माँ नर्मदा रहस्य
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
माँ नर्मदा रहस्य
माँ नर्मदा रहस्य
नर्मदे हर हर हर हर हर हर
जैसा कि आप जानते हैं माँ नर्मदा के किनारे रहस्यो से भरे है । यहाँ हर पाषाण का महत्व है। हर किनारे कि एक कहानी है हर क्षोर पर रहस्य है। ज्ञानी व्यक्ति यहाँ तक कहते है कि माँ नर्मदा किनारे इतने साधू संत तपस्या मे लीन है कि वह कमंडल से कमंडल लगा कर बैठे है। पंरन्तू वह हमें दिखाई नहीं देते। क्यों ।
यही मन मे आस है किसी महान संत के दर्शन हो । इसी उद्देश्य से हम पिछले वर्ष होली के दूसरे दिन माँ नर्मदा यात्रा पर गये पंरन्तू सोभाग्य प्राप्त नहीं हूआ। फिर पूनः रंगपंचमी पर यात्रा कि फिर भी सोभाग्य प्राप्त नहीं हूँआ । पंरन्तू ऐसा कभी हूआ है आप माई के किनारे किसी उद्देश्य से जाओ ओर परिपूर्ण ना हो । तभी हमें भीम घूटना पहाड पर एक त्रिशूल दिखाई दिया । पंरन्तू शाम डलने लगी थी नाव मैं पेट्रोल भी कम था ओर पूरे जंगल से निकलना था । बस ऊन विभूतियो को वही से प्रणाम कर हम चल दिये । पंरन्तू ऐसा हूआ है क्या कि मन मे पश्नो के भंवर ना । उठे कोन होगा वहां क्या था वहां कोन तपो मूर्ति होगी हम क्या छोड़ के आ गये हम हमारे लक्ष्य के पास से वापस आ गये । क्या हमें पूनः मौका मिलेगा । नहीं पता बस मन के हिलोरो मे नाव चलाये जा रहे थे।
तभी 21 मई को वह अवसर प्राप्त हुआ । हम कार के द्वारा जंगल मे गये वही पास गांव के नाविक से प्रार्थना की भाई हमें वहां ले चलो । वो हमें लेकर गया। काफी दूर्गम जगह है। वहां पर बाघ की रहने कि प्रायीकता जानकर मित्र लोग नहीं गये । नाविक को मार्ग दर्शक बनाकर गये इतने दूर्गम् रास्ते से गये केवल 6 इंच का रास्ता जो बीच मैं टूटा हूँ था । नीचे 20 फिट पर माँ नर्मदा ओर ऊपर पहाड हम हर्षित मन से गये। जब हम त्रिशूल के पास पहूचे तो आंखों पर यकिन करना मूस्किल था। प्राकृतिक रूप से पाषाण के ऋषि बैठक अवस्था मे हाथ मे लोहे का त्रिशूल लिए बैठै हो । हमें उनके दर्शन लाभ प्राप्त हूऐ। पंरन्तू वह प्रतिमा पाषाण कि ही है या हम कलयूगीयो को पाषाण दिखाई दे रही है । हम समझ नहीं पा रहे थे । पंरन्तू इतने दर्शन करना भी सोभाग्य कि बात है। नाविक के कहने पर भैया जल्दि चलो इतनी देर यहाँ रहना। नहीं पता नहीं उसे डर था वन्य पशू का पर हमें आनंद आ रहा था क्यों ना कूछ समय यही बिताये मैया कि इतनी कृपा हूई है। हो सके प्रतिमा के ओर साक्षात्कार हो जाये पंरन्तू पूनः शाम का समय हूआ ।
फिर गाड़ी से पूरा जंगल भी निकल कर जाना था।
मन मे प्रश्नों के साथ हमने माँ नर्मदा रहस्य पेज बनाया फेसबूक पर ओर यह सब बातें शेयर कि तभी महाराष्ट्र से एक परिक्रमा वासी का फोन आया । भैया आप लोग धन्य है ऐसे विभूतियो के दर्शन कर माँ नर्मदा किनारे तपस्वी कई रूपों मैं है । कोई दृश्य कोई अदृश्य कोई सूक्ष्म कोई विशाल कोई मानव कोई पशू रूप में माई के तट पर है।
उन्होंने उनका अनूभवो को भी शेयर किया बहूत सी जानकारी दि । पंरन्तू बाद मे ना तो उनका फोन आया ओर ना ही नंबर लगा। पंरन्तू जवाब मिले । पंरन्तू पूर्ण संतुष्टि हो जाये तो रहस्य कैसा। ऐसे अनगिनत रहस्य है माँ नर्मदा किनारे।
मूण्ड महारण्य ओंकारेश्वर झाडी शूलपाणीश्वर झाडी भरी पड़ी हे रहस्यो से । जिन अनूभवीयो से पूछो नित नया रहस्य मिलता है।
मैया के जंगलों में अनगिनत नागा साधू तप करते है।ओर हमें केवल सिंहस्थ मेले मैं ही दिखाई देते है।जो हजारों लाखों कि संख्या मे होते है । पंरन्तू किसी ने उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान जाते नहीं देखा न ही आते देखा सिंहस्थ आता है सभी आते है ओर सिंहस्थ बाद् सभी गायब कहाँ से आते है कहाँ जाते है । शायद् किसी के पास उत्तर नहीं होगा।
यहीं है माँ नर्मदा रहस्य ।
धन्यवाद ।
प्रमोद अत्रे
9893232274
https://www.facebook.com/MaNarmadasecrets/
माँ नर्मदा रहस्य - भूतेश्वर महादेव - सीता वन
माँ नर्मदा जी के रहस्यो को जीतना ढूँढो उतना कम हमें एक सूत्र मिल जाता है जिसके साथ आधार कूछ ना कूछ मिलता जाता है । ओर हम रहस्यो कि गहराई मे जाते रहते है ओर जानकारी मिलने कि लालसा मे रहते है । पंरन्तू यह तो अथाह सागर है । जिसका कोई क्षोर नहीं है।
ऐसा ही 2 वर्ष पहले हम भूतेश्वर महादेव के दर्शनों को गये जहा से सीता वन प्रारंभ होता है । तथा कूछ विशेषज्ञों के मूताबिक इस सघन वन मे माँ सीता कि अत्यंत प्राचीन प्रतिमा है । बस उसी खोज मे गये थे । पंरन्तू प्रकृति को कूछ ओर ही मंजूर था । उस दिन हमें छोटी सी नाव मिली । उसमें भी नाव चलाने का कोई साधन नहीं फिर भी हम जैसे तैसे कोशीश करते रहे ।पर ईश्वरीय इच्छा हो तभी आप लक्ष्य तक पहुँचने मे सफल हो सकते है । हो सकता वो उचित समय ना हो । तेज हवा चलने लगी ओर हमारी नाव वहां तक नहीं पहुंच पाई । आखिर कार हम । एक टापू पर पहूच कर वही भोजन किया । जो कि चारो तरफ गहरे पानी से घीरा था तथा सरकण्डो से घीरा था। भोजन समाप्त कर मे कूछ कदम ही चला था कि वहां पर मगरमच्छ के घोसला था। ओर कूछ ही दूरी पर मगरमच्छ भी थे। नर्मदा जी को प्रणाम कर हम भोजन समाप्त कर । फिर छोटी सी नाव मे बैठ कर वापस आने लगे ।
जाते समय निडर थे क्योंकि मगरमच्छ का पता नहीं था पंरन्तू अब तो पता था । थोड़ा सा भय व्याप्त हूआ पंरन्तू मैया कि कृपा रही । यथा स्थान पहूच गये।
फिर पूनः एक वर्ष बाद यात्रा कि सायद यही सही समय था।
हम भूतेश्वर पहूच गये । अच्छे से दर्शन हूऐ। सघन वन मे रहष्यमयी मंदिर देख हम सभी विस्मित थे। पास मे पूराने किले के भग्नावशेष भी थे। काफी घूमने पर सीता माता कि प्रतिमा नहीं मिली । हो सकता है बाँध के पानी मे जलमग्न हो गई हो । बहूत ही रमणीय स्थल रहा। ऐसा लगा मानो रही रूक जाये। कोई ना कोई मिल जाये कूछ तो ओर भी बता दे । जो हम नहीं देख पाये समझ पाये। ।
पंरन्तू शायद वो उचित समय ना आया हो । शाम ढलने लगी हम आगै भी यात्रा पर गये थे । आते आते शाम ढलने लगी थी।
बस मन मे विचार लिए वापस आये ।पता नहीं वह समय कब आयेगा जब हम मैया के अनंत रहस्यो मे से कूछ ही ज्ञात हो पाये।
नर्मदे हर हर हर हर हर हर ।
प्रमोद अत्रे
9893232274