तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - वंदना परांजपे- Part 2 - 101-200
शूलपाणि झाड़ी से जानेवाले पैदल मार्ग
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - वंदना परांजपे- Part 2 - 101-200
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - वंदना परांजपे - Part 2 - 101-200
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग १०१
।।नर्मदे हर।।
राठोड परिवारको भावभिना अलविदा करके चल पडे तब सुबहके पावणेसात बजे थे। रास्तेमें सुनील शर्माको नर्मदे हर करके आगे निकले.हम शॉर्टकट से न जाते सिधे रास्तेसे चलने लगे। भुरियाँकुआ, भावपुरा,भेडागड,होते दाबड पहुँचे तब नौ बजनेवाले थे,बालभोगमे एक ढाबेपर पोहे लिये और चाय दूध लेने दुसरे दुकान गये तो पिछेेसे रितेश राठोड आ गया उसका दुकान है दाबडमें उसने हमारे दूधके पैसै दे दिये।नर्मदे हर। आगे चलने लगे।रामाधाममें पवा महाराजजींने नर्मदे हर किया,वह ग्रुहस्थ गोसावी है और दुर्वा, नीम के पत्ते,बेलपत्ते खाके रहते है ऐसा उन्होने बताया।चायपान के बाद नर्मदे हर।आगे आहेरवास गांवके बाद बारा बजे कालीबावडी आ गया। श्रीराम मंदिरमें गये,मंदिर बंद था।सामने गोस्वामी किराणा और मेडिकल स्टोअर है,वहाँ की माताजी सदाव्रत देती है,उन्होने खिचडी तयार करके देदी।राममंदिर के प्रांगणमें भोजनप्रसाद पाकर बर्तन साफ करके वापस दिये और थोडा विश्राम करके दो बजे आगे चलने लगे।बियाबानी दर्गा,बडीछितरी,ठीकरी के बाद एक नाला पार करके मतलबपुरा गांवमें श्री.दिनेश सोळंकी के घर आ गये।वह अब बच्चोंके पढाई केलिये धामनोदमें रहते है मगर चाबी सामने रहनेवाले श्री. सुनील चौहान केपास रहती है फोनपर बात हो गयी थी इसलिये कुछ परेशानी नही थी।नर्मदे हर।फ्रेश होकर सायंनित्यपाठ किया,तबतक सुनीलकी नववधू सौ.शांताने भोजनप्रसाद तयार रखा था। भोजन के बाद विश्राम।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा-भाग-१०२
।।नर्मदे हर।।
सुबह शांताने बढ़िया गरम गरम चाय पिलाया,नर्मदे हर।विनोबा एक्सप्रेस मांडवगढ़ कीतरफ चल पड़ी।सुनील बहुत दूरतक हमारे साथ आया था।गांव के तलाव के किनारेसे चलते चलते रुपसिंग डावर के चंद्रमौली झोपडीतक आ गये और जोरदार बारीश शुरु हो गयी।झोपडी के आडमें थोडीदेर रुके,बारीश थमने केबाद सुनील को नर्मदे हर कहा और हम आगे चलने लगे।रसुलपाडा,हनुमान मंदिर धर्मशाला के आगे अब घाट चढाई शुरु हो गयी,रस्ता खराबही था पिछली परिक्रमामे था वैसाही खराब। थोडा चढने केबाद विश्राम करके फिर आगे चढाई शुरु,और थोडी देरबाद आश्चर्य का सुखद धक्का लगा,चक्क सिमेंटकाँक्रिटका रोड आया।नर्मदे हर। तीन किमि घाट चढने केबाद सोनगढ़ किला आ गया।किला देखने फिर कभी आएंगे सोचकर आगे निकले।घाट समाप्त हुआ और नीलकंठेश्वरमंदिर आ गया।पहले पेटपुजा इसलिये धाबेपर गये और पोहे दूध बालभोग लिया।सँक धाबेमें रखकर सत्तर सिढ़ियाँ उतरकर नीलकंठेश्वर मंदिरमें गये।यहाँभी मुगल सम्राटोंने मंदिर की बारादरी बनायी थी,काश्मीर की चष्मेशाही बाग की तरह झरनेका पानी बहाया है और उसपर महल बनाया है।मगर बादमें मराठा शासकोंने फिर नीलकंठेश्वर की स्थापना की है। इस झरनेसे खुजानदीमैयाका उद्गम हुआ है जो निचे धरमपुरीमें नर्मदा मैयासे संगम करती है।नर्मदे हर।उपर आकर फिर एकबार विनोबा एक्स्प्रेस के इंजिनमें चायका इंधन भरकर उसको हरी झंडी दिखायी। तीनचार किमि चलकर मांडू के प्रसिद्ध श्रीराम मंदिर पहुँचे।व्यवस्थापकजीने रुम नंबर छे में आसन लगानेको कहा।नर्मदे हर।स्नान नित्यपाठ के बाद दर्शन करने गये मगर मंदिर के पट बंद हो गये थे।नर्मदे हर।बाहर जाकर हॉटेलमें भोजनप्रसाद लिया और रुममें आकर विश्राम।पहिली परिक्रमामें सारा मांडवगढ़ देखा था।खंडहरमें बदले हिंडोला,जहाज महाल,अशरफीमहाल,होशंगशहाका मकबरा वगैरे इसलिये कही जाना नही था सो आराम।शामको पहले शांतिनाथ भगवान मंदिरमें दर्शन करके फिर श्रीराम मंदिरमें आरती के समय गये।यहाँ चतुर्भुजश्रीराम के दर्शन होते है जो भारतमें एकमेव है।मंदिर का इतिहास रोचक है,ये श्रीराम,लक्ष्मण, सीताजी,सुर्यभगवान और शांतिनाथ भगवान भुमिगत थे।दो सौ साल पहले उपर लाकर ये मंदिर बनाया है।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग -१०३
।।नर्मदे हर।।
सुबह साडे छे बजे श्रीराम जी दर्शन लेकर निकले।बाहर टपरीपर चाय लेकर जैनमंदिरमें शांतिनाथभगवानजीके दर्शन लेकर विनोबा एक्सप्रेस रेवाकुंड की तरफ दौडने लगी और आठ बजे रेवाकुंड स्थानकपर जाकरही रुकी।नर्मदे हर। एक औदुंबरव्रुक्ष तलेसे उद्गम हुआ जलस्रोत का एक बडा कुंड बनाया है,चारों तरफसे सिढ़ियाँ बनी है एक तरफ पुरातन धर्मशाला और एक तरफ बाजबहाद्दर रानी रुपमतीका बड़ा किलेनुमा महल है।कहते है रानी रुपमती के लिये नर्मदामैया यहाँ प्रकट हुयी,मगर इसको ऐतिहासिक वा पौराणिक प्रमाण नही है केवल एक किवदंती है।नर्मदे हर। हम सुबह स्नान नित्यपाठ करकेही निकले थे और कुंडकी स्वच्छता भी स्नान करनेलायक नही थी इसलिये हमने दुरसे दर्शन कर लिये।नर्मदे हर। टपरीपर चाय लेकर कुंड को दाहिने ओर रखकर हम रुपमती महल के बाजुसे पिछे की ओर पगदंडीसे जाने लगे। कुछही क्षण, और विंध्याचलपर्वत के रौद्रभीषण दर्शन हो गये।बहुतही कठीण, छोटेबडे पत्थरोंसे। निकलकर निचे जानेवाली संकरी पगदंडी दिख रही थी। वही खडे हो गये।एक क्षण मेरे और स्नेहल के मनमें एकही विचार आया, आगे रास्ता नही दिख रहा,सामान के साथ खुदको संभलते बाबा और अंजूताई को संभलते उतरना बहुतही मुश्कील था,वापस जाकर मैयासे क्षमायाचना करके मांडूसे बसमार्गसे पैदलही जाना मुनासिफ होगा भले दो तीन दिन ज्यादा लगेंगे।नर्मदे हर! नर्मदे हर!! नर्मदे हर हर हर !!! पुकारतेही हमेशा की तरह मैया दौडके चली आयी। अपने साथ अपने पिताजी और सखी के साथ। अपने भाई विंध्याचलपर्वत को कहा,भैयाजी!थोडा सुकर हो जाना मै मेरे इस व्रुद्ध बच्चोंको लेकर आपको पैरोतले दबाते निचे उतरनेवाली हूँ।मेरे बच्चे अज्ञानी है,सिर्फ मेरे प्यारभक्ति खातर आये है।आप सहाय्यकर्ता हो जाना।और फिर मैया के साथ छोटेबडे पेड़पौधे,भक्कम पत्थरोंके हाथ विंध्याचलपर्वत जीनने हमें आधार के लिये दिये।मैयाने अपनी सखीसह बाबा और अंजूताई का हाथ पकड़ा,उनका सामान अपनी पीठपर लिया और साडेआठ से साडेदस दो घंटेमें वह वनझरी का प्रसिद्ध अवघड घाट उतारके हमको निचे मैदानमें लाया।नर्मदे हर! यहाँ मैयाका नाम था,लक्ष्मी डांगी। हम चारोंके आखोंसे क्रुतज्ञता के अश्रू बाढ़ की तरह बह रहे थे।पुनःपुनः हम उस दोनो देवतुल्य भगिनी के आगे नतमस्तक हो रहे थे।नर्मदामैया की जय!नर्मदे हर! अखेर हम को योग्य मार्गपर लाकर मैया पुनः पर्वतराजी में गुप्त हो गयी। ग्यारह बजे हिरापुर आ गये। रानीरुपमती के महल निचे रहनेवाले श्री. धारासिंग मोहरेजीने उनकी बेटीका आजही अपघातसे पैर फ्रक्चर होकर उसको धार के बडे हॉस्पिटलमें लेके गये थे और दुसरे बच्चे के लिये वह खुद घरमें रुके थे,फिरभी उन्होने हमारा सहर्ष स्वागत किया और थंडगार जलपान करवाया,थकाहारा आत्मा संतोषी हुआ।नर्मदे हर। यथावकाश बगवानिया आ गया वहाँसे शॉर्टकट से कुंदागांवमें सौ.सुरज जगदीश पांडरके घर आंगनमें बैठे।हमारे पास पोहे और शक्कर थी उसीसे क्षुधाशांति कर ली,थंड जलपान कर थोडी देर विश्राम किया और चार डिब्बोंकी विनोबा एक्सप्रेस को ग्रीन सिग्नल दिया। साडेचारबजे धामनोद,गुलझारा अलबेला हनुमान मंदिर प्रांगणमे आकर बैठ गये।वहाँ दिनेश सोलंकी हमे लेने आनेवाले थे और नासिकसे मेरे पती श्री. रत्नाकर परांजपेभी आनेवाले थे।दोनो आ गये,परांजपेजी के साथ सिन्नर के रहनेवाले दो तीन वारकरी भी थे वह ओंकारेश्वर जाकर परिक्रमा उठानेवाले थे हमको मिलने केलिये आकर फिर दुसरी बससे ओंकारेश्वर जानेवाले थे।नर्मदे हर। दिनेश सोलंकीभी आ गये,हमारा सबका सामान लेकर परांजपे रिक्षासे उनके घर गये और हम पैदल उनके घर पहुँचे।नर्मदे हर।सहर्ष स्वागत हुआ।बड़ा सेवाभावी परिवार है।सायं नित्यपाठ,स्वादिष्ट भोजनप्रसाद के बाद निद्राददेवी की आराधना।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १०४
।। नर्मदे हर।।
स्नान, नित्यपाठ केबाद चाय लेकर दिनेश और बहू बच्चे कंपनीको अलविदा नर्मदे हर बोलके हम मैया किनारेसे जानेके इरादेसे खलघाट आ गये,तब सुबहके साडे छे बजे थे।मोरगढ़ी,बलवाडा के बाद बांए तरफसे पुलियापार करके दाहिने तरफ कच्चे नये रास्तेसे बायी तरफ मुडके प्रथम बुटीनाला पार करके कच्चे रास्तेसे कारममैया किनारे पहुँचे,इस कारमैयामें मांडवगढ़के रेवाकुंडसे जल आता है।कारममैयामें ज्यादा पानी नही था सहजही पार हो गये। रास्ता कच्चाही था।खेतोंमेसे,पगदंडीसे चलते जलकोटीगांव पहुँचे,बादमें नारायण दत्तधाम।दर्शन के बाद सहस्त्रधारा, सहस्त्रार्जुन का बलहरण करके आनंदित मैया हसती खिलखिलाती उछलकुद करती अपना रेवा नाम यहाँ सार्थ करती दर्शन देती है,नर्मदे हर।भोजनप्रसाद ग्रहण करके महेश्वरकी तरफ चलना शुरु।अब अच्छा हायवे था।रास्तेमे रेशम उद्योग देखकर आगे एक अहिल्यादेवी निर्मित ऐतिहासिक बावडी देखकर यथावकाश महेश्वर पहुँचे।बहुतही सुंदर घाट है,उपर किलेमें जाकर अहिल्यादेवी का राजवाडा,राजगद्दी,सोनेका पलना,लड्डूगोपालजी दर्शन,राजराजेश्वर,अखंड नंदादीप,काशिविश्वनाथ दर्शन लेकर मंडलेश्वर केलिये निकलेही थे,तो सामने बलगांव के मौनिबापूजी,प्रणाम किया।उन्होने आशिर्वाद देकर परिक्रमा कैसी चल रही है कुछ आवश्यकता है वगैरे पुछा।बस् मैयाक्रुपा है हमने जवाब दिया।नर्मदे हर।आगे छोटी महेश्वरीमैया पुलपरसे पार करके लाडवी,नागमंदिर गांधीनगर,उमिया कन्या छात्रावास,मंडलेश्वर बसस्टँड के पास विकास हॉटेलके प्रेमचंदजीने चायप्रसाद दिया।आगे बाजारपेठ होकर दत्तमंदिर पहुँचे तब शामके साडेपांच बजे थे।श्री.सुधाकर भालेरावजीने सहर्ष स्वागत किया।स्वतंत्र रुम दे दी।फ्रेश होकर चायप्रसाद लेकर श्रीकाशिविश्वनाथ, प.पू.वासुदेवानंद सरस्वती महाराज,श्रीराम,श्री गोंदवलेकर महाराज,मैयाघाटका लोकार्पण महामहिम राष्ट्रपती श्री.शंकरदयाल शर्माजीने किया है। दर्शन लेकर वापस दत्तमंदिर आने के बाद आरतीमें सहभागी होकर बादमें हमारा नित्यपाठ किया और स्वादिष्ट खिचडी,अचार पापड दही ऐसा महाराष्ट्रीय भोजनप्रसाद लिया। अब तो निद्रादेवीजी की आराधना ।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा- भाग - १०५
।।नर्मदे हर।।
सुबह स्नान,नित्यपाठ, श्रीदत्त दर्शन के बाद चायप्रसाद लेकर सुधाकर भालेरावजी को नर्मदे हर करके हमारी विनोबा एक्सप्रेस ने आगे प्रस्थान किया। रास्तेमें छपन्नदेव मंदिर में दर्शन लेकर आगे गुप्तेश्वर महादेव मंदिर गये।यह वही स्थान है जहाँ आदि शंकराचार्यजीने परकाया प्रवेश किया था मंडनमिश्रजी की पत्नीके कुछ प्रश्नोंके उत्तर देने के लिये।और उनका शरीर यही निचेकी गुफामें एक महिनेतक उनके शिष्यने संभालकर रखा था।नर्मदे हर।दर्शन लेकर आगे चलना शुरु किया।महेश्वर पॉवर प्रॉजेक्ट के गेट के पास टपरीमें मालिक रामू केवटजीने सबको चाय दूध दिया।नर्मदे हर। आगे चले तब सव्वा आठ बजे थे।जलूद के बाद नानी नदीमैया पार करके पानी एकदम थोडासा था।उतवली के पहले शॉर्टकट से नया सुलगांव पहुँचे।हनुमान मंदिरमें दर्शन लेकर जानेही वाले थे तब श्री.रामसिंग तवरजीने नर्मदे हर करते बुलाया,वहाँ चाय दूधप्रसाद लेकर आगे श्रीराम मंदिरसे पंडीत श्री.सुभाष पाठकजीने नर्मदे हर.करके बुलाया,दर्शन लेकर उनके यहाँ फिर चाय दूधप्रसाद लिया।आगे गोगांवामें हरीराम फुलचंद पाटिदारजी के घर पहुँचे तब ग्यारह बज रहे थे,आज बालभोग,चाय दूध बहुत हुआ था इसलिये इतनी जल्दी भोजनकी आवश्यकता नही थी।मगर ना भी नही बोल सकते इसलिये उनके यहाँ मधूर मख्खनवाला छास बडे बडे ग्लास भरके पिनाही पड़ा।नर्मदे हर।आगे चलते एक बजे पथराड पहुँचे।अब धूप तेज हो गयी थी और भूकभी लगी थी,मैयाने आज हमारा भोजनप्रसाद प्रबंध श्री.काळुरामजी पाटिदार के पचास लोगोंके एकत्र कुटुंब में किया था।सहर्ष स्वागत,स्वादिष्ट भोजनप्रसाद,विश्राम के बाद हम तीन बजे आगे निकल पड़े।कुंभिया गांव के आगे रास्तेमें एक मैयाजी खड़ी थी,हमको बोली,बेगांवको नही जाना चिरागखानमार्गे कतरगांव जाना,डांबर रोड है।कच्चे रास्तेसे जाओगे तो भटक जाओगे।और हम चिरागखान रोडपर जानेतक वह वहीं खडी रही।नर्मदे हर।फिर हम चिरागखान गये।वहाँसे डांबररोड लगा।शामको पांच बजे कतरगांव पहुँचे।एक टपरीपर चाय केलिये रुककर निवास व्यवस्था देखनेवाले थे,तो वहाँ श्री.दिलीप पाटिदारजी बैठे थे।उन्होंने उनके घर बुलाया और चायके पैसेभी दे दिये।नर्मदे हर।चार भाईयोंके चार घर पासपास लगकेही है।तुरंत सब जेठाणि देवरानीयाँ इकठ्ठा हो गयी।शाम के नित्यपाठ आरतीमें सब सहभागी हो गये।कुछ भजनगानभी किया।दिलिपजी के बेटेका दो महिने पहले बड़ा अपघात हुआ था।गर्दनमें कॉलर लगी है,ऑपरेशन हुआ है,ठीक हो जाएगा एक दो महिनोंमे मैने एक्सरे, रिपोर्ट देखके बताया तो उनको बहुत तसल्ली मिली।नर्मदे हर।रातमें दाल चावल,रोटी और आवलेका मुरब्बा भोजनप्रसाद मिला।हां!ये बताना तो भुलही गयी,इधर आंवले की खेती बहुत है।खेतोंमें बड़े बड़े आंवले के पेड़,बहुत आंवले खाये थे चलते चलते।नर्मदे हर।अब निद्रादेवी की आराधना।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १०६
।।नर्मदे हर।।
आज विनोबा एक्स्प्रेस का प्रवास हायवेसेही है इसलिये स्नान, नित्यपाठ करके चायप्रसाद लेकर सुबह सव्वा पांच बजेही उसको ग्रीन सिग्नल दिया।श्री.दिलीप पाटिदारजी हमारे साथ हो लिये और बोथ्यापुरा के आगे कोंगावाँतक आ गये। इसी कोंगावाँमें हायवेपरही शिवहनुमानजी मंदिर है,ठीक उसके सामनेही दिलीपजी के बेटेका अपघात हुआ था और हनुमानजीनेही उसको बचाया ऐसा उनका विश्वास है।नर्मदे हर। दिलीपजी वापस घर केलिये और हम आगे निकले। सात बजे पिपल्या गांवमें एक टपरीमें गरम गरम दूध लिया,थंड बहूत थी इसलिये जरुरतभी थी। चलो आगे, रास्ते के बायींतरफ दूरवर एक तालाब जैसा था,उसमें बहुतसारे फ्लेमिंगो पंछी विहार कर रहे थे।मेरा मोबाईल छोटा था फिरभी फोटो खिंचे बगैर रहा नही गया।बरिया,बंजारी गांव पिछे छोडके एक जगह क्षुधाशांतिग्रुहमें पोहे चायका बालभोग लिया। बडदिया के आगे हमीरपुरामें पहुँचे तब ग्यारह बजे थे।डॉ.रवी बागुलजी के क्लिनिक के बरामदेंमें बैठ गये।डॉक्टर मूल महाराष्ट्रीय है। आधा घंटा विश्राम करके आगे चलने लगे।बडवाह के बंद टोलगेटपर पहुँचे तब देढ़ बज रहा था,धूप बहुतही कड़ी थी थक गये थे एक बेंचपर बैठकर पानी पिया।अच्छा हुआ हमारे पास मिल्टन की वॉटरबॉटल है,पानी थंडाही रहता है नही तो प्यास बुझना ना मुमकीन होता।नर्मदे हर।कैसे तो पैर खिंचते चलने लगे।बडवाह दो कि..मि.रहा था,वापस श्री.रामाधार वर्माजी के संतोषीक्रुपामें मंदिरमें बैठे,थंडा जलपान करके आगे निकल पड़े।तीन बजे बडवाह पहुँचे।बहुत भूक लगी थी,भोजनालयमें भोजनप्रसाद लिया। आज खेडीघाटमें श्रीराम महाराज के समर्थकुटी आश्रममें जाना था।कल इधरसेही आगे जाना था और खेडीघाट यहाँसे और चारपांच कि.मि.था इसलिये सर्वानुमते रिक्षासे जानेका तय हुआ।भोजन के बाद वैसाही किया और पांच बजे समर्थकुटी पहुँचकर रुम नंबर ग्यारहमें आसन जमाया।नर्मदे हर।महाराज नही है वह गोंदवले गये है।सायंनित्यपाठ,भोजनप्रसाद,सील लगवाना सब हो गया।अब निद्रादेवी की आराधना।आज पैदल तीस कि.मि.और पांच कि.मि..रीक्षासे ।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १०७ -
।।नर्मदे हर।।
स्नान नित्यपाठ करके विनोबा एक्सप्रेस चल पड़। मगर आज इंजिनमें इंधन कम था इसलिये एक कि.मि.जाकर एक चायकी टपरी के सामने रुक गयी।नर्मदे हर।विनोबा एक्सप्रेस के हमारे पेटरुपी इंजिनमें गरम गरम चायका इंधन भरकर विनोबा एक्सप्रेसको ग्रीन सिग्नल दिया। सुबह साडेसात बजे बडवाहमें नागेश्वर पहुँचे। खेडीघाटसे मैयाकिनारे से दगडूबापूजीके आश्रमसे चोरलमैया और नर्मदामैया संगम पार करके नही जा सकते क्योंकी भगवान नागेश्वर कुंडको दाहिनी ओर रखते हुए जाना होता है,ऐसा रिवाज है।शायद आगे ओंकारेश्वर बांध होनेसे आगे मार्ग बंद हुआ है इसलिये ऐसा रिवाज अब आया होगा क्योंकी पहले जिन्होंने परिक्रमा उठायी है उनके लिखे पुस्तकोंमें चोरलसंगम के आगे चौसष्ट योगिनी मंदिर,जैन मंदिर धाराजीका उल्लेख मिलता है,मगर अब हम जिस मार्गसे जानेवाले है उससे ये सब पुरातन तीर्थ दर्शन नही हो सकेंगे।नर्मदे हर।भगवान नागेश्वर दर्शन पाकर धन्य हो गये। वही एक तरफ गायत्रीमाता मंदिरमें दर्शन पाकर बाजमें धर्माधिकारी आईजी (माताजी,मराठीमें आई मतलब माँ )के घर गये।पहली परिक्रमामें हमने उनके घर मुकाम किया था।आईजी महाराष्ट्रीय ब्राह्मण है,बाबुजीके नौकरी निमित्त पचास साल पहले वह बडवाह आकर बस गये और यहीं के हो गये।नर्मदे हर।अब आगे जाकर चोरलमैया पार करनी थी तभी श्री.श्रीराम सिनोदियाजीने नर्मदे हर करके घर बुलाया।चायप्रसाद लेकर आगे बढ़े,एक संकरी गलीसे नीचे उतरकर चोरलमैया किनारें पहुँचे तो,राम राम राम!मैया! इतनी गंदगी,बदबु की वहाँ से चलना ना मुमकीन।क्षमा याचना करते वापस पिछे आकर रास्तेसे जाकर पुलसे चोरलमैया पार कर ली।महाकाली माताजी मंदिरमें दर्शन पाकर शिवमंदिर गये।वहाँ रहनेवाले शीख सरदार बाबाजी ब्रम्हलीन होनेका समाचार मिला।पहली परिक्रमामें उनसे सत्संग का लाभ हुआ था।नर्मदे हर।CIFC के कपाउंड के पाससे रोडसे चलना शुरु किया।अब ओंकारेश्वर अभयारण्य शुरु हुआ।सामनेसे एकसाथ कदमताल करते करते दौड लगानेवाले विद्यार्थी सैनिक देखकर देशाभिमानसे हमारा सिना चौडा हो गया और अपने इतने होनहार बालयुवा पुत्र देशसेवा के लिये देनेवाले मातापिता के सामने हम नतमस्तक हो गये।नर्मदे हर।जय हिंद।अभयारण्य होनेसे धूप नही लग रही थी मगर घाटकी चढ़ाई उतराई थका रही थी। बायी तरफ एक रास्ता सिधा आठ कि.मि.कुंडी जानेवाला था मगर हमको च्यवनाश्रम जाना था इसलिये हम आगे निकल पड़े।आगे एक जगह कुछ माताभगिनी बस के लिये बैठी थी,उनको च्यवनाश्रम का रास्ता पुछा तो पासका कच्चा रास्ताही शॉर्टकट था।नर्मदे हर।सुंदर घनदाट जंगल के लाल लाल पगदंडीसे चलते चलते हम च्यवनाश्रम पहुँचे।गाँव है मोदरी। निसर्गसौंदर्यसे परिपुर्ण,बड़े बड़े व्रुक्षराजीसे घिरा हुआ है च्यवनाश्रम।आश्रम के बाहर एक गोमुखसे बहता हुआ स्वच्छ जलप्रवाह देखतेही मन मोह लेता है।पीठसे सँक उतारकर हम गोमुख के पास जाकर पहले नमन करके मनसोक्त वह जलाम्रुत प्राशन किये।जय हो मैया की!हाथ पैर धोकर ताज़ा होकर आश्रममें प्रवेश किया।नर्मदे हर।
आगे,च्यवनाश्रम.सुंदर निसर्ग,घनदाट व्रुक्षराजीसे परिपुर्ण परिसर है च्यवनाश्रमका।यहाँ एक स्वच्छ पानीसे भरा एक कुंड है जिसमें लाल गुलाबी सफेद निले कमल के फुल खिले है।इसी कुंडका जल जमीन के नीचेसे बहते हुए बाहर के गोमुखसे प्रवाहीत होता है।बारह माह ये प्रवाह बहता रहता है।आश्रमकी बड़ी गोशाला है।महंत विजयदास महाराजजी तरुण संन्यासी यहाँ की व्यवस्थापक है।सब तरहकी स्वच्छ सुविधा है।नर्मदे हर।
च्यवनऋषि की ये तपोभूमि।महामुनि जब तपस्यामें लीन थे तब बहुत साल गुजर जानेसे उनके शरीरपर चिंटींयोने मिट्टीसे घर बना दिया जिसको मराठीमें वारुळ कहते है।एक दिन इधरके राजा शर्याती और उनकी कन्या सुकन्या संचार करते करते आ गये,सुकन्याने चिंटींयोने बनाया ये घर और उसमेंसे चमकती दो आंखे देखी,सुकन्या छोटी थी क्या चमक रहा है?कौतुहलवश उसने एक कांटा लेकर उन चमकती आंखोंमें चुभाया।वेदनासे कहारते मुनिकी समाधी भंग हो गयी और आखोंसे खून बहने लगा,मुनि अंध हो गये।सुकन्या डरकर अपने पिताजी के पास गयी और थर थर कांपते हुए उसने पिताजीको सब बता दिया।राजा मंत्रीगण के साथ तुरंत घटनास्थल आ गया।उसने महामुनि च्यवनजीसे माफी मांगकर उनको उनसे परिचय पुछा।मुनिवरने बताया और बोले अब मै अंधा हो गया हूँ अब तपस्यासे मै जो विश्वकल्याण हेतू संशोधन कर रहा हूँ वह कैसे कर पाऊंगा?तब सुकन्या विनम्र होकर बोली,मेरी अज्ञानता की वजह आप आहत हो गये इसलिये अब मै आपसे विवाह करके आजन्म आपकी सेवा करुंगी और आपके संशोधन कार्यमें आपकी सहायता करुंगी।राजा शर्याती ने संमती दे दी और विवाह हो गया।च्यवनऋषि आयुर्वेद के संशोधक थे और शक्तिवर्धक औषधीप्राश तयार कर रहे थे।एक बार देवभूमिमें एक यज्ञ चल रहा था तब किसी कारणवश देव अश्विनीकुमारजींको यज्ञभाग देना नही चाहते थे।तब देवों के विरुद्ध जाकर च्यवनऋषि जीनें अश्विनीकुमार जीं को यज्ञभाग दिया।इससे प्रसन्न होकर अश्विनीकुमारजींने आश्रमके इसी कुंडमें च्यवनमुनिको डुबोकर नवजीवन देकर तरुण और सुंदर देह प्रदान किया।बादमें च्यवनऋषि जीने च्यवनप्राश ये आयुर्वेदिक शक्तिवर्धक बनाया।नर्मदे हर।ये है इस खुबसुरत च्यवनाश्रम का अनोखा महत्व।अब च्यवनाश्रम में लिखे कुछ श्लोक।
(१) शर्यातिच सुकन्याच च्यवनःशक्रमश्विनौ । एतेषां स्मरण मात्रेण नेत्र रोगान् विनश्यति ।।
(२) भक्तयै पूजयिष्यंति देवेशं च्यवनेवरम् । आजन्मं ये प्रवदं पापं तेषां नश्यंति तत्क्षणात ।।यं यं काममभिध्यायेन्मन साभिमत नरः । तं तं दुर्लभ माप्नोति च्यवनेश्वर दर्शनात् ।।
(३) शान्तम् शाश्वतम् प्रमेय मनघम् निर्वाण शांतिप्रदम् । ब्रम्हा शम्भु फणींद्रसेव्यं मनिशं वेदान्त वैद्यम् विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं माया मनुष्यं हरिं । वन्देहं करुणाकरं रघुवरं भूपाल चुडामणिम् ।। नर्मदे हर।
च्यवनाश्रम में संत ज्ञानेश्वर जी के आळंदीगांव की रहनेवाली कुमारी मीना कळणे नामकी लडकी मिली । वह बारा सालकी थी तब उसने एक किर्तनमें सुना की सिर्फ मनुष्य जन्ममेंही भवसागर पार हो सकते है,और उसको बचपनसेही नामस्मरण करना अच्छा लगता था इसलिये वह गुरु के साथ चली गयी।ऐसाही एक जीवन। नर्मदे हर ।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १०८
।।नर्मदे हर।।
सुबह स्नान नित्यपाठ के बाद चायप्रसाद लेकर च्यवनेश्वर दर्शन लेकर हमारी विनोबा एक्स्प्रेस ने आगे प्रस्थान किया तब सुबहके साडेसात बजे थे। जंगलसे बाहर आकर पक्के रास्तेसे चलने लगे मगर सिर्फ एक कि.मि.जाने केबाद बांयी तरफ कुंडी जानेवाला कच्चा रास्ता आ गया।आश्रमसे हमारे साथ आयी एक कुत्तीमैया उस रास्तेपर जाके खड़ी हो गयी।नर्मदे हर।रास्ते के दोनों तरफ सागका जंगल था,जनवरी का महिना थंड के चलते पेड़ोंसे सारे पत्ते नीचे गिर गये थे और सारा जंगल विरानसा हो गया था।आज पौष मासकी तीलकुंद संकष्टी चतुर्थी है,मेरा व्रत है।एक जगह बैठकर फलाहारी चिवडा खाकर पानी पिया।कुत्तीमैया को दिया तो उसनेभी खा लिया। कल बडवाह से च्यवनाश्रम तक रास्तेमें कही भी पानी नही था,मतलब पंप या झरना कुछ नही था।आजभी नही है।नर्मदे हर। कुंडी के पहले तीन कि.मि.एक जगह उकाळा नामका नाला आया,उसके पानीसे बुलबुले निकल रहे थे।एक बड़े पेड़ के निचेसे पानी निकल रहा था। पानी गुनगुना था,सुबह काफी गरम होता है पानी इसलिये उकाळा नाम है।पासमें हनुमानजी विराजमान है।नर्मदे हर। साडे ग्यारह बजे कुंडीगांव पहुँचे।कुत्तीमैयाभी साथ आयी थी,च्यवनाश्रम से कुंडी दस कि.मि.हमारे साथ आयी थी।मगर बहुत बुलानेपरभी गांवमें नही आयी।सौ. अनिता गणेश पटेलजीने नर्मदे हर किया और घर बुलाया।नर्मदे हर।सब के लिये भोजनप्रसाद का प्रबंध करने लगी।मेरा व्रत है कहा तो उसकाभी व्रत था इसलिये हमारे लिये साबुदानेकी खिचडी बनायी।हम बैठे ही थे तब श्रीराम मंदिरकी पुजारी व्यवस्थापिका श्रीमती किरन डोंगरेजी आ गयी।नर्मदे हर।वह भी परिक्रमावासीओंकी सेवा करती है।वह मूलसे महाराष्ट्रीय ब्राह्मण है।हमारे परिक्रमा बंधु पुणे के श्री.अशोक भागवतजी,मुंबई के गोवर्धन गोसावी जी को पहचानती है।नर्मदे हर। बादकी परिक्रमामें हम उनके यहाँ रुके थे। भोजनप्रसाद, फरियाली पाकर दो बजे विनोबा एक्स्प्रेस आगे बढ़ी। चरवाह लडकोंने बडेलगांव जानेवाला शॉर्टकट दिखाया। तीन बजे बडेलमें श्रीराम मंदिरमें पंडीत श्री.सत्यनारायण शर्माजी के यहाँ रहनेका इंतजाम मैयाने किया था। बहुत सज्जन आतिथ्यशील परिवारका परिचय हुआ।सौ.चित्रा शर्मा,डॉ.दिपक शर्मा,बेटी सीमा,बहू मायके गयी थी।भोजनप्रसाद में सीमाने भरवी तोर ई बनायी थी स्वादिष्ट।तीलगुड के लड्डू, दाल चावल नरम नरम रोटी।तीलकुंद चतुर्थी बढ़िया हो गयी। मंदिरके सभामंडपमें पलंग गादी ब्लँकेट थाट हो गये हमारे।नर्मदे हर।सारी थकान छुमंतर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १०९
।।नर्मदे हर ।।
सुबह साडे छे बजे स्नान, नित्यपाठ,श्रीरामजी दर्शन, चायप्रसाद के बाद विनोबा एक्सप्रेस निकल पड़ी पिंपरी की तरफ।पिंपरी के डॉ.पाटीलजी को कलही फोन करके हमारे आगमनकी सुचना देदी थी।नर्मदे हर।मेहेंदीखेडातक डांबररोड था हम वहाँ पहुँचही रहे थे की पिछेसे डॉ.दिपक आ गया,पंडीत भाभीजींने तील के लड्डू भेजे थे सुबह वह देना भूल गयी थी तो बेटेको इतनी दूर भेजा,ऐसे प्यार और सेवाभावका नाम है मैयाक्रुपा।नर्मदे हर। साडेसात बजे थे अब जंगल सफारी शुरु।दोनो तरफ घना पतझड हुआ जंगल बिचमें लाल मिट्टीकी सडक,मंजुळ गान गाते सुंदर रंगीबिरंगी पंछी,रानफुलोंकी सोंधी सोंधी खुशबू मन आनंदविभोर हो गया और कब तरानिया गांव आया ये समझाही नही। संतपुरुष सद्गुरु नानामहाराज तरानेकरजी का पैत्रुक गाँव।घनदाट जंगल के बिच कणाद नदीमैया किनारे बसा हुआ छोटासा गांव।फॉरेस्ट चौकी के पाससे शॉर्टकट से खेतोंके बांधोंपर चलते कणादमैया किनारे पहुँचे।कणादऋषि जिन्होने अणु रेणु कणोंका आविष्कार किया ऐसे महान तपस्वी की तपोभूमि है।स्वच्छ सुंदर प्रदूषणमुक्त कल कल बहती कणादमैया,जलस्पर्श करके विनम्र प्रणाम किया और उसके पास मैयाको सांगावा दिया रेवामैया प्रणाम, आपके बालक सुखरूप चल रहे है जल्दही लक्कडकोट जंगल पार करके आपके दर्शन करने आ रहे है।नर्मदे हर।कणाणमैयाका थंड मधुर जलाम्रुत प्राशन किया और पादस्पर्शम् क्षमस्व मैया ऐसी क्षमायाचना करके एखदुसरेको आधार देते संभलते कणादमैयाका विशालपात्र पार किया।पानी ज्यादा नही था।नर्मदे हर।सामनेसे एक आदमी इतनी छोटी पगदंडीसे मोटरसायकल चलाता आया और फिसल गया,मैयाकी बडी क्रुपा उसको ज्यादा लगी नही मगर गाडीका बडा नुकसान हुआ।पिंपरीसे आनेजानेका ये रहदारी वाला मार्ग है मगर कणाणमैयापर ब्रिज नही।बसभी थोडी दुरसे मगर पार ऐसीही होती है।नर्मदे हर.पगदंडीसे टेकरी चढ़के जंगलमार्गसे चलना शुरु। अब पारिजात(हरसिंगार)फुलोंके पेडवाला जंगल था। हसते गाते चलते बारा बजे पिंपरी पहुँचे।डॉ.सुरेश पाटीलजी के घर सहर्ष स्वागत हुआ।डॉ.भाईसाब,भाभीजी,पुत्र पंकज,बहु ज्योत्स्ना, पोता पोती सारा परिवार सज्जन सेवाभावी है।डॉक्टर महाराष्ट्र के अंमळनेर के रहनेवाले,धार के राजा आनंदराव पवारजीने उनको यहाँ अपनी आदिवासी प्रजाको आरोग्यसेवा देने हेतु लाया और डॉक्टर भाईसाब तनमन लगाकर सेवा करने लगे।नर्मदे हर। हमारी पहली परिक्रमामें मुझे बुखार आया था तब तीन दिन सारे परिवारने मेरी बहुत सेवा की थी। हलवापुरी का भोजनप्रसाद पाया।कपडे धोनेका बड़ा कार्यक्रम किया।बच्चेकंपनी केसाथ खेलते समय कैसे बिता समझाही नही।शामको श्री. गुप्ताजी के घर चायपान करने गये। रातको महाराष्ट्रीय खिचडी अचार पापड भोजनप्रसाद नित्यपाठ अब निद्रादेवी जीकी आराधना।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - ११० -
।।नर्मदे हर।।
स्नान, नित्यपाठ करके ज्योत्स्ना ने दिया गरम गरम चायप्रसाद लेकर डॉ.पाटीलजी को अलविदा नर्मदे हर करके हमारी विनोबा एक्स्प्रेस निकल पड़ी। घरके सामनेसे सीतावन जानेवाला शॉर्टकट था। आधे घंटेमेंही सीतावन पहुँचे।सीताकुंडका दर्शन लेकर उपर चढ़कर मंदिर पहुँचे। दर्शन लेकर आगे चलें,तब सुबहके साडेसात बजे थे। रास्ता अच्छा डांबरका था। तातूखेडी,निमनपुर, कांकड गांव पिछे छोड रतनपुर पहुँचे तब दस बजे थे।सरपंच राजेश देवड़ाके घर गये।सिर्फ पच्चीस सालका ये लडका, मगर उसका गांवमें किया काम बुजुर्ग व्यक्ती का।गांव इतना स्वच्छ की रास्तेमें घासकी एक तनसडीभी नही थी। गटर नालेमेंसे बहनेवाला पानीभी साफसुथरा।वा वा! क्या बात है।ऐसा सरपंच और ग्रामपंचायत, जनता ऐसी होगी तो भारतका भविष्य निःसंशय उज्वल है। हमारी पहली परिक्रमामें मुझे बहुत बुखार आया था तब राजेश और उसका मित्र उपसरपंच संजयने हमको मोटरसायकलसे डॉ.पाटीलजी घर छोड़ा था। नर्मदे हर। राजेश के घर चायप्रसाद लेकर विनोबा एक्सप्रेसको ग्रिन सिग्नल दिया। अब कच्चा जंगलका रास्ता शुरु हो गया। पतझड़ का मौसम है इसलिये जंगल उजडा उजडासा हुआ है। सव्वा ग्यारह बजे बावडीखेडा पहुँचे। यहाँसे एक रास्ता जयंतीमाता और दुसरा सेमली जाता है। दोनों रास्तेसे लक्कडकोट झाडीमें पहुँच सकते है।डॉ.पाटीलभाईसाबने कहा था की जयंतीमाता का रास्ता कठीण है इसलिये सेमलीसे जाना।नर्मदे हर। साडेबारा बजे सेमलीमें नर्मदेहर आश्रम पहुँचे।यहाँ श्री.विनोद द्विवेदी व्यवस्थापक है।खिचडीका सदाव्रत मिला,सबने मिलके खिचडी बनायी।भोजनप्रसाद लिया। कल प्रसिद्ध लक्कडकोट की झाडी पार करनी है।नर्मदे हर। सायंनित्यपाठ के बाद विनोद द्विवेजीने रोटी सब्जीका तयार भोजनप्रसाद दिया और कल साथ ले जाने केलियेभी रोटियाँ और गुड़ दिया।ऐसा लगा,मैयाने उनको आज्ञा दी होगी,मेरे बच्चे थके है उनको चुल्हा जलानेकी आदत नही है इसलिये सदाव्रत नही भोजन देना और कल लक्कडकोट में भोजनसुविधा नही है इसलिये भोजन बांधके साथमें देना।नर्मदे हर।अब निद्रादेवी की आराधना।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १११ -
।।नर्मदे हर।।
आश्रमके बाहर पंपके गुनगुने गरम पानीसे स्नान, नित्यपाठ करके भोर समय छे बजे हमारी बहादूर टीम लक्कडकोट की जंगल सफारीपर निकल पड़ी।नर्मदे हर। चंद्रप्रकाश को हाथमें जली बँटरी साथ दे रही थी। सात बजे नया प्रेमगढ़ आया।अरुणोदय हो रहा था,प्रत्येक आदिवासी घरसे नर्मदे हर से हमारा स्वागत हो रहा था।आगे की दिशा मालूम हो रही थी। और एक बुजुर्ग बाबाजींने अपना बांए हाथके इशारेसे कहा सीधे जाके पगदंडीसे घाटी उतरो।नर्मदे हर। भाषा ठीकसे समझमें नही आनेसे आगे दो राहे सामने आनेके बाद उनके बांए हाथका इशारा नजर अंदाज करते सीधा जावो ध्यानमें रखते हम सामने दिखनेवाली पगदंडी की तरफ आगे बढ़े। वह था मांडूके वणझरी घाट की छोटी प्रतिक्रुति।नर्मदे हर।एक के पिछे एक ऐसे वह कठीण पत्थरोंसे जानेवाली पगदंडी उतरते आधा आधिक उतरकर आये,सामने बहुतही निचे एक नदीमैया दिखायी दी।कुछ तो गलती हुयी है। किसीको पुछना चाहिये मगर वहाँ कोई नही था किसको पुछे? भाऊजी,नर्मदाप्रसाद जोशीजीको पुछेंगे,फोन करना था।बाबाजीनें फोन सँकमें रखा था।वहाँ चार लोगोंको एकसाथ खड़े होने जगहही नही थी,फिर भाभीजी और बहनजी थोडी आगे गयी और मैने बाबाजी की सँक कंधेपरसे कैसी तो उतार दी। फोन को रेंज होगी इसको संदेह था सबके मनमें मगर मैया की लिला देखो उस घने जंगलमें bsnl मोबाईल को फुल रेंज थी।नर्मदे हर। नर्मदाप्रसाद भाऊजी को फोन किया और उनको बताया, वह बोले की वहभी इसी जगह फ़से थे बोले,निचे उतरकर नदीमैयाके पास जाकर उसको अपने दाहिने तरफ रखते उपर उगम की तरफ चलते जाओ और दिखनेवाली नदीमैया पार करके चले जाओ।बस् काम हो गया और फोनकी रेंज चली गयी।नर्मदे हर। भाऊजींके सलाहसे हमको नर्मदाप्रसाद ही मिल गया। बाबाजींने सँक पिठपर लाद ली और हम वापस उतरने लगे।थोडीही देरमें नदीमैयाके किनारे पहुँचे।दुसरे किनारे कुछ लडके थे,आवाज देकर उनको पुछा।उन्होनेभी हाथ के इशारेसे उफर की तरफ जानेको कहा।नर्मदे हर। वापस जंगल सफर शुरु।साधारण तः देढ़ दो कि.मि.चलने के बाद कुछ आदिवासी घर दिखायी दिये। हम आनंदविभोर हो गये। नर्मदे हर।श्री.मानसिंग मानकरजी के आंगनमें हमारा बहुतही सहर्ष स्वागत हुआ।बैठे,थंडगार जलपान किया। मानकरजी ने अपने पोतेको भूरियाको हमारे साथ नदीमैया पार करवाके रास्ता दिखाने हमारे साथ भेजा।नर्मदे हर। निचे उतरकर हम नदीमैयाके किनारे पहुँचे।ये है खांडमैया या जटाशंकरीमैया। भूरियाने हाथ पकडकर लिलया हमको पार करवाया।इस मैयाका वैशिष्ट्य ये की,इतनी कलकल करती बहती नदीमैया पर प्रवाहमें जो बड़े बड़े पत्थर है उनपर बिलकुल फिसलन नही हुयी कायी शैवाल ना के बराबर था। मैया की बड़ी क्रुपा।नर्मदे हर। पार होतेही उपर जंगल रास्ता था।भुरिया को अलविदा नर्मदे हर करके हम आगे बढ़े।सुबह केे साडेनऊ बजे जयंतीमाता फाटा आया। सामने माइलस्टोन दिखा रहा था,,पामाखेडी 17 कि.मि. पानी का पंप था,मैने पानी पिया तो बहुतही खराब टेस्ट फिर सबने सिर्फ मुहँ धोया।सब के पास एक एक बॉटलही पानी था और जोभी इस जंगलके बारेमें पढ़ा था उस हिसाबसे यहाँ पानी के स्त्रोत नही है इसलिये पानी संभलके इस्तमाल करना है यही विचार मनमें रखते चलने लगे। विनोद द्विवेदीजीने कहा था की लक्कडकोट झाडीमें बड़े जंगली जानवर नही है फिरभी मानसिक तनाव लेकर हम चलने लगे अब हमको हनुमान दर्शनकी आस लगी थी। रास्तेमें दो नाले मिलें जिनका पानी बहुतही स्वच्छ मधुर था,छोटी छोटी मछ़लिया उसमें इठलाती तैर रही थी। लाल मिट्टीका कच्चा रास्ता,दोनों तरफ सागव्रुक्षोंका जंगल पतझड़से विरानसा हुआ और जल्दसे जल्द पामाखेडी पहुँचना है इसी सोचमें डुबे हम चल रहे थे। और आ गया वह स्थान। एक चौथरेपर खुलेमें हनुमानजी खड़े थे।हमने आधा रास्ता तय किया था। पासमेंही कालापानी नामकी छोटी नदीमैया पानीसे भरके बह रही थी।दुरसे देखनेको पानी पानी कोयले जैसा काला दिख रहा था मगर हाथमें लिया तो स्वच्छ मधूर था। नर्मदे हर। हनुमानजीको नमन करके बैठे।सुंदर है परिसर,घना जंगल पंछी गा रहे थे।यहाँ बहुतसे हॉर्नबिल पंछी है।बडी लंबी थोडी तेढ़ी चोंच,लंबी पुंछ और सोनेरी चॉकलेटी रंग।बहुतही सुंदर पंछी है। थोडी फोटो ग्राफी की इतने क्लिअर फोटो नही आये मोबाईल छोटा था न। कलही पंडीजीने गुड़ रोटियाँ साथमें दी थी।रामदूत हनुमानजी को भोग चढ़ाया और गुड़ रोटी का मिठा भोजनप्रसाद पाया। पंछी भी प्रसाद पाने आये थे।नर्मदे हर। निकले तब सिर्फ आधा घंटा खर्च हुआ था,पावणेबारा से सव्वा बारा। आज विश्राम किये बिना तुरंत विनोबा एक्सप्रेसको ग्रिन सिग्नल दिया। नर्मदे हर।अबतक पतझड़ हुआ सागका जंगल था और अचानक हरी भरी व्रुक्षराजी दिखने लगी। अंजनव्रुक्षोंकी मांदियाळी थी। मै आगे चल रही थी,और दोपहर के दो बजे युरेका युरेका ऐसा चिल्लानेका मन हुआ।सामने डांबररोड था। मगर मैने सिर्फ हम पहुँच गये,जंगल पार कर लिया इतनाही बोला। तीनपुलिया वनचौकीमें आकर बैठ गये।श्री. प्रेमसिंग दाहिया ऑफिसर थे।थंड जलपान करके आगे पामाखेडी की तरफ चलना शुरु किया।कड़ी धूपसे परेशान होते होते पामाखेडी चौफुलीपर पंचमुखी हनुमान मंदिर के सामने चैनपुरा धाम नामके चंद्रमौली आश्रममें आ गये। पामाखेडी गांव और दोएक कि.मि.दूर था। आश्रमके बाबाजी खडेश्रीमहाराजजीने यही रहो ऐसा कहा इसलिये आज इधर रहेंगे। अंजूभाभीजीने कढ़ी खिचडी बनायी।आरती नित्यपाठ के बाद भोजनप्रसाद पाया। सत्संगमें खडेश्रीमहाराजजीने कहा जीवनमें निर्मल रहना चाहिये।उनको अमिताभ बच्चनजी के अग्निपथ सिनेमामें बोले डायलॉग जैसे ऐं ऐसा बोलनेकी आदत है। आज दिनभर चाय नही मिली इसलिये मैने चाय नही पिऊंगी ऐसा तय किया इसपर महाराज बोले,कलसे मैया आपको रोज चाय देगी। आज इस आश्रममें हमारे नाशिक के रहनेवाले श्री.जोशी और श्री. भालेरावजी की भेंट हो गयी।नर्मदे हर।आज बहुतही थके है।अब विश्राम।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - ११२ -
।। नर्मदे हर ।।
स्नान, नित्यपाठ केला.खडेश्रीमहाराजजीने उनकी धूनिपरही चाय तयार किया।मुझे बोले,मैयाका प्रसाद है पाओ।प्रणाम करके मैने चाय लिया ।महाराजको प्रणाम नर्मदे हर करते हमारी विनोबा एक्सप्रेस निकल पड़ी। महाराजने पामाखेडी गांवसे,किनारेसे जानेको मना किया था और रोडसे जानेको कहा था इसलिये हम रोडसे जाने लगे।सिरकियाफाटा,अंधारवाडीफाटा,मेलमोहल्लागांव पिछे छोडके साडेसात बजे देवभिट डाँगफाटा आया। डण्ठा,कांकडखेडीफाटा,नंदानाफाटा,भामरफाटा, पार करते साडेदस बजे हम धर्मेश्वरमंदिर पहुँचे।राम भरोसेजी की टपरीमें डॉ. कैलास यादवजीने चाय दिया।नर्मदे हर।बादमें मंदिर के आंगनमें सामान रखकर नलपर फिर स्नान किया,कपडे धोकर सुखाने डाल दिये। धर्मेश्वरमहादेव दर्शन लेकर भोजनप्रसाद पाया।धर्मेश्वर आश्रमके महाराज है,काशिमुनि उदासिन। उनकी उमर कितनी है ये कोई नही जानता,सब कहते है उनके बचपनसे वे लोग महाराजको ऐसाही देख रहे है।नर्मदे हर। पांडवकालीन धर्मेश्वर बांध के कारण डूबमें आ रहा था तब महाराजजीनें कोर्टकचेरी करके धर्मेश्वरभगवानकी पिंडी वहाँसे निकालकर इस जगह सुंदर मंदिर बनवाकर स्थापना की है।नर्मदे हर।काशिमुनि उदासिनमहाराज कहाँ के रहनेवाले है किसीकोभी मालुम नही।वह बीस भाषा जानते है। हमको सत्संग की बाते बताते हमसे मराठीमें बातचित की और संत ज्ञानेश्वर, संत तुकारामजी के अभंग सुनाकर विवेचन किया। उन्होने कहा,No tention,No mention but attention जरुरी है। आश्रमके व्यवस्थापक श्री.राम भरोसे सारणजी है। नर्मदे हर। देढ़ बजे आगे चलना शुरु किया। धूप बहुतही कड़ी थी। कलमफाटामें श्री.श्रीनिवास चौहान जीने चाय दिया।नर्मदे हर। बांईजगवाडा गांवके शुरुमें श्रीसिंगाजी महाराज मंदिरका बांधकाम हो रहा था,धर्मशालाभी होनेवाली है।उस जगहके मालिक श्री.जगदीश यादवजी गवळीजी के घर सुंदर मिठा छाछप्रसाद मिला,गरमीसे परेशान हमको उससे बहुत शांतिका एहसास हुआ।नर्मदे हर। आगे जा रहे थे तब एक घरसे छोटा बच्चा आया और मेरा हाथ पकडकर घर बुलाने लगा शायद उसको बोलना नही आता था।बाल आग्रहको टालना नामुमकिन था।आंगनमें थोडीदेर बैठकर थंड जलपान करके हम आगे निकलें। गांवके बाजारपेठसे जा रहे थे एक दुकानदाराने मैया के लिये आसन दिये।आगे एकने अगरबत्ती देदी,एकने बिस्किट दिये। मैयाप्रति ये भक्तिभाव देखकर हम तो नतमस्तक हो गये। नर्मदे हर। नामनपुर जा रहे थे तब रास्तेमें फतेहगढ़के रहिवासी श्री.रामू गवळी,सौ. अयोध्या गवळी और उनकी बहन क्रिष्णा मिल गये।उनसे बाते करते करते नामनपुर कब आ गया पताही नही चला। शामके छे बजनेवाले थे और फतेहगढ़ २/३ कि.मि. दूर था इसलिये सौ. क्रिष्णा तुलसीराम गवळीजी के निमंत्रणपर नामनपुरमेंही उनके घर गये।मैयाने आजका मुकाम यहाँ तय किया था और हमको वह सहर्ष मान्य था। मैया कितना हमारी सर्वतोपरी खयाल रखती है।आज पच्चीस कि.मि.से ज्यादा हमारा चलना हुआ था और हम बहुतही थक गये थे। इसलिये मैयाने नामनपपुरमेंही व्यवस्था कर दी।नर्मदे हर।फ्रेश होकर सायंनित्यपाठ किया।रातको दाल चावल रोटी और मिठी बुंदी भोजनप्रसाद पाया।अब निद्रादेवी की आराधना।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग -११३ -
।।नर्मदे हर ।।
हम रातको घरके बरामदेमेंही सोए थे,और पानीका पंपभी आंगनके बाजूमें रास्तेलगतही था।इसलिये जल्दी उठकर स्नानादि सब कर लिया और नित्यपाठ करने लगे तब क्रुष्णा जी उठ गयी।नर्मदे हर। उसने चायप्रसाद दिया और सुबह छे बजे हम उसको नर्मदे हर अलविदा करके आगे निकल पडे। आठ बजे हमारी विनोबा एक्स्प्रेस फतेहगढ़ पहुँची। दंतोनी,पिपलसा और नर्मदामैया इनका त्रिवेणी संगम है। फतेहगढ़ गांव तो हमें दिखायी नही दिया तो रामू गवळीजी के घर कैसै जाते? नर्मदे हर। संगमपर त्रिवेणी मैयाओंका सुंदर विशाल स्वरुप है।सबसे सुंदर रेवामैया। खेडीघाट छोडनेके सातवें दिन मैयाका दर्शन हुआ। मन इतना भर आया जैसै दिन महिने साल बित गये हो और अब माँ से मिलना हुआ है।मैया मैया मैया! बस् पुकारते रहे,हाथ जोडकर प्रणाम करते रहे। मंदिरमें जाकर दर्शन लिया। वहाँ मालुम हुआ की आगेका रास्ता तो दो कि.मि.पिछे रह गया।नर्मदे हर।वापस पिछे जाकर दाहिने हाथ कच्चे रास्तेसे दंतोनीमैयाके तटपर आ गये।केवटभैयाको पांच पांच रुपये देकर नावसे दंतोनीमैया पार कर ली।नर्मदे हर। नयापुरा,मेलपिपला पार करके रेतियामें श्री.नर्मदाप्रसाद तवंर के घर चायप्रसाद पाकर विनोबा एक्स्प्रेस आगे चल पड़ी। गांवके बाहर नये पुलके पाससे बायी तरफसे थोडा निचे उतरकर पुराने पुलसे वापस डांबररोडपर आ गये।वहाँ परिक्रमापथ बोर्ड है वापस कच्चा रास्ता शुरु।साडे ग्यारह बजे तमखाना गांव पहुँचे। दो दिनसे हमारे आगेपिछे चल रहे गुजरात मंगलेश्वर भारद्वाज आश्रमके परिक्रमावासी साधू विशुद्धानंदजी हमारेलिये भोजनप्रसाद का निमंत्रण लेकर हमारी राह देख रहे थे।नर्मदे हर।श्री.माखनलालजी हमको श्री.देवीसिंह। यादवजीके घर लेकर गये।उनके घर चार दिन बाद उनकी पोती आशाकी शादी होनेवाली है। सहर्ष स्वागत हुआ,हम पंडीत है इसलिये प्रणाम करके बढ़िया भोजनप्रसाद,दक्षिणा देकर हमारा आदरसत्कार किया।नर्मदे हर। थोडा विश्राम करके चायप्रसाद लेकर विनोबा एक्सप्रेसको ग्रिन सिग्नल दिया तब एक बज चुका था। सिरालियागांव आया,उधर एक जगह पिपल और अंजनव्रुक्ष एकसाथ बडे हुए थे। उनके निचे ओटेपर एक अनोखी मुर्ति कलाकृती देखनेको मिली। पत्थरका वह भाग किसी बड़ी मुर्ति के दाहिने कानजैसा दिख रहा था और उसमें एक के उपर एक तीन छोटी छोटी भगवान महावीर या भगवान गौतमबुद्ध जैसी मुर्तियाँ थी। मगर इसके बारेमें गांववाले कुछ बता नही सके।नर्मदे हर। चलो आगे कोटखेडी पिछे छोड कनादगांव पहुँचे।श्री.कोमलचंद रामदीन दुरांतजी के घर विश्राम केलिये रुके। थंडगार मिठा छाछप्रसाद पाया। आगे चल पड़े।बहुत थक गये थे मगर सदैव जीवन चलनेका नाम चलते रहो। राजौरमें हनुमानजी मंदिरमें दर्शन लेकर स्तोत्रपठण करके चायप्रसाद लेकर आगे चल पड़े क्योकी यहाँ व्यवस्था नही थी।नर्मदे हर। बागदीमैयामें बिलकुल ना के बराबर पानी था सहजतासे पार कर ली,संगम दूर था। साडेपांच बजे डाँवठामें श्री. बलरामजी सेवल्या जाटजी के घर पहुँचे। क्योंकी रास्तेमें उनके बड़े भाईसाब श्री.विरामजी मिले वह हमको देखनेही निकले थे,साधू विशुद्धानंदजी हमारा इंतजार कर रहे थे।एक नेक सज्जनसंतकी मैयाने साथसंगत दी थी।नर्मदे हर। जाटजीके भतिजे ओम और राजूभी मिल गये।बहुत बड़ा घर,उससेभी बड़ा दिलवाले लोग।सहर्ष स्वागत हुआ।हॉलमें आसन लगाया।स्नान,कपडे धोना,सायंनित्यपाठ, मोबाईल चार्जिंग करके यथावकाश भोजनप्रसाद पाया।घरकी बहनोंकेसाथ गपशप चल रही थी और जोरशोरसे धमाकेदार वरुणराजाका आगमन हुआ।आधाघंटा बहुत बारीश हो गयी उसने हमारे पादत्राणोंको(बूट) सचैल स्नान कराया। मायके आयी उनकी बेटी कुंति बहुत अच्छी लगी,हमारी बिटिया याद आयी।नर्मदे हर। आज रास्तेमें मिर्झापुरके सरपंच श्री.कैलास जाणी(जाट) भी मिले थे।आजभी पचीस कि.मि.चलना हुआ।अब विश्राम।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - ११४ -
।।नर्मदे हर।।
आज ज्यादा दूर नही जाना था इसलिये थोडी देरसे निकलनेवाले थे। गरम पानी केलिये बड़ा चुल्हा जलाया था,थंड है इसलिये उसके सामने बैठे बैठे कल भिगे बूट हाळपर सुखानेका काम कर लिया।सबका स्नानादि होने के बाद नित्यपाठ किया सब परिवार शामिल हुआ तो बहुत अच्छा लगा।चायपान करते करते जगदीशजीसे बातें हो रही थी। उनके कहनेपर प्रतिभाताई चितळेजीसे और सुविद्याताई वेलणकरजीसे उनकी बात करवायी। नर्मदे हर। चलो नेमावर। कल इतनी जोरदार बारिश हुयी थी मगर रास्तेपर उसका नामोनिशान नही था।बूटभी सुखानेसे त्रासदायक नही थे।मजेमें चल रहे थे।मंडलेश्वर आया और गया।बजवाड़ामें नुतन शिवमंदिर में आज शिवपंचायतनकी प्रतिष्ठापना होनेवाली थी सब तैयारीमें जुटे थे इसलिये हम आगे निकल गये। इस तरफ बारिश ना के बराबर हुयी थी। इस बजवाड़ामें ताटंबरीबाबा समाधी मंदिरमें दर्शन लेकर बगिया में थोडा बैठकर हम आगे निकले।नल,पुराना नवाडा पार करके निमनपुरमें सौ.सरोज अनिल सरवर,माताश्री कडूबाईजी के घर चायप्रसाद लेकर यथावकाश गाजनपुरसे नेमावर पहुँचे। हमारे चिन्मयधाम आश्रमके घनश्याम गाडगीळ महाराजजीका हालहीमें देहांत हुआ था इसलिये हमने वहाँ जाना मुनासिफ नही समझा और नास्ता करके सोलंकीबाबाजीके श्रीराम धर्मशालामें आसन लगाया।तब सुबहके ग्यारह बजे थे।नर्मदे हर।दाहिने तरफ सुंदर नीलश्यामल मैया और हरीभरे खेतमेंसे कच्चा मगर अच्छा रास्ता था उसमेसें आजका सफर बहुतही आनंददायी रहा। सोलंकीबाबाजी और माताजी बहुत मिलनसार सेवाव्रती बुजुर्ग है। दोपहरको बाजरेकी रोटी बैंगनकी सब्जी भोजनप्रसाद पाया।शामको चिन्मयधाम गये।गाडगीळ महाराज के फोटो सामने विनम्र श्रद्धांजली अर्पित की।उनकी यादसे आंखे भर आयी।पहली परिक्रमामें हम यहाँ ठहरे थे तब मुझे बहुत बुखार आया था इसलिये महाराजजींने हमको तीन दिन रुकवाया था।दवापानी देकर सेवा की थी। महाराजजीके गादीपर अब नये विठ्ठलब्रम्हचारीमहाराज बैठे है।नर्मदे हर।सिद्धनाथ मंदिर में दर्शन लेकर मैयाघाटपर गये।मंदिर बहुतही सुंदर है कलाकारी देखते देखते दो घंटे कैसे गये ये पताही नही चला।मैयाका यहाँ नाभिस्थान है प्रवाहके बिचमें नाभिकुंड है,नावसे जाते है मगर परिक्रमावासी नही जा सकते।सामने दक्षिण तटपर रिद्धनाथ मंदिर दिखता है। यहाँ नेमावर हांडिया जोडनेवाला लंबा ब्रिज है। नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - ११५ -
।।नर्मदे हर।।
स्नान नित्यपाठ चायप्रसाद लेकर हमारी विनोबा एक्स्प्रेस निकल पड़ी। आज हमारे ड्रायव्हर थे सोलंकीबाबाजी। वह हमको किनारेसे जानेका रास्ता दिखाने आए थे। बयासी सालके सोलंकीबाबाजी इतने तेजीसे चलते थे की हम अपनी चालसे शरमसार हो रहे थे। मैया किनारेसे चलते बहुत अच्छा लग रहा था।सुंदर नीलश्यामल मैैया अब गुलाबी सोनेरी दुपट्टा ओढे औरही सुंदर लग रही थी,हलकी हलकी थंड हवासे उसकी लहरे ऐसा लग रहा था मानो न्रुत्य कर रही है। आनंदविभोर मनसे चलते चलते हम जामनेर नर्मदामैया संगम आकर पहुँचे। कुछ दिन पहले यहाँ रेत निकालते समय बडा धमाकेदार आवाज आया और शोध किया तो वहाँ एक शिवमंदिर मिल गया। नंदीके पास लाठी काठी मारी तो झन् झन् ऐसी आवाज आती है। कुछ सिढ़िया उतरतेही शिवपिंडी के दर्शन होते है। मगर आज दर्शन का योग नही था क्योंकी आज मैयाका जलस्तर बढ़ा था।नर्मदे हर।उपर एक शिवपिंडी है उसका दर्शन लेकर सोलंकीबाबाजी को अलविदा किया और नावसे जामनेरमैया पार कर ली। आठ बजे कुंडगांवमें सौ. अनसूया गजानन पटेलजीके घर चायप्रसाद लेकर आगे चल दिये। तुरनाल के बाद गौनी नर्मदामैया संगम,यहाँ भगवान परशुराम जीने माता रेणुकाको पिंडदान किया था वह पिंड लड्डू है।शिवपिंडी है। गौनी संगममें पानी ना के बराबरही था।एक खाईमें जंप करते। मेरी सँकका एक पट्टा टूट गया। कैसा तो। बांधकर हम आगे चल पड़े। नर्मदे हर। दैयत,चिंचली,पार करके हम करोंदमाफी गांव पहुँचे। श्री.बद्रिप्रसाद रामेश्वर पवाँरजी के घर भोजनभिक्षा मांगी और उन्होने सहर्ष स्वागत करते वह दे दी।नर्मदे हर।उनकी माताजी सौ.फुलबाई और पत्नी सौ. क्रुपाबाई है। भोजनप्रसाद विश्राम के बाद चायप्रसाद लेकर विनोबा एक्स्प्रेस निकल पड़ी। बीजलगांव केबाद पिपलनेरियामें पंचमुखी हनुमानजी मंदिर पहुँचे तब साडेतीन बजे थे। दर्शन लेकर बैठे।यहाँ रामदासजी त्यागी व परमेश्वर त्यागीजी महंत है। चायप्रसाद लेकर आगे चलने लगे और आकाश बादलोंसे ऐसा ढक गया की मानो अब वह जमीनपर उतरनेवालेही है।हम प्रार्थना करने लगे मैया,कही तो छिपने की जगह मिले तबतक ये न बरसे ऐसे करो।हमसे जितना हो सकता था उतना हम जल्दी जल्दी चल रहे थे एक देढ़ कि.मि.के बाद एक घर दिखायी दिया और जैसैही हम घरके बरामदेंमें पहुँचे जोरदार बारीश शुरु हो गयी। एकही रुम थी और उसमें हम सब मिलकर पंधराबीस लोग थे। एक घंटा जोरदार बादल बरसे।सब कहने लगे की आब नालेमें बाढ़ आयी होगी पार करना मुश्कील होगा।क्या करें? रास्तेपर एक डंपर खड़ा था और उसका ड्रायव्हर भी हमारे साथही था।उसको बिनती की,हमको सिर्फ नाला पार करवा दे फिर हम आगे चले जाएंगे।वह तैयार हुआ।नर्मदे हर।डम्परमें चढ़ना तो समुद्रमें नावमें चढनेसेभी बहुत मुश्कील था।कैसे तो चढ़कर बैठे।सचमें नालेमें बाढ़ आयी थी मगर डम्परकी ताकद उससे कयी गुना ज्यादा थी इसलिये आरामसे पार हो गये।हम मोटी छिपानेर पहुँचे थे।डम्परमें बैठे हमको देखकर एक दुकानदार हमको उतारने केलिये स्टुल लेकर आ गया।इसे कहते है सेवाभाव।नर्मदे हर। दादा धुनिवालेजी आश्रम पहुँचे। यहाँ श्री.विष्णु और सौ. कमलेश शर्माजी व्यवस्थापक है। ग्वाल्हेर के रहनेवाले मराठी श्री.गजानन डिंगरेजीभी है। सुंदर आश्रम है।श्री. दिपक अग्रवाल जी के घरसे भोजनप्रसाद मिला। अब विश्रांती।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - ११६ -
।।नर्मदे हर।।
सुबह हीटरसे पाणी गरम करके स्नान किया और दर्शन लेकर शर्माजीको नर्मदे हर करके हमारी विनोबा एक्स्प्रेस निकल पड़ी। आठ बजे चौरासाखेडीमें श्री.धनसिंग कुशवाह जीने चायप्रसाद दिया। यथावकाश सीपमैया किनारे पहुँचे।दिनेश केवटने नावसे सीपमैया पार करवाया।नर्मदे हर। सातदेवमें पातालेश्वर दर्शन लेकर अपनेपास जोभी था उससे बालभोग पाके आगे निकल पड़े। साडेग्यारह बजे सीलकंठ पहुँचे। नर्मदामंदिरमें दर्शन लेकर श्री.गोपालप्रसाद तिवारीजी और सौ. लताबाई पंडीतजीके घर भोजनभिक्षा मांगी और उन्होने सहर्ष हमारे झोलीमें डाल दी।नर्मदे हर। बहुत अच्छे लोग,अच्छा घर घर के पिछे छोटासा बगिचा,सब्जीकी क्यारिया और एक बेर से लथपथ बड़ासा पेड़ खट्टेमिठे बेर बहुत खा लिये। भोजनप्रसाद, विश्राम करके दो बजे आगे चलना शुरु। नर्मदे हर। नीलकंठ,कोलार(कौशल्या) नर्मदामैया संगम पहुँचे। नीलकंठमें दत्तमंदिर है उसमें स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और श्रीरंगावधूत महाराजजी के दर्शन लेकर पिछे नीलकंठ महादेवजीके मंदिर गये।इस मंदिरकी विषेशता ये है की बाहर बैठे नंदी के सिंगोंके बिचमेंसे देखे तो खोल गर्भग्रुहमें बसी शिवपिंडी नंदीसे उपर उंचाई दिखायी पडती है।और गर्भग्रुहमें शिवपिंडी के पिछे खडे होकर नंदीको देखो तो बाहर उपर बैठा नंदी शिवपिंडी से कम उंचाईपर दिखता है। पुरानकालिन मंदिर की ये विषेशता हैरान कर देनेवाली है। नर्मदे हर। निलकंठसे निकलकर चमेटी पिछे छोडकर कोलारमैया ब्रिजसे पार करके छिंदगांव पहुँचे। श्री. भारतसिंग रामप्रसाद कुशवाह व सौ. रामसखी के घर शामके साडेपांच बजे हमने निवासभिक्षा मांगी और उन्होने सहर्ष हमारा स्वागत किया। उनके बच्चे प्रिया,प्रिती और निखिल बहुतही प्यारे है।फ्रेश होकर सायंनित्यपाठ, भोजनप्रसाद, गपशप सब बढ़िया।अब विश्राम।आजका सारा प्रवास हरेभरे खेतोंमेंसे,थंडी थंडी हवा के साथ पच्चीस कि.मि.नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमि - भाग - ११७ -
।।नर्मदे हर।।
सुबह छे बजे कुशवाह भाईसाब भाभीजी को नर्मदे हर करके विनोबा एक्सप्रेसने छिंदगांव स्टेशन छोड़ा। साडेसात बजे डिमावरमें दिलीप यदुवंशीजीने चायप्रसाद और अगरबत्ती देदी।नर्मदे हर। बाबरी गांवमें श्री.अशोक राठोडजीने बिस्किट दिये। टिमरनीसंगम आया,टिमरनीमैया पार करने के लिये लोहेकी जाली थी।हो गये पार। उपर टेकरीपर खेतमें एकही झोपडी थी सौ. विमला विश्राम किर ठाकूरजी की,चायप्रसाद,अमरुद,टोमॅटो मिले।नर्मदे हर। साडेदस बजे जाजनागांव पार करके साडेग्यारह बजे मठ्ठागांवमें श्री.सोमसिंग यादवजी के घर भोजनप्रसाद पाकर विश्राम किया और दो बजे उनको नर्मदे। हर करके विनोबा एक्सप्रेसको हरी झंडी दिखायी। नेहलाई गांव के बाद रेऊगांव पहुँचे। कतरगांव के दिलीप पाटिदारजी ने बताया था वैसे मैया किनारे श्री.लक्ष्मणगिरी पाटिदारजी के सतचित्तानंद आश्रममें पहुँचे। एक खोलीमें आसन लगाकर स्नान करने मैयाघाटपर गये। बहुतही सुंदर मैया और आश्रम है।स्नान कपडे धोना सायंनित्यपाठ के बाद भोजनप्रसाद पाया।थोडा महाराज के साथ सत्संग हुआ। अब विश्राम। आजभी सारा पच्चीस कि.मि.प्रवास वनश्री के सानिध्यमें सुंदर हुआ। नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - ११८ -
।। नर्मदे हर ।।
स्नान नित्यपाठ के बाद चायप्रसाद लेकर महाराजजीको प्रणाम करके हमारी विनोबा एक्स्प्रेस ने रेऊगांव स्टेशन छोडा तब सुबहके साडे छे बजे थे।डांबररोड था इसलिये चलना आसान था। मर्दानपुरा के बाद साडेआठ बजे आवलीघाट पहुँचे। मैया और आवलेश्वर दर्शन लेकर वही टपरीमें बालभोग लेकर आगे निकल पड़े। गांजीदगांव, शांताबाई कीरजीने चायप्रसाद दिया । दो कि.मि.आगे कँनॉल के पाससे कच्चा रास्ता शुरु हुआ। पथोडा,जहाजपुर,तालपुर कोईभी गांव रास्तेके पास नही था। रास्तेके बाजूमें श्री.रेवाशंकर तिवारी जी का खेत और बंद झोपडी थी,आंगनमें विश्राम करने बैठे।हमारे पास कुछ खानेकी चीजे थी वही खाकर क्षुधाशांति कर ली। एक बजे आगे चलने लगे। कँनॉलसे बहते बहते मैया हमारी साथसंगत कर रही थी। थंडी थंडी हवा और मैयाजलका थंडावा थकान महसूसही नही हो रही थी। निनोरफाटा से फिर डांबररोड लग गया।बिबदागांवमें एक घरके आंगनमें थोडे बैठे,वहाँ आगेका रास्ता पुछा तो हायवेसेही जाओ ऐसा कहा,नर्मदे हर। हायवेपर आकर एक टपरीमें चाय बिस्किट लिये और आगे चलने लगे। बहुतही थक गये थे,पैर आगे चलनेको मना कर रहे थे।उँचाखेडा गांव आया। पहला घर लगा श्री.रामसेवक कीर उनसे निवासभिक्षा मांगी और उन्होने सहर्ष देदी नर्मदे हर। उनके मनका बड़पन तारीफे काबील था। उनका बडा बेटा कुछ कारनवश बीस दिन पहले भगवान को प्यारा हुआ था। उनकी अस्सी सालकी माताजी गिर गयी थी और हड्डी टुटनेसे उनका ऑपरेशन हुआ था। इतनी विपत्तीमें होकरभी हमारे स्वागतमें कुछभी कमी नही थी। सायंनित्यपाठ में घरके सारे सदस्य सामिल हुए।भोजनप्रसाद भी सबने एकसाथ लिया। आजका प्रवाह पच्चीस कि.मि.कुछ कठीण बहुतसा सुसह्य ऐसा था। अब विश्राम।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा- भाग - ११९ -
।। नर्मदे हर ।।
स्नान नित्यपाठ के बाद चायप्रसाद लेकर रामसेवक कीर परिवारको नर्मदे हर करके हमारी विनोबा एक्स्प्रेस बुधनी की तरफ चल। पड़ी तब घड़ी सुबहके साडेपांच का समय दिखा रही थी। आज हायवेसेही चलना था। होलिपुरा के बाद खांडावड गांवमें टपरीपर चाय पोहे बालभोग लेकर आगे चलने लगे। देवगांव के बाद कालीयादव नदीमैया पुलसे पार करके आगे गांव आया पिलीकरार। हम श्री.सुहास लिमयेजी अपनी परिक्रमामें गये थे उसी रास्तेसे जा रहे थे । सव्वा नौ बजे बुधनी चौराहेपर डॉ. बी.के.सिंगजी यहाँसे चायप्रसाद लेकर रेल्वेलाइन क्रॉस करके बुधनीगांवमेंसे चलने लगे क्योंकी सरकारी हॉस्पिटल के पाससे बांद्राभान जानेका शॉर्टकट है ऐसा डॉ.भाईसाबने बताया था। इसलिये मैयाघाटपर नही गये। पहली परिक्रमामें हमने बुधनी घाटपर आशिष दुबे पंडित जी के घर आसन लगाया था। मगर इसबार आगे निकले थे। नर्मदे हर। चलते चलते रास्तेमें मेडिकल स्टोअरसे कुछ मेडिसिन,दुसरे दुकानसे कुछ खाद्यपदार्थ खरीदे। इस गडबडीमें हॉस्पिटल पिछे रह गया। एक जगह पुछनेपर मालुम पड़ा,वह रास्ता अच्छा नही है।नर्मदे हर। साडे ग्यारह बजे बांसापुर चौराहेपर एक नदीमैया पुलसे पार करके पहुँचे। हॉटेल अभिषेक में भोजनप्रसाद लेकर आगे चलने लगे अब धूप कड़ी हो गयी थी। बांसापुर, सुचैनपुराधाम पिछे छोडके चलने लगे।खराब रास्ता कड़ीधूप और भयानक वाहनोंकी आवाजाही परेशान हो गये। एक नया बंगला था,शायद कोई रहता नही था उसमें,गेट खोलकर अंदर गये। बरामदा साफ करके विश्राम करने बैठ गये। हँड पंप था।थंडगार जलपान किया। एक घंटा विश्राम करके आगे चलने लगे। साडेतीन बजे बगवाडाफाटा आया,टपरीपर चायप्रसाद लेकर फिर चलना शुरु। खराब रास्ता बेशुमार ट्रँफिक परेशान होकर चल रहे थे। मगर रास्तेमें बहुत मिठे बेर के छोटे मोटे पेड़ थे।स्वादिष्ट रानमेवा खाते खाते चलतेही जा रहे थे मगर बांदराभान आनेका नामही नही ले रहा था। आखिर पुस्तकमें नौ कि.मि.लिखा बांदराभान सतरा कि.मि.पर आ गया तब घड़ी शामके सव्वापांच दिखा रही थी। जोगेश्वरीधाम,हनुमानमंदिरमें कुछ व्यवस्था हो न सकी,आगे जानाही पड़ा। आधा कि.मि.आगे मैयाने हमारेलिये सुंदर व्यवस्था तय्यार रखी थी श्री.प्रवीण ओमप्रकाश सुरजनदासजी के फॉर्महाऊसमें । सहर्ष स्वागत हुआ। खेत के बिचोंबीच सुंदर बगिया और काश्मीरी हाऊसबोट जैसा सुंदर टेंटहाऊसमें प्रवीणजीने हमारी आसन व्यवस्था की,सामने सुंदर नीलश्यामल नर्मदामैया, रंगीबिरंगी फुलोंसे सजा बाग़,दक्षिण तटपर लाइटिंगसे झगमगता दक्षिण बांदराभान।थकेमांदे अपने बच्चोंको मैयाने इतना सुंदर तोहफा दिया। आजका मेरा जनमदिन मैयाने पहले कष्ट बादमें फल ऐसा सुंदर मनाया।नर्मदे हर। प्रवीणने बारीश के दिनोंमें बाढ़ के किचड़में फसी एक सुरभि गाय जिसके शरीरपर एक छोटासा भी काला या अन्य रंगका दाग नही है ऐसी सुलक्षणी गाय बाहर निकालकर बचायी है,और उस गोलक्ष्मीजीने प्रवीण को अपने दूधसे भर भरके बहुत दिया। उसी के साथ एक तांबू गाय,दो कुत्ते भी बचाकर पाल रखे है।पत्नी,बच्चों केसाथ ये सारेभी प्रवीण के ग्रुहसदस्य बनकर रह रहे है। प्रवीण बड़ा कष्टकरी लडका है। मूल पंजाबी है। उसके परदादाजी फाळणी के समय पाकिस्तान के पंजाब से यहाँ आकर बसे । नर्मदे हर। रातमें अपने खेत की ताज़ा सब्जी,बैंगनभरता,रोटी,बासमती चावल,दाल सब घरके खेतका।बहुतही स्वादिष्ट भोजन।बहू अन्नपूर्णा है। नर्मदे हर।मैया इतना सुंदर मेरा जनमदिन आपने मनाया,शब्द नही मेरे पास आपकी स्तुति कैसे करुं? सिर्फ मैया ! मैया ! आपकी जय हो।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १२० -
।। नर्मदे हर ।।
कल बहुतही थक गये थे इसलिये थोडी देरसे उठे,पुरब दिशासे रविराज अपने सप्तरंगी रथपर सवार होकर जीवन प्रकाशमय करने आ रहे थे। मैयाका रुप उस सप्तरंगी रौनकमें इतना सुंदर निखर रहा था की वर्णन करने मै असमर्थ हूँ। नर्मदे हर। स्नानके बाद नित्यपाठ आज हमने टेंटहाऊसके बरामदेमें मैया के सामने बैठकर किया।तबतक प्रवीण थर्मास भरके गरम गरम चाय लेकर आ गया। वा वा! गुलाबी थंड,बगिया की हरीभरी घासपर अरुणोदयके रंगीबिरंगी प्रकाशमें चमकते ओस के मोती, सामने सोनेरी गुलाबी साडी पहनी सुंदर नीलश्यामल हसरी मैया और गरम गरम अदरक वाली मिठी मसाला चाय, सुख सुख और क्या होता है।नर्मदे हर।
साडेसात बजे विनोबा एक्सप्रेसको ग्रीन सिग्नल दिया। अच्छा डांबर रोड था मगर आज पैर चलनेको तैयारही नही थे। सव्वा आठ बजे हिरानीगांव पार किया। साडेआठ बजे शहागंजगांव आया। रास्तेमें एक चाय का स्टॉल था मालिकने हमको नर्मदे हर करके चायप्रसाद लेने बुलाया साथमें बिस्कीट भी दिये।नर्मदे हर।थोडीही देरमे शहागंज बसस्टँडपर आ गये। पोहे,पकोडे दूध बालभोग लिया।छाछभी खरीद लिया। आगे किनारेसे परिक्रमा पथ है ऐसा किसीने बताया इस लिये उधर चलने लगे। शिव मंदिर,नर्मदा मंदिर है दर्शन करके परिक्रमा पथपर आ गये,सिमेंटकाँक्रिट का परिक्रमापथ देखकर हमारे उत्साहका गुब्बारा फुलकर हवामें तैरने लगा मगर थोडी देरमेंही वो कच्चे रास्तेके कंकरसे फूट गया। भयंकर कंकड़भरा रास्ता था।बूट पहनके भी चलना मुश्किल हो रहा था। बिच बिचमें मिट्टी डाली थी।रास्तेके दुतर्फा रंगीबिरंगी फुलोंसे सजे सरसो,आलसी,चना, मटर(बटरा) के खेत हमको दिलासा देनेका प्रयास कर रहे थे मगर कलसे ऐसे भयानक रास्तेसे चलते चलते हम बहुतही थक गये थे,पैर चलनेको तैयारही नही थे। अखेर जो पहला गांव आएगा वहाँ रहनेका फैसला लिया। बनेटा गांव आया। और हम अंदर गये,श्रीमती सीमा निर्मलकुमार मीनाजी घर हमने निवासभिक्षा मांगी और उन्होंने सहर्ष दे दी।नर्मदे हर।बडा सुंदर घर आंगन,आंगनमें हँण्डपंप कपडे धोनेकी अच्छी सुविधा थी। सीमाजी के बच्चे संजय,अक्षय और गुडिया प्रियंका सारा परिवार हसमुख आतिथ्यशिल.चाय पानी के बाद दोपहरको स्वादिष्ट भोजनप्रसाद के बाद थोडा विश्राम और फिर धोबीघाट खोलकर कपडे धो डाले। सायंनित्यपाठ में घरके सारे सदस्य शामिल हो गये।बहुत अच्छा लगा। रात का भोजनप्रसादभी बहुतही स्वादिष्ट। निंदियारानी तुरंत आंखोंमें आ गयी मगर रातको देढ़ बजे भयंकर तुफान आ गया,जोरदार बारीश तीन घंटे थैमान चालू रहा इस अस्मानी सुलतानी का। नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - १२१ -
।।नर्मदे हर।।
कल बहुतही बारीश हुयी थी इसलिये सुबह थोडी देरसे निकले। हमें अलविदा करते सीमा तो रोनेही लगी,एकही दिनके सहवास से सारे अपने सगे रिश्तेदार हो जाते है यह अनुभव हम पुर्ण परिक्रमामें हररोज ले रहे थे।यह मैयाकी महिमा है।नर्मदे हर। विनोबा एक्सप्रेस निकल पड़ी तब घड़ीमें सुबहके साडेसात बजे थे। सुढानिया गांव आया,बारीश आने लगी,श्री.किरोनिलाल पालजी के घर गये उन्होने सहर्ष स्वागत किया। चायप्रसाद लेकर थोडीदेर रुके,बारीश रुकतेही आगे चलना शुरु किया। हथनौर गांव,बहुतही सुंदर घर आंगन,बगिचा देखकर रहा नही गया इसलिये अंदर गये। ये घर था सौ. रमा शिवनारायण मीनाजीका। उनकोभी बहुत अच्छा लगा। उधर गांवके सबसे बुजुर्ग १०५ सालके श्री.नन्हेलाल साहूजी हमको मिलने आ गये तब हमको ऐसा लगा मानो भगवान मिलने आ गये हो। शिवनारायण जी की बुआजी भी आ गयी,वह इतनी शांतस्वरुप थी,आंतरिक भक्ती शांतता उनके चहेरेसे छलक रही थी।उनके दर्शनसे लगा स्वयं मैया आयी है अपने बच्चोंका हालहवाल पुछने। नर्मदे हर। दुग्धपान करके आगे चल पड़े। सरदार नगर,श्रीराम मंदिरमें दर्शन लेकर बरामदेमें बैठ गये। साडेबारा बजे भोजनप्रसाद पाकर थोडा विश्राम लेकर निकले.यहाँ तीस सिढ़िया वाला सिमेंटकाँक्रिट का घाट है। उतरकर मैया किनारेसे चलने लगे। गेहूंके हरेभरे खेतोमेंसे चलना बहुतही अच्छा लग रहा था। थोडी देर बाद एक टेकरी चढकर उपर आ गये। बबूल, वावडिंग, करवंद जैसे जंगली पौधोंमेसे जा रही पगदंडीसे चलते चलते बिचमें एक नाला लगा मगर उसमेंभी सुंदर पगदंडी थी।पार करके फिर एक टेकरी चढकर फिर एकबार गेहूंके खेतोंमेंसे चलते चलते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री.शिवराजसिंग चौहानजी के गांव जैत पहुँचे। गांवकी नदीमैयाके पुलपर मुख्यमंत्री जी बंधुका पोता श्री.संजय चौहान मिल गया।वह डोबी गांवमें शिक्षक है। उनके घर गये,चाय बिस्कीट लेकर शिवराजसिंग जी के बंद घरका फोटो खिंचा,पुराना चंद्रमौली घर है।इतने छोटेसे गांवका ये सुपुत्र शिक्षण और स्व कर्तृत्व से राज्यका मुख्यमंत्री हुआ और राज्य स्वयंपुर्ण। करनेका ख्वाब आंखोंमें भरकर काम कर रहा है। नर्मदे हर। गांव के बाहर आतेही डांबररोड शुरु हुआ। साधारणतः दो कि.मि. के बाद दो रास्ते आ गये।बायी तरफका रास्ता चार कि.मि.दूरके नांदनेर,कुसुमखेडा जा रहा था और दाहिने तरफका एक कि.मि.नारायणपुर जा रहा था। दोनोही गांवोंमे हमारी व्यवस्था हो सकती थी। बारीश आएगी ऐसे लग रहा था,दोपहरके साडेतीन बजे थे निर्णय लेना था,और सामनेसे मोटरसायकल आयी।उनकेपास रोशनसिंग ठेकेदार के बारमें पुछताछ की तो वह उन्हीके भाई थे,बोले चलो। और हमने नारायण पुर जानेका फैसला किया मैयाकी यही इच्छा होगी इसलिये इनकी भेंट हुयी।नर्मदे हर। दिपेश पटेल रोशनसिंग जी का बेटा,राजू पटेल ये जनपद अध्यक्ष भा.ज.पा.है। उनके घर चायप्रसाद लेकर उनके पिताजी के साथ रोशनसिंग जी,दिपेश,अरविंद(गरिबा) के घर आकर आसन लगाया और मैयास्नान करने गये।घाट बांधनेका काम चल रहा था। दिपेश के घरके सामने राधाकृष्ण मंदिर है,वहाँ परिक्रमावासी ठहरते है। यही दिपेश और गरिबा हमें अनसूया के दत्तमंदिरमें भोजनप्रसाद के समय मिले थे और हमको अपने। गांव नारायण पुर आनेका निमंत्रण दिया था।तब ये लोग बससे परिक्रमा कर रहे थे।नर्मदे हर। सायंनित्यपाठ के बाद स्वादिष्ट भोजनप्रसाद पाया।अब विश्राम।आज सिर्फ बीस कि.मि.ही चलना हुआ।नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १२२
।।नर्मदे हर।।
रातमें बारीश हो रही थी इसलिये आजभी देरसे सुबह सव्वासात बजे विनोबा एक्सप्रेसको ग्रीन सिग्नल दिया और नारायणपुर स्टेशन छोडा। गरीबा बहुत दुरतक हनुमान मंदिरतक छोडने आया था। सव्वाआठ बजे नांदनेरगांवमें श्री.मल्लू राजपूत, राजू राजपूत जी के घर चायप्रसाद का लाभ हुआ।नर्मदे हर। आगे पावणेदस बजे कुसुमखेडा पहुँचे। श्री.संतोष पटेलजी हमारी राह देखते मंदिर प्रांगणमेही बैठे थे। उनके घर बहुतही सन्मानसे पोहे,खुरचंद वडी,हलवा ऐसा स्वादिष्ट पेट ओव्हरफ्लो होनेतक बालभोग मिला और उपर एपिटायटर पाचक मसाला छाछ मतलब सोने पे सुहागा। नर्मदे हर। ग्यारह बजे आगे निकल पड़े। बमोली पार करके भारकच्छ पहुँचे तब दोपहरके साडेबारा बज चुके थे। पेड़के निचे बैठनेसे मंदिरमें बैठना अच्छा इसलिये गये मगर कल रातके बारीशका पानी भरा था,बैठनेको जगह नही थी,क्या करें? गोविंद मीना नामका लडका मिला उसकी गोशालामें बैठनेकी जगह मिली।नर्मदे हर। थोडा विश्राम करके पासके पेड़से गिरे मधूर बहुतसारे बेर खाकर आगे निकल पड़े। अब धूप अपना रंग दिखाने लगी थी,थकान महसूस हो रही थी।गाडरवास गांव आया।श्री.बद्रिप्रसाद, रामगोपाल और संदीप अग्रवाल जी के घरके आंगनमें बैठ गये। उन्होने भोजनप्रसाद लेनेकी बिनती की।हमेंभी भूक लगी थी इसलिये नर्मदे हर। फ्लॉवर की सब्जी, रोटी,चावलके आटेके लड्डू, टोमॅटो मुलीका सलाद बहुत बढ़िया भोजनप्रसाद प्राप्त हुआ यही तो है मैयाक्रुपा।नर्मदे हर।तीन बजे आगे चल पड़ी विनोबा एक्स्प्रेस।पांच बजे बसेर गांव आया।आज यही रहनेका विचार हुआ और श्री.भागवतसिंग बखाजी के घर निवासभिक्षा मांगी और उन्होने हमारा सहर्ष स्वागत किया।नर्मदे हर। मुक्काम की यह जगह मैयाने हमारे लिये तय की थी और हम रह गये। बड़ा घर,आंगनमें हँण्डपंप था इसलिये स्नान,धोबीघाट सारा बैजवार हो गया। सायंनित्यपाठमें घरके सारे सदस्य शामिल हुए। रातमें स्वादिष्ट भोजनप्रसाद।अब निंदियारानी की आराधना। आजका प्रवास २५ कि.मि.
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग -१२३ -
।। नर्मदे हर ।।
स्नान नित्यपाठ, चायप्रसाद लेकर सुबह छे बजे विनोबा एक्सप्रेसको हरा बावटा दिखाया। पावणेसात बजे सनखेडा पार करके वरखेडामें उपरसे तुवरके खेतोंमेंसे चलते चलते एक जगह नीचे उतरकर नारदीगंगामैयाके तटपर आ गये। नदीमैया थी तो छोटीसीही मगर जलप्रवाह जोरदार था। गहराई कितनी होगी?लकडी डालकर देखा,घुटनोंतक होगी।नीचे रेत थी।कैसी पार करेंगे सोचते बूट निकाले तभी एक मैयाजी और बाबाजी आ गये,समझो पार्वती माता सदाशिव बाबाजीही आ गये हमें पार करवाने।नर्मदे हर। उन्होंने अगरबत्ती जलायी और नारदीगंगामैयाकी प्रार्थना करके हमारे हाथ पकडकर लीलया पार करवाया। वह मैया बाबाजी रायसेन जिल्हामें उदयपुरागांवके रहनेवाले थे।उन्होंने दक्षिण तटपर सांडियाघाटसे परिक्रमा उठायी थी। मोतलसरगांवमें रामहुजूर नामके छे महिनेके बच्चेके घरवालोंने नर्मदेहर करके घर बुलाया।घरके हँण्डपंप पंपपर किचड़भरे पैर,कपडे धोकर घरमें बैठे।चायप्रसाद लिया।उन्होंने एक बड़ी बॉटल भरकर ताजा छाछभी दिया।नर्मदे हर। गांवके बाहर आने के बाद एक इमलीकेबनमें मंदिरमें दर्शन लेकर प्रांगणमें बैठकर हमारे पिस जो साथ उसका बालभोग लिया,रामहुजूर के घरसे मिली छाछ बहुतही स्वादिष्ट थी। आज मौसमका मिज़ाज आज सुबहसेही बिगड़ा हुआ था। गगन काले काले बादलोंसे पुरा ढक़ा था।किसीभी क्षण बारीश होने लगेगी ऐसा लग रहा था। जल्दी जल्दी चलते किवलीगांवमें पहुँचे।मंदिरमें जानेकी सलाह मिली।गये,मंदिरका कलस कही दिख नही रहा था।एक बंद घर जैसा दिखायी पड़ा।बरामदेमें एक बड़ा लकडीका पलंग था।उसपर सँक रख दी और बैठे।जोरकी बारीश शुरु हो गयी। वही बंधी रस्सीपर गिले कपडे सुखाने डाल दिये। रुमका बंद दरवाजा खोलकर देखा अंदर कुछ बर्तन थे।दुसरा दरवाजा खोला वह देवीमाताजीका मंदिर था।नमस्कार करके पलंगपर
बैठ गये।एक लडका आते देखा तो उसको बुलाया। शिवकुमार नाम था उसका।उससे निवास और भोजनभिक्षा मांगी,उसने सहर्ष दे दी।नर्मदे हर। एक घंटे बाद बारीश थम गयी इसलिये शिवकुमार के घर आ गये।घरमें प्रवेश किया न किया तभी वापस जोरदार पर्जन्यवृष्टी शुरु हो गयी।बैठे हरिविठ्ठल करते। रस्सी बांधकर कपडे सुखाने डाल दिये।भोजनप्रसाद पाया।एक दो घंटेबाद बारीश थमतेही आगे कमसेकम बगलवाडातक जा सकेंगे ऐसा सोच रहे थे। मगर बारीश थमनेका नामही नही ले रही थी। आज मैयाने इस किवलीगांवमें श्री.गुलाबसिंग भाईजी पटेलजी के घरही हमारा आसन लगवाया था।मैया आपकी इच्छा शिरसावंद्य।नर्मदे हर।आज सुबह विनोबा एक्सप्रेस छुटते समय सिर्फ दस कि.मि.पर उसको ब्रेक लगाना पडेगा इसकी कल्पनाभी नही की थी। यही तो है शुद्ध प्रारब्ध। नर्मदे हर। पटेलभाईसाब,प्रभावती भाभी,शिवकुमार और उनकी नाती छोटीसी चांद।बहुत आतिथ्यशिल परिवारसे आज रिश्ता बना दिया मैयाने। नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग -१२४ -
।। नर्मदे हर ।।
कल रातभर बारीश हो रही थी। आगे जाए या न जाए इस सोचमें विनोबा एक्सप्रेसको सिग्नल कैसे दे? कलके बारीश के कारण प्रभाताईजीको बहुत काम करना था इसलिये हमारा रुकनाभी मुनासिफ नही था।और रास्तेपर किचड़ जल्दी सुख जाता है ऐसा कहना था शिवकुमारका और सुरजचाचूकाभी आगमन हुआ था,अच्छी धूप निकली थी इसलिये आगे जाने के लिये सव्वाआठ बजे विनोबा एक्सप्रेसको ग्रिन सिग्नल दिया।नर्मदे हर। रास्तेका किचड़ सुख गया होगा ये भ्रम टुटनेको चंद मिनिटही लगे। अक्षरशः किचड़ पैरोतले रौंदते चल रहे थे। साथी लोगोंने बूट निकालकर हाथमें लिये मगर मैनै मेरे डायबेटीसको डरकर बूटपर दुसरे किचड़के बूटपहनके चलनाही मुनासिफ समझा। सेमरीगांव आया।हँण्डपंप पर बूट थोडे साफ करके आगे निकल पड़े। रामजानकी मंदिरमें दर्शन लेकर बाहर पेड़ के निचे बैठकर बालभोग पाया और आगे चलने लगे,किचड़में चलना बहुत मुश्कील था।कैसे तो चलते चलते वरुणानदीमैया के किनारे पहुँचे। छोटीसी वरुणानदीमैया कलके बारीशके कारण जोरशोरसे दौडती अपनी बड़ी बहन नर्मदामैया के गले मिलने जा रही थी। उसको पार करवाने केलिये एक टूटे पलंग जैसा लोहेकी पट्टीयोंवाला साकव बिचमें एक बड़ी लकडीके मध्य आधारपर दोनो किनारोंको तारसे बंधा हुआ जोरदार प्रवाहसे झुंझता पड़ा था। सेमरी गांव के बंधूने मानसिक आधार देते वरुणानदीमैया पार करवा दी। सामनेकी टेकरी चढ़कर उपर आ गये।दाहिनी तरफ एक प्लास्टिक शिटसे बनी टपरीके पिछेसे थोडी दुरीपर वरुणा नर्मदा संगम दिख रहा था।वरुणानदीमैया अपनी बड़ी बहन नर्मदामैया के बड़े आवेगसे गले मिल रही थी और मैया धीरगंभीरतासे उसे पास ले रही थी। दोनो तरफके चनेके खेतोंमेकी पगदंडी हमको रेवा बनखंडी आश्रम लेकर आयी। नर्मदे हर। गेटसे अंदर गये तो सामने हसतमुख शिरोभागपर सुंदर काले बालोंका जुड़ा बांधी क्रुष्णाजीजी माताजी खड़ी थी। हमारा सहर्ष स्वागत हुआ। हातपैर धोकर आये तो बड़ी प्लेट भरकर स्वादिष्ट पोहे लेकर जीजीमाताजी आयी।नर्मदे हर।बालभोग चाय लेकर एक खोलीमें आसन लगाया और आजके बसंतपंचमीका पुण्यलाभ लेने मैया घाटपर स्नान करने गये। सुंदर स्नान पुजा नित्यपाठ किया।तबतक भोजनप्रसाद का निमंत्रण आया।जीजीमाताजी का बेटा चेतन स्वादिष्ट भोजनप्रसाद परस रहा था।कॉलेजमें पढता है। शामको गांवमें जाकर संस्कृत पाठशाला और जिस घरमें प्रतिभाताई और सुधीरभाऊ चितळे रहते थे वह घर और सुबह रास्तेमें देखी टपरी याने उनका सेवाकेंद्र देखकर आ गये। शामको आरतीमें शामिल होकर बहुत प्रसन्नता हुयी।यहाँ आरती के समय आश्रमके रखवाले कुत्ते उनकी भाषामें आरती गाते है।बड़ी अचरजकी बात है।सुननेमें बहुतही अच्छा लगता है। ईश्वरकी लिला अगाध है। नर्मदे हर।
अगले दिन भी बारीश के कारण बगलवाडामेंही रुकना पड़ा।तिसरे दिन नर्मदा जयंती थी और क्रुष्णाजीजी माताजीने कहा आज आगे नही जाना मैयाका जनमदिन यही मनाओ, मैया आज्ञा शिरसावंद्य। सुबह मैया पुजन,चुनरी प्रदान,दोोपहरको भंडारा, शामको दिपदान,रातमें भजन।आज मैया बहुतही सुंदर दिख रही थी।सुबह शाम भगवान सुर्यनारायणजीने मैयाको अपने किरणोंसे लाल गुलाबी केशरी जरतारी चुनरी पहनायी थी।निली सावली मैयाका रुप निखर रहा था। नर्मदे हर।इन तीन दिनोंमें हमने बगलवाडा गांवके श्रीरामजानकी मंदिरमेंभी दर्शन लिया था।संस्कृत पाठशाला देखी।जहाँ निवासी विद्यार्थी है,बारा वर्ष वेदाध्ययन करते है। नर्मदे हर।
तीर्थजननी नर्मदा परिक्रमा - भाग - १२५ -
।। नर्मदे हर।।
तीन दिन बगलवाडामें रहकर मैयाका जनमदिन बड़ी धुमधामसे मनाकर हम सुबह साडे छे बजे क्रुष्णाजीजीने दिया चायप्रसाद लेकर उनको प्रणाम करके हमारी विनोबा एक्स्प्रेस आगे चल पड़ी। आठ बजे भिलाडिया गांवमें श्री.चैनसिंग पटेलजीने दिया दूध पीकर आगे निकल पड़े। एक बाबाजींने शॉर्टकट से जानेकी सलाह दे दी।इसलिये चनेके खेतोमेंसे बहुत चलने के बाद एक जगह पुछताछ करही रहे थे की श्री.विशाल पटेलजी आये और उन्होंने पांजरा गांवसे जानेको कहा और वह हमारे साथ हो लिये। आगे एक जगहसे उन्होने और एक शॉर्टकट बताया इसलिये उधरसे चलने लगे। तेंदोनी नदीमैया आयी,घुटनोंतक पानी था।पादस्पर्शम क्षमस्व मे ऐसी प्रार्थना करके विशालभाईसाबकी मदतसे पार हो गये।नर्मदे हर। थोडी देर पगदंडीसे चलने के बाद बाँसाखेडा से पिपरिया मांगरोल रास्ता आया। मराठी परिक्रमावासी श्री.बडवेजी मिले।पता चला की भिलाडिया से बाँसाखेडा मार्गसे आते तो तकलीफ नही होती।नर्मदे हर। एक पेड़के निचे बैठकर बालभोग लिया और आगे निकल पड़े। पिपरिया, ढाबलाफाटासे डांबररोड शुरु हुआ।सव्वाबारा बजे सर्रा गांव आया।श्री.रणबीरसिंग राजपूतजीने भोजनप्रसाद का आमंत्रण दिया।नर्मदेहर। भोजन तय्यार र होनेतक कपडे धोकर सुखाने डाल दिये। स्वादिष्ट भोजनप्रसाद के बाद विनोबा एक्स्प्रेस आगे चल पड़ी। मांगरोल गांव के आगे हायवे लग गया। कोटपारफाटा के बाद चार बजे अलीगंज आया।श्री.बेनिराम साहूजीने चाय दिया मगर निवास व्यवस्था हो न सकी।नर्मदे हर। मैया किनारेसे चलते चलते पांच बजे सीमनीगांव पहुँचे।श्रीराम जानकी मंदिरमें दर्शन लिया।वहाँ श्री.गोविंदसिंग धाकडजीने निवासभिक्षा दी। उनका घर पासही था। सौ. वैजयंतीजीने सहर्ष स्वागत किया। हमारे लिये क्या करें और क्या न करें ऐसा उनको हुआ था। आसन लगाया। फ्रेश होकर गरम गरम चायपान के बाद सायंनित्यपाठ में पतीपत्नी दोनों सहभागी हुए।नर्मदे हर।रातको भोजनप्रसादमें दालचावल,सब्जी,रोटी,दहीशक्कर था,बहुत स्वादिष्ट।नर्मदे हर। धाकड परिवारका मैयाप्रति प्रेम,आस्था देखकर मन भर आया।ऐसे सेवाभावी लोग है इसलिये परिक्रमावासी परिक्रमा कर सकते है। नर्मदे हर। आज चलना हुआ पच्चीस किलोमीटर।
वंदना परांजपे.