धावड़ी कुंड (ओम्कारेश्वर)
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
धावड़ी कुंड (ओम्कारेश्वर)
धावड़ी कुंड (ओम्कारेश्वर) - नर्मदेश्वर बाणलिंग
पुराणों में भी नर्मदाजी का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि अपने त्रिपुरी के दग्ध होने पर बाणासुर ने भयभीत होकर धाराजी क्षेत्र में भगवान शिव की स्तुति करते हुए घोर तपस्या की थी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि मेरी भक्ति के प्रसाद से तुम मेरे समीप ही सपरिवार निवास करोगे और तुम्हारा पुनर्जन्म भी नहीं होगा। तुमने जिन करोड़ों पार्थिव मिट्टी के शिवलिंगों को बनाकर मेरा पूजन किया है। उन्हें नर्मदा नदी में धावड़ी कुंड में स्थित कुण्डों में डाल दो। कालांतर में इन कुण्डों से निकलकर यह शिवलिंग पूरे विश्व में स्थापित होंगे और बाणलिंग कहलायेंगे। पानी के भंवरों से हुई कटाई के फलस्वरूप विभिन्न रंगों के पाषाण पिण्ड इन कुंडों में पाये जाते थे।
कहते हैं इन लिंगों की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें नर्मदेश्वर लिंग भी कहा जाता है।जिसे धाराजी के नाम से जानते हैं, वह धावड़ी कुंड देवास जिले का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां संपूर्ण नर्मदाजी 50 फुट से गिरती है, जिसके फलस्वरूप पत्थरों में 10-15 फुट व्यास के गोल (ओखल के आकार के) गड्ढे हो गए हैं। बहकर आए पत्थर इन गड्ढों में गिरकर पानी के सहारे गोल-गोल घूमते हैं, जिससे घिस-घिसकर ये पत्थर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं।
यह अदभुत, दुर्लभ एवं आकर्षक प्रपात है। दुर्लभ इसलिए है कि यह अब जलमग्न हो गया है। अदभुत इसलिये की चट्टानों के कटने से कई आकर्षक आकृतियों का निर्माण हुआ है।
ऐसा लगता है जैसे नर्मदाजी स्वयं अपने आराध्य देव को आकार देकर सतत् उनका अभिषेक करती हो। इन्हें 'बाण' या नर्मदेश्वर महादेव का नाम दिया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि नर्मदाजी के स्वयंभू बाणों की प्राण-प्रतिष्ठा करना आवश्यक नहीं, ये स्वयंभू होकर प्राण-प्रतिष्ठित होते हैं।
सन २००५ के बाद ओम्कारेश्वर डैम के बैकवाटर में यह धावड़ी कुंड समा गया है. अब इसके दर्शन कभी नहीं होंगे. इसका स्थान ओम्कारेश्वर डैम की दिवार से ४ किलोमीटर की दुरी पर था.
धावड़ी कुंड को ओम्कारेश्वर क्षेत्र में "धाराजी" के नाम से जाना जाता था...
माँ नर्मदाजी के परिक्रमावासी श्री सतीशबाबाजी चुरीजी महाराज इनसे हमें काफी जानकारी मिली...
नर्मदे हर...हर हर नर्मदे