अनुभव - हिंदी
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
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नर्मदापुत्र, श्री अमृतलालजी वेगड़जी लिखित किताब "तीरे तीरे नर्मदा" से कुछ पंक्तिया....
"..पता नहीं पुनर्जन्म होता है या नहीं ! यदि होता है तो मैं चाहूंगा.. मेरा जन्म नर्मदा तट के किसी गांव में हो.. और जब बडे हो जाएं नर्मदा परिक्रमा पर निकल जाएं !! ..हमारा सुख.. हमारी उजास सब नर्मदा तट पर है ।
"...मैं चाहूंगा मेरा देहांत नर्मदा तट की पहाडी ढलान पर हो ! और जब देहांत हो जाए.. तब ..नर्मदा तट के अर्जुन वृक्ष तुम मेरी चिता सजाना ! नर्मदा तट के पक्षीगण तुम उत्फुल्ल कंठ से तान छेडना ! दोपहर की चिलचिलाती धूप तुम मेरी चिता को अग्नि देना ! नर्मदा तट की चट्टानो मेरी चिता जब तक जल न जाए तुम वहीं रहना भला ! और जब अस्त होते सूर्य की सिंदूरी आभा जल में उतरने लगे तब मेरी अस्थियों को नर्मदा जल में प्रवाहित कर देना । ..और मां नर्मदे तू हमेशा हमेशा के लिए मुझे अपनी गोद में ले लेना ! ..कयामत के दिन जब मेरी पुकार हो तो वो इस तरह से हो..कहाँ गया वो नर्मदा सौन्दर्य वाला !! बस।"