नर्मदेश्वरी
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
नर्मदेश्वरी
मां नर्मदा पुत्री नर्मदेश्वरी
माँ लल्ली बाई बताती हैं कि १९ वर्ष पूर्व उनके घर कन्या का जन्म हुआ | वो डिंडोरी जिले के समनापुर की रहने वालीं हैं | जन्म के बाद ही कन्या न तो हिलती-डुलती थी और न ही रोती थी | कन्या का शरीर मृत प्राय था | कई जगह इलाज हुआ परन्तु कोई लाभ न हुआ | निराश होकर लल्ली बाई उसे नर्मदा के तट पर लेकर गयीं और नर्मदा के आशीर्वाद के लिए कन्या को तट पर ही लिटा दिया | जैसे ही नर्मदा के पानी ने कन्या को स्पर्श किया, उसके मृत प्राय शरीर में हलचल शुरू हो गयी | कन्या रो पड़ी जो जन्म से ही नहीं रोयी थी | माँ लल्ली को बड़ा आश्चर्य हुआ और उनहोंने कन्या का नाम 'नर्मदा' रख दिया |
करीब-करीब निर्जीव कन्या में नर्मदा जल के स्पर्श मात्र से जीवित हो उठने की घटना से माँ लल्ली की आँखें भर आयीं | उनहोंने निश्चय किया कि कन्या को लेकर वो नर्मदा परिक्रमा करेंगी | यही संकल्प लेकर एक दिन लल्ली अपनी कन्या को लेकर निकल पड़ीं नर्मदा परिक्रमा के लिए | तीन साल, तीन माह और तेरह दिन में उनकी परिक्रमा पूरी हुयी | परिक्रमा के दौरान ही माँ ने कन्या के कुछ विलक्षण लक्षणों पर गौर किया जिससे उन्हें और अधिक आश्चर्य हुआ | परिक्रमा समाप्त होने के बाद लल्ली नर्मदा के किनारे ही एक आश्रम में रहने लगीं |
मुख पर तेज लिए और अपना जीवन नर्मदा की सेवा में समर्पित कर चुकी वही कन्या, 'नर्मदा', अब उन्नीस वर्ष की हो चुकी है | जबलपुर के ग्वारीघाट में नर्मदा के तट पर ध्यान-मग्न बैठी 'नर्मदा' के बारे में बताते हुए एक वृद्धा बतातीं हैं कि 'नर्मदा' (यह साध्वी जी), कुछ ऐसी ही है | आने-जाने वालों पर इसका कोई ध्यान नहीं रहता और यह केवल नर्मदा के ध्यान में मग्न रहती है |
इन साध्वी जी की नर्मदा के प्रति भक्ति, समर्पण भाव और असामान्य क्रिया-कलापों ने ग्वारीघाट में रहने वाले लोगों को भी प्रभावित कर दिया | इसी कारण सभी आपको "नर्मदेश्वरी" कह कर पुकारते हैं | पिछले 2 वर्ष से नर्मदा जी के तट पर साध्वी जी किसी गुप्त स्थान पर तपस्यारत है नर्मदे हर ...