित हुए।
भोजन प्रसादी के बाद वाहन पुनः आगे के प्रवास के लिये सज्ज हो गए। करीब १ घंटे फोरलेन राजमार्ग पर चलने के बाद वाहनों ने रास्ता बदला और मैय्या के तट पर मनमोहक झगडिया मढी पहुँचे। सिद्ध संत और मैय्या के विशाल पात्र के देखकर सभी आनंद विभोर हो गए। यहाँ संतो के हाथ की बनी ग्रीन टी का सेवन करके पुनः वाहनारूढ हो गए। यात्रा आगे बढी, अंकलेश्वर से पहले गुमानदेव सिद्ध हनुमान के दर्शन किये, अंकलेश्वर नगर के यातायात को चीरते हुए वाहन बलबला कुंड पहूँचे।
बलबला कुंड (नीलकंठेश्वर महादेव) कश्यप ऋषी की तपो भूमी है। कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए और ऋषि कश्यप को वैद्य विद्या का वरदान मिला। बलबला कुंड विशेष चमत्कारी स्थान है, कुंड के समीप "नर्मदे हर" अथवा "हर हर महादेव" का जयघोष करने पर जल में बुलबुले प्रकट होते है। यहाँ पर सभी परिक्रमावासी प्रकृती के इस चमत्कार को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। यहाँ चाय प्रसादी ग्रहण करने के बाद ,दल ने आज के रात्री विश्राम स्थल और माँ नर्मदा के दक्षिण तट के अंतिम तीर्थ "विमलेश्वर" की ओर प्रस्थान किया।
विमलेश्वर बहुत छोटा गांव है, व्यवस्था भी कम है, परंतू यहीं से सागर पार करने के लिये नौका की व्यवस्था होती है, इसलिये यहाँ विश्राम आवश्यक है। विमलेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में नर्मदा मैय्या की संध्याकालीन आरती हुई। पं. आशीष देशमुख ने सभी परिक्रमावासियों की सूची बनाई और नौका व्यवस्थापकों के पास पंजीयन के लिये गए। भोजन प्रसादी के बाद कुछ परिक्रमावासी मंदिर प्रांगण में, कुछ वाहनों में , तो कुछ स्थानीय निवासीयों के घरों में रात्री विश्राम के लिये चले गए।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि :- ३१/१/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का तेरहवाँ दिवस)
सागर तट पर मैय्या के दक्षिण तट के अंतिम तीर्थ विमलेश्वर की प्रातः बडी सुहानी लग रही थी। सभी सागर यात्रा की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे। विमलेश्वर तीर्थ में सैकडों परिक्रमावासीयों में हलचल प्रारंभ हो गई। सागर पार करके दक्षिण तट से उत्तर तट पर जाना, परिक्रमावासियों के लिये बहुत ही रोमांचक क्षण होता है। नौका व्यवस्थापकों द्वारा ९ बजे का समय नौका यात्रा के लिये बताया गया।
ठीक ७:३० बजे विमलेश्वर मन्दिर के प्रांगण में कथा की तैय्यारी हो चुकी थी। आज एकादशी होने के कारण उपवासिक भोजन (साबूदाने की खिचडी) बनना प्रारंभ हो गया था। डिजीटल साऊँड सिस्टम के बडे स्पीकर अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। अभी तक कथा में मात्र कैवल्यधाम आश्रम की बसों के परिक्रमावासी ही सम्मिलित होते थे, परंतू आज की कथा का दृश्य ही अलग था।संगीतमय नर्मदाष्टक प्रारंभ हुआ तो पैदल, अन्य बसों के , चार पहिया वाहन , मोटरसायकल वाले,सभी परिक्रमावासी कथा स्थल पर एकत्रित होकर मधुर संगीत लहरियों पर झूमने लगे। कर्णप्रिय संगीत सुनकर विमलेश्वर के स्थानीय निवासी भी बडी संख्या में कथा स्थल पर पहुँच गए।
कथा में विमलेश्वर तीर्थ की महिमा का बखान प्रारंभ हुआ। मैय्या का एक नाम *विमला* भी हेै। जो भी मैय्या के तट पर आकर आराधना करता है, वह कलिमल से मुक्त (विमल) हो जाता हेै। इंन्द्र के हाथों त्वष्टा के पुत्र त्रिशिरा की हत्या हो गई, दोष निवारण के लिये इंन्द्र देवता ने मैय्या के इसी तट पर तपस्या करी और मल मुक्त (विमल) हो गया। श्रृंगी ऋषी भी साधना से भटककर नगर वधू के संपर्क से मलीन हो गए, यहीं पर तपस्या करके विमल हुए।
ब्रह्मा जी ने तिलोत्तमा की रचना करी और उसी पर कुदृष्टी डाली,इस दोष की मलीनता से निर्मल होने के लिये ब्रह्मा जी को भी मैय्या के तट पर विमलेश्वर तीर्थ में तपस्या के लिये आना पडा। ऐसे दिव्य तीर्थ में आकर सभी परिक्रमावासी अपने को धन्य समझते हेै।
विमलेश्वर की इस कथा को सभी ने मंत्रमुग्ध होकर सुना, पुनः संगीत की लहरियां प्रारंभ हुई तो सैकडों मैय्या के दीवाने मगन होकर नाचने लगे। पूरा विमलेश्वर क्षेत्र *नर्मदे हर* के जयकारे से गूंज उठा। आनंद का पारावार न रहा। इस आनंद उत्सव पर सागर तट पर नाव लगने की सूचना ने विराम लगाया। मैय्या की आरती हुई, और सभी ३k.m. दूर सागर तट पर जाने के लिये अग्रसर हुए।
रत्ना सागर के पास छोटी खाडी के मुहाने पर सभी पारिक्रमावासी एकत्रित होकर सागर में ज्वार (भरती) की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे। सैकडों परिक्रमावासी अपने अपने तरीकों से मैय्या की कृपा का गुणगान करने लगे। कोई भजन गा रहे थे, तो कोई जयकारे लगा रहे थे।
सागर के जल का खाडी में आगमन हुआ, कीचड में फंसी नौकाऐं पानी पर तैरने लगी। नौका के इंजिन की घरघराहट से वातावरण में हलचल प्रारंभ हुई। कठोर तपस्या करने वाले पैदल परिक्रमावासी सबसे पहले नाव में चढे, नर्मदे हर के जयकारे से पूरा सागर तट गूंज उठा। पैदल परिक्रमा वासियों के बाद बस द्वारा यात्रा करने वाले परिक्रमावासीयों का क्रम आया तब कैवल्यधाम आश्रम द्वारा आयोजित "आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा" के बस प्रवासी नौकारूढ हुए। नाव पर चढने के लिये बांस के बने अस्थाई मंच से नौका में चढने में कोई कठिनाई नहीं हुई। पूर्व में जब यह व्यवस्था नहीं थी तब घुटनों तक कीचड में लथपथ होकर नाव में चढना पडता था।
आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमावासी एक ही बडी नौका में एकसाथ बैठे।नौका जल पर डोलने लगी आनंद का संचार हुआ। *पक्षी लक्ष कूजितम्* को चरितार्थ करते हुए सैकडों पक्षी नाव के साथ उडने लगे, मनोहारी दृश्य उपस्थित हो गया। नाव आगे बढी तो भूमी दिखना दुर्लभ हो गया, जल के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा था। जलीय पक्षी साथ छोड चुके थे। करीब दो घंटे की यात्रा के बाद मल्लाह ने संगम आने का संकेत दिया, सभी ने रत्ना सागर देवता का पूजन किया, झारी के आधे जल को सागर में समर्पित किया, झारी को सागर जल से पूर्ण भरा। ३ घंटे ११ मिनिट की नौका यात्रा के बाद दाहेज (SEZ) की रिलायंस जेट्टी पर नौकाऐं रुकी। अब यहाँ पर कंक्रीट् का पक्का ढांचा बन चुका है , जिससे परिक्रमावासीयों की सागर यात्रा सुखमय हो गई है।
जेट्टी पर दोनों स्लीपर कोच वाहन पहले ही पहुँच चुके थे, बस २ कि.मी. चलकर मीठीतलाई (जागेश्वर तीर्थ) पहुँची। मीठी तलाई के सिद्ध कुऐं के जल से स्नान करके, परिक्रमावासियों ने मैय्या का श्रृंगार पूजन किया। पुनः बस में सवार हुए। भृगुक्षेत्र (भरुच) नगर को पार करके भरद्वाज आश्रम (मंगलेश्वर) पहुँचे। मैय्या की आरती, भोजन प्रसादी के बाद सभी सागर यात्रा की मधुर स्मृतीयों का स्मरण करते हुए निद्राधीन हुए।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि;- १/२/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा यात्रा का चौदहवां दिवस)
भारद्वाज आश्रम का वातावरण अत्यंत मनोहारी शांत एवं निसर्गरम्य है। वृक्ष लताओं से आच्छादित यह स्थान हृदय को शांती प्रदान करता है। नर्मदा मैय्या के नेत्र सुखदायक दर्शन होते है। ऐसे सुरम्य स्थान पर कथा का आनंद ही बिरला होता है।
प्रतिदिन के अनुसार मैय्या के षोडशोपचार पूजन के बाद कथा प्रारंभ हुई। कल मीठी तलाई में जहाँ सभी ने मंगल स्नान किया, उस क्षेत्र को हरि का धाम कहा जाता है। परशुराम तीर्थ भी निकट ही स्थित है। पूर्वकाल में इस क्षेत्र में महामुनी जमदग्नी जी का सुरम्य आश्रम था,एक बार वहाँ महिष्मती नरेश सहस्त्रार्जुन का आगमन हुआ। वह ऋषि के आश्रम का वैभव देखकर चकित हो गया, जब उसे ज्ञात हुआ की यह सारा वैभव ऋषिके पास कामधेनू गौमाता के कारण है, तो उसने ऋषि का वध करके कामधेनू गौमाता का हरण कर लिया। जमदग्नी जी के पुत्र भगवान परशूराम जी को जब यह बात ज्ञात हुई, तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन और उसके क्षत्रिय वंश के समूल नाश का प्रण किया और महेश्वर के निकट सहस्त्रार्जुन के साथ युद्ध में, अपने फरसे से सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाओं को काट दिया। एक एक करके सहस्त्रार्जुन की भुजाऐं मां नर्मदा की धारा में गिरकर शिलारूप होती गई और महेश्वर के निकट सहस्त्रधारा नामक स्थान बना।
सभी ने कथा संगीत का आनंद लिया। गरबे की धुन पर व्हील चेयर पर बैठी भरद्वाज आश्रम की वृद्ध साधिका माताजी भी डोलने लगी। आरती के बाद भोजन प्रसादी ग्रहण करी, पुनः मंगलेश्वर के सुंदर मैय्या तट को सभी ने नमन किया, और पुज्यपाद संत श्री रंगावधूत महाराज की तपस्थली *नारेश्वर* के दर्शन की उत्कंठा में आगे की यात्रा प्रारंभ हुई। मार्ग थोडा संकरा था , दोनों ओर के वृक्ष मार्ग को ढंक रहे थे, और एक पेड की नीचे की ओर झुकती हुई शाखा, विजयलक्ष्मी बस के आगे के कांच (विन्ड शील्ड) पर टकराई, और बस का कांच जोरदार आवाज के साथ चकनाचूर हो गया। बस के केबिन में चहुँओर कांच के टुकडे बिखर गए। कुछ देर के लिये थोडी अफरा तफरी हुई, ऑक्टोपेड वादक अमित संदोनी और तबला वादक कार्तिक राठौर ने बस ड्रायवर दौलत काका के साथ मिलकर पूरा केबिन साफ किया। पूरी प्रकिया में १ घंटा व्यतीत हो गया ,और विजयलक्ष्मी बस बिना कांच के ही आगे बढी। १ घंटे की यात्रा के बाद दोनों वाहन, दिव्य नारेश्वर धाम पहुँचे।
पूर्व काल में, यहाँ के मराठा सरदार *नारोपंत* जी को भोलेनाथ ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा, कि मेरा *"कपर्दीश्वर"* स्वरूप भूमीगत हो चुका है, उसकी पुनर्स्थापना करो। स्वप्न में बताए स्थान पर भूमी के भीतर नारोपंत जी को स्वयंभू शिवलिंग प्राप्त हुआ। नारोपंत जी ने मंदिर बनवा कर दिव्य शिवलिंग को पुनर्स्थापित किया। नारोपंत जी के द्वारा स्थापित होने के कारण भगवान *कपर्दिश्वर* ,अब *नारेश्वर* कहलाते है। कुछ काल बाद पु. संत वासुदेवानंद सरस्वती टेम्बे स्वामी के शिष्य *रंगावधूत जी महाराज* ने इसी नारेश्वर मंदिर के दिव्य स्थान को अपनी आराधना स्थली बनाया।
सभी परिक्रमा वासी शांत ,सुरम्य, सुंदर समाधी स्थल परिसर को देखकर आनंदित हुए और रंगावधूत महाराज की तपस्या के स्पंदन से सभी ने आत्मिक शांती का अनुभव प्राप्त किया। चाय प्रसादी के बाद वाहन आगे बढे,और पुनः मैय्या के तट पर ,दुर्लभ लाभ प्रदान करने वाले दिव्य तीर्थ *"कुबेर भंडारी"* मंदिर पहुँचे।
रेवा और और्वी नदी के संगम (रेवोरी संगम) पर स्थित यह तीर्थ यक्षराज कुबेर की तपस्थली है। यहीं पर तपस्या करके चंद्रमा भी राजक्षमा रोग के श्राप से मुक्त हुए। कुबेर भंडारी तीर्थ को नर्मदा तट के कनखल की संज्ञा प्राप्त है। यहाँ अमावस्या के दिन नर्मदा स्नान का विशेष महत्व है। यहाँ प्रतिमाह अमावस्या के दिन हजारों भक्तों का मेला लगता है,और संपूर्ण परिसर *"नर्मदे हर"* और *"हर हर महादेव"* की ध्वनी से गूंज उठता है। यहाँ पर शिवशंकर और नर्मदा मैय्या की आराधना से दुर्लभ लाभ की प्राप्ती होती है।
ऐसे सिद्ध स्थान पर आकर सभी परिक्रमावासीयों ने अपने आपको धन्य समझा। सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा था। सभी ने कुबेरेश्वर के दर्शन किये और मैय्या के घाट पर अस्ताचलगामी सूर्य की मैय्या के जल में सिंदूरी छटा को देखकर प्रसन्न हुए। सीटी बजने से सभी की तंद्रा टूटी, और मन मारकर बसों की और लौटने लगे। कुछ ने कुबेर भंडारी के भंडार में प्रसादी का आनंद उठाया। कुबेर भंडारी मंदिर के विशाल परिसर से सभी ने विदा ली, और आज रात्री के विश्राम स्थल तिलक वाडा की ओर प्रस्थान किया।
फोरलेन हाईवे पर सरपट दौडते हुए दोनों वाहन तिलकवाडा पहुँचे, जहाँ *पु. स्वामी विष्णुगिरी* जी सभी की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे। पु. स्वामी जी के *वासुदेव कुटीर* आश्रम में सभी का प्रसन्नमुख से स्वागत छुआ । *कैवल्यधाम आश्रम* के पु. गुरूजी एवं पु. स्वामी विष्णुगिरी जी के आत्मीय संबंधों की ऊष्मा का सभी को स्पष्ट अनुभव हुआ।
भोजन वाहन पहले ही पहुँच चुका था। पं. आशीष जी और मनोज भाई, दक्षिण तट पर शूलपाणेश्वर मंदिर में भूला हुआ रिचार्जेबल स्पीकर (BTL) लेकर आ चुके थे। वासुदेव कुटीर में *"ॐ जय जगदानंदी"* के स्वर गूंज उठे। भोजन प्रसादी के बाद, दिनभर की यात्रा से थके हुए नेत्रों में निद्रा देवी का प्रवेश हुआ, और *"आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा"* के एक और आनंदमय दिवस का अवसान हुआ।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि ;- २/२/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का पंद्रहवाँ दिवस)
मैय्या के उत्तर तट पर स्थित छोटा कस्बा तिलकवाडा, पु. संत वासुदेवानंद सरस्वती (टेम्बे स्वामी) का चतुर्मास स्थल रहा है। यहीं पर पु. स्वामी विष्णुगिरी जी ने वासुदेव कुटीर का निर्माण किया, जहाँ से सैकडों मैय्या भक्त, चैत्र मास में उत्तरवाहिनी नर्मदा की २१ कि.मी. की एकदिवसीय पैदल परिक्रमा करते हेै। ऐसे दिव्य स्थान पर रात्री विश्राम करके एवं पु. स्वामी जी के द्वारा किये गए आत्मीय स्वागत से सभी परिक्रमावासी अभिभूत हुए।
आज की कथा बिना संगीत की हो रही थी, क्योंकी स्पीकर ,शॉर्ट सर्किट के कारण निर्जीव हो गए थे। हालांकी नए स्पीकर आ चुके थे, परंतू फिट नहीं हुए थे। समय को साधने के लिये रिचार्जेबल छोटे स्पीकर पर कथा प्रारंभ हुई। पं. आशीष और भाई अमित संदोनी, स्पीकर फिटिंग में व्यस्त हो गए।
आज की कथा में तिलकवाडा तीर्थ के महत्व पर प्रकाश डाला गया। वैवस्वत मनु के पुत्र तिलक की तपस्या का वर्णन हुअा। सप्त मातृकाओं के पवित्र निवास से बने मातृतीर्थ और गौतम ऋषी की तपस्या के फलस्वरूप निर्मित गौतमेश्वर का वर्णन हुअा। भोजन प्रसादी के बाद, पु. स्वामी जी का आशिर्वाद ग्रहण करके वाहन तिलकवाडा से निकले। ऊपर लटक रहे बिजली के तारों के कारण वाहनों को आगे बढने में समस्या आ रही थी। स्थानीय सरपंच कमलेश जी ने स्वयं साथ में रहकर तारों का ऊपर करवाया और वाहन चौडे राजमर्ग पर आ गए।
२३ कि.मी. चलने के बाद जिस स्थान के दर्शन की सभी प्रतीक्षा कर रहे थे वह दिव्य स्थान *गरूडेश्वर तीर्थ* आ गया। यहाँ भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरूड ने गजासुर का भक्षण किया, गजासुर की खोपडी (करोटी) को नर्मदा जल का स्पर्श होते ही, गजासुर श्राप मुक्त हो गया। इसलिये इस स्थान को गरूडेश्वर कहते है। सभी परिक्रमावासीयों ने सर्वप्रथम पुराणोक्त गरूडेश्वर मंदिर के दर्शन किये ,और *अवधूत चिंतन श्री गुरुदेवदत्त* का उद्घोष करते हुए पु. संत टेम्बेस्वामी जी द्वारा निर्मित दत्त मंदिर में प्रवेश किया। पु. स्वामी जी की आराधना के कारण दत्तभक्तों के लिये गरुडेश्वर का महत्व काशी सदृश है। मंदिर से थोडा नीचे उतरने पर पु. टेम्बे स्वामी जी की समाधी है। सभी परिक्रमावासी उल्लासित होकर भक्तीयुक्त अंतः करण से इस दिव्य तीर्थ की ऊर्जा को आत्मसात कर रहे थे। समय का किसी को भान न रहा, परंतू आगे का मार्ग थोडा कठिन था, इसलिये पं. अनय जी और पं. अंकित जी ने सीटी बजाई तो सभी अनमने उदास होकर बसों की ओर चल पडे। नसवाडी, कवांट होते हुए स्लीपर कोच बसों ने अलीराजपुर की ओर जाने वाला मार्ग पकडा। कवांट से अलीराजपुर तक का मार्ग इकहरा और थोडा खराब होने के कारण ,बसों की गती थोडी धीमी हो गई थी, परंतू धीमी गती के कारण सभी को आदीवासीयों की जीवनशैली को जानने का पर्याप्त समय मिल रहा था। बखतगढ़ से आगे बढकर छकतला से म.प्र. की सीमा प्रारंभ हो गई। अलीराजपुर जिले में आदिवासीयों का बाहुल्य है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो ईश्वर ने मात्र इन्हे ही अल्प साधनों में आनंदित रहने का वरदान दे दिया हो।
अलीराजपुर से कुक्षी होते हुए वाहन आपेक्षित समय से पूर्व, निसरपुर होते हुए, मैय्या के तट पर *कोटेश्वर तीर्थ* पहुँच गए। यहीं पर रात्री विश्राम की व्यवस्था की गई। सभी दिनभर के प्रवास से थक चुके थे, गद्दीयाँ बिछते ही , भोजन प्रसादी ग्रहण करके गहरी नींद में सो गए। जहाँ पर सामुहिक विश्राम होता है, वहाँ पर गहरी नींद में सो रहे मानवों के खर्राटों की जुगलबंदी, एक अलग ही संगीतमय वातावरण का निर्माण करती है।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि :- ३/२/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का सोलहवाँ दिवस)
कोटेश्वर (निसरपुर) की धर्मशाला में व्यवस्था थोडी कम ही थी, परंतू चाहते हुए भी यहाँ अच्छी धर्मशाला नहीं बन सकती, क्योंकी यह सुंदर स्थान कुछ ही दिनों में सरदार सरोवर की जलराशी में डूब जाएगा। गत वर्ष ही सुंदर भव्य घाट पूर्णतः जलमग्न हो गया था। इसी सुंदर भव्य घाट पर स्नान करके सभी आनंदित हुए। यहाँ पर व्यवस्था अनुकूल न होने के बाद भी अधिकांश परिक्रमावासी प्रसन्न थे, क्योंकी उन्हे प्रतिदिन नर्मदा स्नान का आनंद, नर्मदा तट पर निवास, मैय्या की महिमा के संगीतमय बखान का आनंद प्राप्त हो रहा था। सभी मैय्या तट के आनंदमय वातावरण में रहकर अपनी सुधबुध खो बैठे थे। कुछ ने कहा भी, की उन्हे घर की याद भी नहीं आ रही है। संभवतः इसीलिये सभी स्नान करके,समय से पूर्व किसी स्कूल के अनुशासित विद्यार्थियों के जैसे पूजन स्थल पर प्रतिदिन एकत्रित हो कर नित्य नियम से मैय्या का विधीविधान से पूजन करके कथा का आनंद उठाते।
कोटेश्वर मंदिर के समीप धर्मशाला में, तीन बडे स्पीकरों की तार, आधुनिक मास पेड एम्पलीफायर से जुड चुकी थी। डिजिटल साऊँड मिक्सर से माईक की कॉर्ड का मिलन हो गया। तीनों संगीत वादकों ने अपना स्थान ग्रहण किया, और नर्मदाष्टक की मधुर ध्वनी वातावरण में गूंज उठी। अब तक सभी को नर्मदाष्टक मुखाग्र हो गया था इसलिये आनंद बढ गया था।
पं. अनय रेवाशीष जी के मुखारविन्द से कथा प्रारंभ हुई। मैय्या के तट पर आठ कोटेश्वर तीर्थ है।जहाँ पर भी करोंडों की संख्या में ऋषी, देवता, मानव आदी ने एकत्रित होकर मैय्या की आराधना करी, वह स्थान कोटेश्वर कहलाया। यक्षराज कुबेर के पुत्र कुंड को अपने गलत आचरण के कारण दानव योनी प्राप्त हुई। दानवता के अभिशाप से मुक्त होने के लिये कुंड ने अपने करोडों साथियों के साथ यहाँ मैय्या के तट पर तपस्या करी, और मैय्या के कृपाशिर्वाद से पुनः यक्षों की सभा में सम्मिलित हुआ। दो घंटे की कथा में जब भजनों की धुन बजती, सभी आनंदित होकर झूमने लगते, संगीत की बौछार में साराबोर होकर सुधबुध खो देते। सभी की यही कामना थी की यह आनंदोत्सव कभी समाप्त न हो।
कथा के बाद समोसा युक्त भोजन प्रसादी प्रारंभ हुई, तब तक सेवकों ने भी सभी का सामान वाहनों की डिक्की के सुपुर्द किया। एक बार पुनः सभी ने कोटेश्वर भगवान, मैय्या के निर्मल जल और सुंदर घाट को नमन किया, और सभी बसों में अपने स्थान पर विराजित हुए।
काफिला आगे बढा, महेश्वर रूका, मैय्या के तट पर माँ अहिल्या देवी द्वारा बनवाया गया अतीव सुंदर घाट देखकर आनंद का पारावार न रहा। महेश्वर का किला अद्भुत सुंदर है, जो भी यहाँ आता है, सुधबुध खो बैठता है। इसी सुंदरता को देखकर फिल्म उद्योग के कर्ताधर्ता भी यहाँ शूटिंग के लिये आते हेै, परंतू उनकी फिल्मों में इस सुंदर घाट को वाराणसी का बताया जाता है। अशोका, पेडमेन, मणिकर्णिका, तुलसी, यमला पगला दिवाना, वॉटर आदी अनेक बडी फिल्मों की यहाँ शूटिंग हो चुकी है, परंतू महेश्वर की यह सुंदर भूमी अपने हिस्से की प्रसिद्धी से हमेशा वंचित रही है। और संभवतः प्रसिद्धी प्राप्त करने की इच्छा माँ अहिल्या की भी नहीं रही होगी, जो उनके सादगीपूर्ण राजदरबार को देखकर स्पष्ट परिलक्षित होती है। परंतू माँ अहिल्या के तप का प्रभाव इतना गहरा है, कि उनके पूजन गृह में रखे सोने के झूले को जिसने भी चुराने का प्रयत्न किया, वह अंधा हो गया। माँ अहिल्या संभवतः एकमात्र ऐसी महारानी है, जिसने बिना युद्ध लडे, लोगों के हृदय पर राज किया। माँ अहिल्या द्वारा बसाए गए बुनकर आज भी हथकरघों की खटर खट की आवाज के साथ सुंदर साडीयों के निर्माण की परंपरा को जीवित रखे हुए है। अपनी पत्नी के साथ महेश्वर घूमने आने वाले पुरुषों को इसी कारण अपनी जेब में अतिरिक्त राशी रखना पडती है। कुछ परिक्रमावासी महिलाओं ने विशेष आग्रह किया कि महेश्वर में साडी खरीदने के लिये अतिरिक्त समय दिया जावे, जिसे मान्य किया गया।। मातृ शक्ती नमो नमः।।।
किला परिसर में ही स्थित राजराजेश्वर मंदिर में अनंत अज्ञात काल से प्रज्वलित ११ अखंड दीपकों के सभी ने श्रद्धा पूर्वक दर्शन किये। इन्ही अखंड दीपकों का उल्लेख शास्त्रों में ज्वालेश्वर तीर्थ के रुप में किया गया है। महेश्वर, शबरी के गुरू महर्षि मतंग की तपोभूमी है, परंतू मतंगेश्वर के दर्शन परिक्रमावासी नहीं कर सकते, क्योंकी वह स्थान मैय्या की धारा के मध्य में स्थित है।
महेश्वर के दिव्य सौंदर्य में सभी खो गए, महिला शक्ती साडी की दुकानों पर व्यस्त हो गई। संध्याकाल के समय महेश्वर की मधुर स्मृतीयों को हृदय में बसाकर , पुनः महेश्वर आने का निश्चय करके सभी वाहनों में बैठे, और लगभग डेढ घंटे की यात्रा के बाद, जहाँ से परिक्रमा प्रारंभ करी, उसी कैवल्यधाम आश्रम में पहुँच गए।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*
दि:- ४/२/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का सत्रहवां दिवस)
परिक्रमा के नियमानुसार कल परिक्रमा अपने आरंभ बिन्दू पर पहुँच गई। इतने दिनों के सहवास, आनंदमय वातावरण और कैवल्यधाम आश्रम के संस्थापक पु.गुरुजी पं. श्री अविनाश जी महाराज के परिवार के सान्निध्य से परिक्रमावासियों का एक वृहद परिवार बन चुका था। जो सत्रह दिन पहले पूर्णतः अपरिचित थे, उनमे आत्मीय संबंध बन गए थे। कल रात्री में जब कैवल्यधाम परिसर में वाहन रुके तब सभी को घर में आने जैसा प्रतीत हुआ। प्रातः काल सभी मैय्या तट पर स्नान करके आए, तब तक आश्रम की यज्ञशाला में पंचकुंडात्मक यज्ञ की तैयारी पूर्ण हो गई थी।
आज सोमवती अमावस्या का महापर्व था। कैवल्यधाम आश्रम में विगत पंद्रह वर्ष से हर महीने अमावस्या के दिन *पंचकुंडात्मक महामृत्युंजय महायज्ञ* संपन्न हो रहा है, आज आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा के सभी यात्रियों को इसमें सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। नियमित यज्ञ में उपस्थित रहने वाले भक्तों के साथ आज सभी परिक्रमावासी भी इस दिव्य यज्ञ में सम्मिलित हो गए। पूजन पश्चात स्वाहाकार प्रारंभ हुआ। *ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धीं पुष्टीवर्ध्दनम्* के नाद से वातावरण गूंज उठा। ४ घंटे शास्त्रोक्त स्वाहाकार के बाद कन्यापूजन प्रारंभ हुआ। कैवल्यधाम आश्रम में हर महीने अमावस्या के दिन यज्ञ के पश्चात *विशाल कन्याभोज* संपन्न होता है। इतनी अधिक संख्या में नन्ही मुन्नी कन्या देवीयों को देखकर सभी प्रसन्न हो गए।कन्या भोजन और भंडारे के बाद, दोपहर कुछ देर सुस्ताने के बाद सभी मैय्या के तट पर संकल्प पूर्ती पूजन के लिये गए। सभी ने मैय्या को अपनी आनंददायक यात्रा के लिये धन्यवाद दिया, दिव्यगती प्राप्त सहयात्री स्व. श्री शरद जी रहाणे को पुनः श्रद्घा सुमन अर्पित किये।
सायंकाल *नर्मदा पुराण* के अंतिम पांच अध्याय की कथा प्रारंभ हुई। यह वही पांच अध्याय है, जिन्हे हम *सत्यनारायण व्रत कथा* के रूप में जानते है। कलावती, लीलावती, साधू वैश्य की कथा सभी ने अनेक बार सुनी, परंतू जब पं. अनय "रेवाशीष" जी ने इन पांच अध्याय में छुपे आध्यात्मिक मर्म का विश्लेषण किया तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। पांच अध्याय में छुपी *सत्य* शिक्षा को यदी व्यक्ती आत्मसात कर ले, तो वास्तव में मनुष्य का जीवन *नारायण* की कृपा से धन धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।
कथा समापन के बाद जब आभार प्रदर्शन का समय आया तो सभी को जब यह भान हुआ की यह आनंद यात्रा अब समाप्त होने वाली है, सभी के नेत्र सजल हो गए। कोई भी अपनी भावना पर नियंत्रण नहीं रख पाया और भावनाओं का ज्वार उमड पडा। मुंबई के श्री भीमराव जी निकम ने रोते हए ही,व्यासपीठ पर विराजित पं , अनय जी को गले लगा लिया। परिक्रमा वासीयों के साथ ही *कैवल्य धाम आश्रम* परिवार के सदस्यों की आंखे भी भीग गई। सभी ने यही कहा की यह सत्रह दिन उनके जीवन के अनमोल दिवस है, और यह उनके जीवन की पूंजी बन गए है, उन्होने यात्राऐं तो बहुत करी, परंतू आध्यात्मिक ज्ञान से ओतप्रोत, जीवन परिवर्तित करने वाली यात्रा पहली बार करी। बिदाई की हृदय स्पर्शी बेला के बाद सभी ने भोजन प्रसादी ग्रहण करी, और अपने सामान को व्यवस्थित जमाकर, दुःखी मन से निद्राधीन हो गए।
दि:- ५/२/१९ (आध्यात्मिक नर्मदा परिक्रमा का अंतिम दिवस)
प्रातः काल नर्मदा स्नान करके सभी बस में विराजित हुए, और १७ कि.मी. की यात्रा करके ओंकारेश्वर पहुँचे। ब्रह्मपुरी घाट पर पिछली यात्रा के भक्त वाशी (मुंबई) के डॉ. श्री संजय जी होनकळसे द्वारा प्रदान किये गए महावस्त्र (चुनरी) को मैय्या के पात्र में समर्पित किया तो आलौकिक दृश्य उपस्थित हो गया। सभी जगज्जननी नर्मदा मैय्या को प्रणाम करके नौकाओं में सवार हुए और जगन्नियंता ओंकारेश्वर के मंदिर में जल अर्पित करने पहुँचे। जल अर्पित करने के बाद मंदिर प्रांगण में ही यात्रा में अंतिम बार नर्मदाष्टक का सामुहिक पाठ उसी स्थान पर हुअा जहाँ जगद्गुरू शंकराचार्य ने इसकी रचना करी।
पुनः छोटे आभार सत्र के पश्चात आनंद यात्रा का आनंदमय विसर्जन हुअा।
*जय हो माई की तो चिंता काहे की*
*नर्मदे हर*