संत श्री सियाराम बाबाजी
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
संत श्री सियाराम बाबाजी
महान योगी संत श्री सियाराम बाबाजी (तेलिया-भट्यान्न गाव)
महान योगी संत श्री सियाराम बाबाजी माँ नर्मदा जी के किनारे बसे "तेलिया-भट्यान्न" गाव में निवास करते है. "तेलिया-भट्यान्न" गाव मोरटक्का से ४० किलोमीटर की दुरी पर है.
नर्मदा परिक्रमा करनेवाले हर परिक्रमावासी लोगो यहाँ से जाते है , उनकी सेवा खुद श्री सियाराम बाबाजी करते है. श्री सियाराम बाबाजी के आश्रम में परिक्रमावासी लोगो को निःशुल्क भोजन दिया जाता है . और श्री सियाराम बाबाजी खुद अपने हाथो से भोजन का वितरण करते है. परिक्रमावासी लोगो को सदा-व्रत भी प्रदान किया जाता है , जिसमे दाल, चावल, तेल, नमक, मिर्च, कापूर और अगरबत्ती और बाती दी जाती है . ताकि परिक्रमावासी को आगे कही जरुरत पड़े तो इन चीजो का इस्तेमाल हो सके.
श्री सियाराम बाबाजी हमेशा लंगोट पहनते है. सर्दी रहे, गर्मी रहे या बरसता रहे, श्री सियाराम बाबाजी कोई कपडा नहीं पहनते.
श्री सियाराम बाबाजी का चेहरा देखके श्री हनुमानजी की याद आती है. श्री सियाराम बाबाजी के चेहरे ते तेज में श्री हनुमान जी की झलक देखने को मिलती है.
श्री सियाराम बाबाजी के उम्र के बारे कोई पक्का नहीं जानता है. कोई कहता है उनकी उम्र ८० साल के करीब है. तो कोई कहता है की उनकी उम्र १३० साल के करीब है. भारत जब अंग्रेजो के गुलामी में जखड़ा था उस समय में श्री सियाराम बाबाजी का जन्म मुम्बई में हुवा था और उस ज़माने में उनकी पढाई ७-८ कक्षा तक हुयी थी. उन्होंने एक गुजरती सेठ साहूकार के पास काम उम्र में मुनीम का काम करना चालू किया. उसी दौरान कोई साधु बाबाजी के दर्शन होने के बाद उनके मन में वैराग्य और श्रीराम भक्ति जागी. और उन्होंने उसी समय घर-संसार त्यग्ग कर के हिमालय में तप करने को चल दिए. उन्होंने कितने साल तप किया, कहा किया, उनके गुरु कोण है ये सब बाटे कोई नहीं जानता. उनको हिमालय में तप-साधना के दिनों में किन किन महान ऋषि मुनि योगी सन्यासी लोगो ने दर्शन दिए अनुग्रह दिया , इसके बारे भी कोई नहीं जानता ..सब बाते बड़ी रहस्यमयी और गुढ़ है.. श्री सियाराम बाबाजी ने ये बाते किसी को नहीं कही.....आज भी उनको पूछने पर वो एक ही बात बोलते है की "मेरा क्या है, मैं तो सिर्फ मजा देखता हूँ."
"तेलिया-भट्यान्न" गाव के बूढ़े -बुजुर्ग लोग कहते है की श्री सियाराम बाबाजी अपनी युवा अवस्था में "तेलिया-भट्यान्न" गाव में ५०-६० साल पहले आये थे. तब "तेलिया-भट्यान्न" गाव काफी छोटा था.. . श्री सियाराम बाबाजी ने एक छोटीसी कुटिया बनायीं और वही पे रहने लगे. वह पे उन्होंने श्री हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की. रोज सुबह शाम "राम" नाम का जप और श्री तुलसीदास रचित "रामचरितमानस" रामायण का नित्य पाठ करते थे. ऐसा कठिन व्रत तप उपासना उन्होंने १२ साल की. इस १२ साल के दौरान श्री श्री सियाराम बाबाजी ने मौन व्रत धारण किया था. किसी से कुछ बात नहीं किया. गाववालो को कुछ पता नहीं चला की ये बाबाजी कोण है , कहा से आये. श्री सियाराम बाबाजी ने १२ साल का मौन व्रत तोडा तो पहला शब्द वे बोले "सियाराम"....तब से गाव वाले उनको "सियाराम" बाबा कहते है...
कुछ २५-३० साल पहले एक बार गाव के कोई छोटी वर्ग (जाती) के आदमी ने "रामचरितमानस" को हाथ लगाकर प्रणाम किया और श्री हनुमान जी की मूर्ति को भी हाथ लगाकर प्रणाम किया. गाव के कुछ ऊँची वर्ग (जाती) के लोगो को यह बात पसंद नहीं आयी क्योंकि वो वक़्त में छुआ-छुत के मसले से समाज में बड़ा दुविधा थी. उसके चलते उस वक़्त गाव में बड़ा बवाल हुआ और काफी झगड़ा हुआ था. श्री सियाराम बाबाजी तो महान संत है उनके लिए जाती, धर्म कोई मायने नहीं रखता. उनके लिए तो सभी लोग एक समान है. उनको यह बात पसंद नहीं आयी. उनके समझने पर भी गाव के कुछ ऊँची वर्ग (जाती) लोग नहीं माने. तो इससे दुखी होकर श्री सियाराम बाबाजी ने "रामचरितमानस" रामायण की पुस्तक को वही पर तुलसी-वृंदावन के निचे रख दिया आ और उसको सीमेंट -ईंटे से बंद कर दिया. तब से वही पर "रामचरितमानस" रामायण की पुस्तक वही पे दफ़न है. आज तक श्री सियाराम बाबाजी ने वह "रामचरितमानस" रामायण की पुस्तक को बहार नहीं निकाला.
कई बार माँ नर्मदाजी के बाढ़ का पानी के वजह से पुरे गाव के घर पानी में डूब जाते है. सभी गाव-वाले उस बाढ़ के हालात में गाव छोड़कर ऊँची जगह सुरक्षित चले जाते है. पर श्री सियाराम बाबाजी अपना आश्रम मंदिर छोड़कर कही नहीं जाते . माँ नर्मदाजी के बाढ़ में, वो अपने आश्रम मंदिर में बैठकर "रामचरितमानस" रामायण का पाठ करते रहते है. जब बाढ़ का पानी पूरी तरह निकल जाता है और गाँववाले लोग श्री सियाराम बाबाजी को देखने आते है तो , श्री सियाराम बाबाजी यही कहतेहै की " माँ नर्मदा जी आयी थी, दर्शन और आशीर्वाद देके / लेके चली गयी. माँ से क्या डरना, वो तो मैय्या है."
श्री सियाराम बाबाजी रोज सुबह नर्मदा मैय्या में नहाते है और राम नाम का जप करते है और नर्मदा परिक्रमावासी लोगो की सेवा करतेहै.
ऐसा मन जाता है की श्री सियाराम बाबाजी रामभक्त हनुमानजी के अवतार है. श्री सियाराम बाबाजी के आश्रम मंदिर में बन्दर और कुत्ते आराम से रहते है और उनके साथ ही कहना कहते है और सोते अहि. किसी को हानि नहीं पहुंचाते.
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।। मात् श्री नर्मदे हर।। ।।ॐ नमः शिवाय।।।।जय श्री महांकाल।।
एक तस्वीर बहुत दिन से आकर्षित कर रही थी। न जाने कहाँ से आयी थी और कुछ पता भी नहीं चल पा रहा था कि किस संत की है ये तस्वीर। लेकिन इस बार भी बाबा ब्रह्मचारी नर्मदा शंकर काम आये। मैंने तस्वीर उन्हें दिखाई और उन्होंने कहा की कि सिद्ध पुरुष सियाराम बाबा हैं। नर्मदा बाबा के मोरटक्का आश्रम से 40 किलोमीटर दूर तेलिया भट्यान्न गांव के एक वृक्ष ने नीचे रहते हैं सियाराम बाबा। सिर्फ एक लंगोट में उन्होंने अपना जीवन व्यतीत कर दिया। सर्दी, गर्मी, बसंत और बरसात सियाराम बाबा के तन पर सिर्फ यही एक कपड़ा होता है। न उन्हें गर्मी सताती है और न ठण्ड में उन्हें किसी ने कांपते देखा है।
नर्मदा शंकर बाबा बताते हैं कि उनकी उम्र करीब करीब 100 के आसपास होगी। हालाँकि कोई उनके गुरु के बारे में नहीं जानता लेकिन 10 साल उन्होंने खड़ेश्वरी सिद्धि की है। खड़ेश्वरी साधु अपने तप के दौरान सोना – जगाना या कोई भी काम खड़े खड़े ही करते है। अपनी खड़ेश्वरी साधना की दौरान एक बार नर्मदा माँ में बाढ़ आ गयी और जल स्तर इतना बढ़ गया कि पानी उनकी नाभि तक आ गया लेकिन सियाराम बाबा एक क्षण को भी हटे नहीं। डटे रहे नर्मदा में जब तक पानी का स्तर सामान्य नहीं हो गया। बाबा नर्मदा शंकर बहुत बार उनसे मिलने जाते हैं और बाबा अपने हाथ से चाय बना कर सभी साधु और सन्यासियों को पिलाते हैं।
बड़े विरले संत हैं –नर्मदा परिक्रमा करने जो भी व्यक्ति इस गांव से होकर गुजरता है उसको भोजन बाबा खुद अपने हाथ से देते हैं। आगे के रास्ते के लिए हर तीर्थ यात्री को दाल, चावल, नमक, तेल, मिर्च, कपूर और अगरबत्ती की एक पोटली बाबा सबको देते हैं। उनके मंदिर में भी जो प्रसाद आता है उसको इंसान और जानवरों में बराबर बांटते हैं। लोग नारियल का चढ़ावा लाते हैं और बाबा तभी उसे वितरित कर देते।
पूरे दिन राम नाम का जाप करते करते बस उन्हें चिंता रहती है तो बस नर्मदा माँ की परिक्रमा करने वाले लोगों की। बाबा नर्मदा शंकर कहते हैं कि इतने सरल बाबा हैं कि आप 2000 का नोट दे दो, 500 का या 100 का – आपका नाम लिखेंगे और सिर्फ 10 रुपए लेकर बाकी सारे पैसे आपको वापस कर देंगे। अर्जेंटीना और ऑस्ट्रिया से साधक जब नर्मदा शंकर बाबा से योग सीखने आये तो बाबा सभी को सियाराम बाबा से मिलवाने ले गए। वो विदेशी लोगों के दिखाना चाहते थे कि आज भी पृथ्वी पर ऐसे साधु हैं जो सनातन धर्म के सच्चे रखवाले हैं। जिन्हें माया और मोह छू भी नहीं पाया। कुछ विदेशी लोगों ने 500 रुपए दिए – बाबा ने 10 रुपए काट कर बाकी सब लौटा दिए। हैरान हुए विदेशी कि शहर की चकाचौंध से दूर एक बीहड़ गांव में संत आज भी हैं।
बाबा नर्मदा शंकर ने बेहद रोचक जानकारी दी। दरअसल सियाराम बाबा की जगह बांध डूब क्षेत्र में आती हैं और सरकार ने उन्हें 2 करोड़ 18 लाख रुपए मुआवजा दिया। सियाराम बाबा ने पूरा धन आदिवासी क्षेत्र के विकास में दान दे दिया। इलाके के विकास के साथ साथ उन्होंने एक बेहद प्राचीन नाग देवता के मंदिर की जीणोद्धार के लिए भी पैसा आवंटित किया है। आज दिल्ली मुंबई जैसे संभ्रांत और पैसे वाले लोगों की घर कोई चला जाये तो लोग ये सोचते हैं कि ये बिना कुछ खाये ही चला जाये तो बेहतर। परिवार के दिल इतने छोटे हो गए हैं कि माता पिता के लिए घर में जगह नहीं है वहीँ सियाराम बाबा हर किसी अनजाने चेहरे को खाना खिलाते हैं। पैसे के लिए जहाँ भाई का दुश्मन हैं वहीँ ने बाबा ने 2 करोड़ रुपए दान कर दिए।
नर्मदे हर ...हर हर नर्मदे.....