नर्मदा संदेश
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
नर्मदा संदेश
नर्मदा संदेश
*परिक्रमा वासी की दृष्टी में माँ नर्मदा*
मेरी,आपकी, सबकी माँ नर्मदा, तीर्थ जननी माँ नर्मदा । नर्मदे हर!
पैदल परिक्रमा में जो भी मिलता है,कहता है :- *नर्मदे हर !*
स्वागत में नर्मदे हर, समाचार में नर्मदे हर, भोजन परोसते समय नर्मदे हर, भोजन ग्रहण करते समय नर्मदे हर, नमस्कारार्थ नर्मदे हर, आशिर्वादार्थ नर्मदे हर, उठते बैठते नर्मदे हर, सोते जागते नर्मदे हर, सर्वकाल नर्मदे हर ।यह परंपरा है रेवाखंड की। क्यों है ऐसा? क्योंकी यह माँ नर्मदा की अदॄश्य, पवित्र शक्ति के प्रकटीकरण का आविर्भाव है। युगों से नर्मदा तट ॠषिमुनीयों के अस्तित्व से, विहार से, तपस्या से, संचार से पवित्र हुआ है। नर्मदाखंड तपोभूमि है।
रेवातटे तपं कुर्यात , मरणं जान्हवी तटे। सारा रेवांचल तपस्या के योग्य है। नर्मदा शिवपुत्री है, उन्हीकी तरह कठोर परंतू भोली। परिक्रमा करते समय नर्मदा तट पर एक मुहावरा सुनाई देता है :- कांटा,आटा और भाटा इनका नहीं यहाँ टोटा।
सबसे पहले कांटो की बात करें , नर्मदा तट पर बहुत कांटे होते है। बबूल, बेर, गोखरू ऐसे न जाने कितने छोटे-बडे कांटे रास्ते में मिलते है। हम शहरी तो जूते पहन कर चलते थे फिर भी दो-चार बार काटों से सामना हो ही गया । ग्रामीण परिक्रमा वासी और साधु संत तो बिना चप्पल के ही परिक्रमा करते है, उनके पैर तो काटों के घांव से भरे होते है।
जब बात आती है आटे की तो, नर्मदा खंड में खेती बाडी समृद्ध है इसलिये गेहूँ के आटे की कमी हो ही नहीं सकती और माँ के तट पर कोई भूखा नहीं रह सकता।
अंत में भाटा अर्थात पत्थर , जिसकी नर्मदा तट पर कोई कमी नहीं, यहाँ तो हर कंकर शंकर है।
तट पर काटों से लडती माँ नर्मदा पहाडों बीच से गुजरती है,पत्थरों से टकराती तोडती है, उंचाई से कुदती बहती है।पहले इसे बंधन में जकडना असंभव सा लगता था।मगर अब बरगी ,इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, महेश्वर और भीमकाय सरदार सरोवर जैसे बडे बांधों से नर्मदा को मानव ने जकड लिया है। और भी अनेक बांधों के निर्माण की योजना है। बांध निर्माण से पहले शूलपाणि, पुनासा आदी क्षेत्रों में बहुत घने जंगल थे, इतने घने की सुर्यकिरण भी जमीन तक पहुंचना असंभव था ।परंतु अब मात्र अमरकंटक, लक्कडकोट और थोडीबहुत शुलपाणि की झाडी शेष बची है।परंतु शेष बचे हुए इन जंगलों से गुजरते समय उस घनघोर अरण्य की कल्पना की जा सकती है।बचे खुचे जंगल विविध प्रकार के वृक्षों से भरे है।सरकार वृक्षारोपण भी कर रही है। च्यवनाश्रमसे आगे कुंडी,बडेल होते हुए पिपरी की तरफ जाते समय तो एक जंगल पारिजातक पुष्प के वृक्षों से आच्छादित है।पलाश के वृक्ष रंगीन सुंदर फुलों से भरे मनमोहक लगते है।आम, जामून, इमली, बिल्वपत्र, तेंदू, महुआ, भिलावा,शिकाकाई, रीठा ,अनगिनत प्रजातियां है वनस्पतीयों की।
सागबारा से राजपीपला की ओर बढते समय हमें एक चमत्कार दिखाई दिया,आम के पेड के तने में से एक जामुन का पेड ऊग रहा था।
जंगलों में खुंखार जानवर भी है। इसलिये जंगल से गुजरते समय डर भी लगता है। ऐसे घने भयानक जंगल से हंसती, खिलखिलाती, कहीं बडे बडे पत्थरों से टकराती हुई बहने वाली महेश नंदिनी को देखे कर स्वयं के डरपोक होने पर लज्जा आती है।
इस नर्मदातट पर बैठने से एक और आनंद मिलता है,सुर्यप्रकाश का। जंगल मे सुर्यकिरण नर्मदा जल पर पडते ही जल चमकने लगता है और प्रकाश परावर्तित होकर किनारे के वृक्षों पर पडता है तब ऐसा लगता है, मैय्याने अपना सारा तेज पेड पौधों पर न्योछावर कर दिया है।
अनेक छोटी मोटी चट्टानों से गुजरती माँ नर्मदा का कलरव सुनकर ऐसा लगता है मानो मैय्या उनसे गपशप करते चल रही है।और उन चट्टानों के रंग क्या बताऐं ? कहीं काला तो कहीं हरा,कहीं सफेद तो कहीं नीला । इन रंगीन चट्टानों से बहती माँ नर्मदा के जल पर इन रंगीन छटाओंका नजारा देखते ही बनता है। वर्णन करने के लिये शब्द कम पडते है।
नर्मदा प्रवाह में कपिलधारा, दूधधारा, छोटी धुआँधार,सप्तधारा,सहस्त्रधारा,भेडाघाट की धुआँधार जैसे अनेक जलप्रपात है।उनका गहन गंभीर नाद कानों पर पडते ही चंचल चित्त वृत्ती शांत हो जाती है, बहिर्मुखता रहती ही नहीं।आंतरिक शांतता,अनुभूति अवर्णनीय है।आखों से अश्रुधारा कब बहने लगती है पता ही नहीं चलता।
भोर समयऔर संध्याकाल में यहाँ बैठते ही चित्त शांत हो जाता है। प्रपात का धीरगंभीर नाद बाहर और शांति का अनहद नाद भीतर, बस! वहाँ सब लय होकर एकाकार हो जाता है ।मात्र एक ही नाद गूंजता है:-
*नर्मदे हर*
*नर्मदे हर*
*नर्मदे हर*
*शब्दभाव रचना :- श्रीमती वंदना परांजपे*
*संपादन :- पं अनय "रेवाशीष" (कैवल्यधाम)*
*मात् श्री नर्मदे हर*
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‼*नर्मदा संदेश* ‼
*आज का संदेश शिशिर उपाध्याय जी से साभार*
चलो आज मिलवाते हैं , मंडलेश्वर की इस अज़ीम शख्सियत से , वैसे fb पर ये अच्छी दख़ल रखते हैं , किन्तु अपने कुछ विशेष गुणों के कारण ये आरती और अज़ान से एक साथ जुड़े मिलते हैं ,निःसर्ग के प्रेमी हैं , माँ नर्मदा के अप्रतिम भक्त हैं ,उनकी आँखों से स्नेह के शीतल झरने बहते रहते हैं मेरे मित्र इंजीनियर Mufazzal Hussain उर्फ़ मुफ्फी भाई। वे एक अच्छे आदमी हैं और ये ही बड़ी बात है "आदमी का आदमी होना ""
उनका यह लेख भी आप अवश्य पढें ।।
नर्मदा जी - क़ुदरत की बेहतरीन नियामत
मुफ़ज़्ज़ल हुसैन - मण्डलेश्वर
नर्मदा के तटवासियों का इस नदी से जीवंत रिश्ता रहा है । हम लोगो का स्कूली जीवन नर्मदा किनारे बने विद्यालयों में 80 के दशक से प्रारम्भ हुआ । खाली पीरियड्स में एकटक नर्मदा को निहारते रहते । साफ़ , सुथरी हरे काँच की मानिंद कल कल प्रवाहित नर्मदा बरसबस ही अपनी और ध्यान खिंचती थी । उस दौर में मेरे मोहल्ले के बुज़ुर्ग श्रीमती अरुणा शर्मा , श्री रतनलाल अग्रवाल , स्व. शांतिलाल सोनी नियमित रूप से अल सुबह नर्मदा स्नान को जाते थे । कड़ाके की ठण्ड या फिर मूसलाधार बारिश भी कभी इन सज्जनो की नर्मदा जी में आस्था को डिगा न सकी । मेरे बाल मन पर उसी वक़्त से नर्मदा नदी का गहरा असर पड़ने लगा था ।
अपने सनातनी मित्रों से जब नर्मदा पुराण और नर्मदा की अन्य महिमाए जानी तो लगा जैसे हम सब पर यह नर्मदा परमात्मा की बेहतरीन नियामतों में से एक है ।
बचपन में गर्मियों की छुट्टीयों में महू , इंदौर , उज्जैन आदि जगहों से आने वाले पारिवारिक रिश्तेदारों के साथ शाम के वक़्त नर्मदा में नहाने जाते तो पिताजी की गर्वोक्ति सुनते जो आज भी कानों में गूंजती है । पापा गर्वित होकर मालवा के रिश्तेदारों को कहते कि - " *हमारे पास नर्मदा है , तुम्हारे बड़े बड़े शहरो में क्या है* "?
शाम के वक़्त गाहे बगाहे नर्मदा तट पर जाना होता है वहाँ पर नर्मदा भक्त मंडल की आरती , शंख ध्वनि और हाथों से ताली बजाकर झूमते भक्तजन एक अलौकिक समां बाँधते है ।
कुछ सालों पूर्व नर्मदा तट का हाल बेहाल था । बड़ी बड़ी गाड़िया , पेट्रोल डीज़ल के वाहन यहाँ धुलते थे , वस्त्र धोने वालो की भीड़ , घाटो पर यहाँ वहा फैली गंदगी मन को वितृष्णा से भर देती थी । लेकिन अब काफी कुछ सुधार आया है । नर्मदा समग्र के जागरूक नोंजवानो व अन्य संस्थाओं , स्थानीय निकाय , भक्त मंडलों ने लगातार प्रयास कर मंडलेश्वर नर्मदा तट की सीरत ही बदल दी है । अब तो यदि आप घाट पर थोड़े से चने या परमल लेकर जाते है और जैसे ही इन्हें पानी में डालते है छोटी छोटी सुन्दर मछलियों का झुण्ड इन्हें खाने को लपकता है । घाट भी अब काफी स्वच्छ रहते है । इक्का दुक्का महिलाए घाट पर साबुन सोडे से कपड़े धोती या फिर एक दो आदमी ही साबुन से नदी में नहाते दिखते है ।
मैं अपनी बात करू तो मुझमे भी पहले की तुलना में अब नर्मदा को स्वच्छ रखने का जज़्बा ज़्यादा हुआ है । परिवार के साथ जब भी नर्मदा के बीच हथनी नामक स्थान पर नहाने जाते है तो नाश्ते के बाद सारा कचरा समेटता हूँ इसे थैली में भरकर वापस लाता हूँ और नगर में स्थित कचरा पेटी में फेंकता हूँ ।
नर्मदा नदी को जीवित इन्सान का दर्जा दिए जाने की मुहिम इस समय प्रमुखता से चल रही है । निश्चित ही नर्मदा जी को संवैधानिक अधिकार प्राप्त होते ही इसके कायाकल्प और सौंन्दर्यीकरण की दिशा में कारगर कदम उठेंगे ।
मुफ़ज़्ज़ल हुसैन - मंडलेश्वर